अखिलेश अखिल
अगले साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए अधिकतर विपक्षी पार्टियां एकजुट होती तो दिख रही है लेकिन सवाल है कि क्या वाकई विपक्षी पार्टियों में इतनी कूबत है कि वह बीजेपी को हरा पायेगी ? हालांकि इस देश का इतिहास रहा है कि जनता जब मन बना लेती है तो बड़ी से बड़ी सत्ता भी रसातल में चली जाती है। कांग्रेस की सत्ता को कई बार इस देश की जनता ने धूल चटाया है। इसको सभी ने देखा है। ऐसे में सवाल उठता है कि जहाँ बीजेपी पिछले कई सालों में देश की जनता के बीच अपनी मजबूत पकड़ बना चुकी है और देश के भीतर बीजेपी और खासकर पीएम मोदी के प्रति अगाध श्रद्धा भाव उत्पन्न हो चुकी है ऐसे माहौल में क्या बीजेपी को वही जनता सत्ता से बाहर करने को तैयार है ? क्या जनता का मूड भी बीजेपी के खिलाफ है ? क्या इस देश के लोग वाकई में बीजेपी के खिलाफ वोट देने को तैयार हो चुकी है ? इन सवालों के जवाब कठिन है।
ऊपर से यह जरूर दिखता है कि बीजेपी की सरकार ने देश के भीतर कई मतभेद पैदा किये हैं। हिन्दू -मुसलमानो के बीच खाई बढ़ी है। हिंदुत्व का कथित नारा देश के भीतर गूंजने लगा है। हिन्दू राष्ट्र की बात की जाने लगी है। यह भी दिख रहा है कि कई जगह संविधान पर चोट की जाती है। संविधानिक संस्थाए काफी कमजोर हुई है और देश की संपत्ति निजी हाथों में जाती भी दिख रही है। गरीबी और अमीरी के बीच की खाई बढ़ती गई है और सबसे बड़ी बात झूठ की राजनीति जितनी बढ़ी है ऐसे राजनीति आज तक देखि नहीं गई। ऐसे में सवाल है कि क्या देश की जनता बीजेपी के खिलाफ वोट देने को तैयार है ?
बीजेपी को हराने के लिए विपक्षी एकता की बात की जा रही है। होनी भी चाहिए। लेकिन क्या देश की जनता भी एकजुट हो पाएगी ? इसका जवाब शायद अभी नहीं मिल सकता। जिस देश की जनता पांच किलो अनाज और कुछ हजार रूआपरे की सौगात पाकर मोदी -मोदी के नारे लगाते जी रही है क्या इस जनता से उम्मीद की जा सकती है कि वह सत्ता को बदलने के लिए तैयार है ?
लेकिन सवालों के बीच विपक्षी एकता की कहानी को दरकिनार भी नहीं किया जा सकता। नीतीश कुमार को विपक्षी एकता को एक मंच पर लाने की जिम्मेदारी मिली हुई है। यह भी सच है कि नीतीश कुमार की छवि बेदाग़ है और कई मामलों में वे मोदी पर भारी भी पड़ सकते हैं लेकिन क्या देश की जनता भी नीतीश का साथ देने को तैयार है ?
ऊपर से तो दिख रहा है कि नीतीश कुमार को विपक्षी नेताओं का समर्थन मिल रहा है। पहले इस पर ही बात कर लेते हैं कि आखिर नीतीश कुमार को विपक्षी पार्टियां समर्थन करते क्यों दिख रही है ?
2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए ने नीतीश कुमार को अपना चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा था। हालांकि, नीतीश कुमार की जद (यू) केवल 43 सीटों का ही प्रबंधन कर सकी। नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के अन्य नेताओं ने दृढ़ता से महसूस किया कि जद-यू उम्मीदवारों के वोट काटने के लिए भाजपा ने चिराग पासवान के साथ हाथ मिलाकर उनकी पीठ में छुरा घोंपा है। राजग और जद-यू के बीच अलगाव का ट्रिगर बिंदु 31 जुलाई, 2022 को पटना में जेपी नड्डा का बयान था, जिसमें उन्होंने कहा था कि भाजपा देश के सभी क्षेत्रीय दलों को ध्वस्त कर देगी।
इसके तुरंत बाद अगस्त में नीतीश कुमार ने एनडीए से गठबंधन तोड़ लिया। बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार दिल्ली गए और विपक्षी नेताओं से मिले, जिनमें राहुल गांधी, सोनिया गांधी, अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी, अखिलेश यादव, डी. राजा और अन्य शामिल थे। उस समय, कांग्रेस ने उन्हें पूरी तरह से प्रतिक्रिया नहीं दी थी, शायद पुरानी पुरानी पार्टी को नीतीश कुमार के साथ भरोसे की समस्या थी।
पिछले सात महीनों में विपक्षी दलों ने बीजेपी के तौर-तरीकों का विश्लेषण किया होगा और पाया होगा कि यह केवल उन नेताओं को निशाना बना रही है जो भ्रष्टाचार के मामलों में शामिल हैं।अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर ध्यान केंद्रित कर रही है, इसके अलावा भगवा नेता योगी आदित्यनाथ के अपराध नियंत्रण के मॉडल की ओर इशारा कर रहे हैं। नीतीश कुमार अपनी सकारात्मकता जानते हैं और विपक्षी पार्टियां भी। यही वजह है कि उनके बीच उनकी स्वीकार्यता ज्यादा है।
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस को बहुत समर्थन मिला, लेकिन सूरत की एक अदालत द्वारा मोदी उपनाम से संबंधित एक आपराधिक मानहानि मामले में राहुल गांधी को दोषी ठहराए जाने के तुरंत बाद उनकी लोकसभा सदस्यता चली गई। इस पृष्ठभूमि के खिलाफ नीतीश कुमार एक ऐसे नेता के रूप में उभरे हैं, जो बीजेपी के सामने खड़े हो सकते हैं, क्योंकि भगवा खेमा उन्हें न तो भ्रष्टाचार के मामलों में निशाना बना सकता है और न ही उनकी जाति या शैक्षिक योग्यता या अनुभव के लिए।
इस समय भाजपा के पास भ्रष्टाचार के मामलों में शामिल विपक्षी नेताओं को चुनिंदा रूप से लक्षित करने के लिए एक अनुमानित कार्यप्रणाली है। लालू प्रसाद हों, तेजस्वी यादव हों, हेमंत सोरेन हों, अभिषेक बनर्जी हों, अजीत पवार हों, अरविंद केजरीवाल हों, अभय चौटाला हों या राहुल गांधी- सभी केंद्रीय जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं। इस बीच नीतीश कुमार ही ऐसे नेता हैं जो केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर नहीं हैं।
नीतीश कुमार अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं। वह जाति से कुर्मी हैं और बिहार में लव (कुर्मी)-कुश (कुशवाहा या कोइरी) के निर्विवाद नेता हैं। जाति के मोर्चे पर नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए नीतीश कुमार एक आदर्श नेता हैं। हाल ही में, आम आदमी पार्टी ने पीएम मोदी के खिलाफ उनकी शैक्षिक योग्यता को चुनौती देते हुए एक अभियान शुरू किया, जिसका नेतृत्व पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने किया था। दूसरी ओर, नीतीश कुमार की शैक्षिक योग्यता प्रभावशाली है। वह प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज पटना से सिविल इंजीनियर हैं, जिसे अब राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान का दर्जा प्राप्त है।
ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे सहित विपक्षी नेताओं ने खुले तौर पर कहा है कि नीतीश कुमार विपक्षी दलों को एकजुट करके अच्छा काम कर रहे हैं। इस बीच बिहार में भाजपा के नेता लालू प्रसाद की गोद में ‘बैठने’ को लेकर नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे हैं, हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि मुख्यमंत्री को सीधे तौर पर कब निशाना बनाया जाएगा।
राज्य भाजपा अध्यक्ष सम्राट चौधरी का हालिया बयान कि नीतीश कुमार को राजनीतिक रूप से मिट्टी में मिला दूंगा इस बात का संकेत था कि भाजपा अब कितनी हताश है। उन्होंने कहा है, जिस तरह से भाजपा केंद्रीय एजेंसियों के माध्यम से विपक्षी दलों के नेताओं को चुनिंदा रूप से लक्षित कर रही है, वह दिखाता है कि वे 2024 के लोकसभा चुनाव जीतने के लिए कितने बेताब हैं। लेकिन वे नहीं जानते कि स्वच्छ छवि वाले नीतीश कुमार से कैसे निपटें।
आगे क्या होगा अभी देखना बाकी है। यह भी सच है कि बीजेपी भी अपने बचाव में कई तरह की तैयारी कर रही है। बीजेपी जानती है कि अगर उसकी सत्ता चली गई तो उसकी काफी दुर्गति होगी। बीजेपी यह भी जानती है कि अगर मोदी की सत्ता चली गई तो बीजेपी के भीतर भी बिखराव हो सकता है। ऐसे में 2024 का यह खेल बड़ा ही मनोरंजक होने वाला है। लेकिन देखना ये है कि विपक्षी एकता किस तरह की बनती है और जनता उस एकता को कितना सपोर्ट देने को तैयार है ?


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