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जानिए किन 200 सीटों पर कांग्रेस को निपटाने पर तुला है विपक्ष !

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अखिलेश अखिल 

2024 के चुनाव में विपक्षी एकता का हश्र क्या होगा इसे तो कोई नहीं जानता लेकिन एक बात सच है कि अगर यह एकता तैयार हो जाती है तो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ेगी। बीजेपी अभी तक विपक्ष में बंटे वोट का ही लाभ उठती रही है। पिछले दो लोकसभा चुनाव का आंकलन करे तो बीजेपी के पक्ष में करीब 36 फीसदी वोट एकमुश्त पड़ते गए हैं बाकि के 64 फीसदी वोट विपक्ष में बंटते रहे हैं। वोटों का यही बंटवारा बीजेपी को सत्ता तक पहुंचने में मदद करता रहा। इसी बात का आंकलन विपक्ष क्र रह है कि अगर सब एक होकर चुनाव लड़े और एक सीट पर एक ही उम्मीदवार उतारकर सभी विपक्षी पार्टियां उसी उम्मीदवार को मदद करे तो बीजेपी को हराया ज सकता है। याद कीजिए तमाम विपरीत स्थिति में भी पिछले दोनों चुनाव में कांग्रेस को 12 करोड़ से ज्यादा वोट मिलते रहे हैं। विपक्ष में कांग्रेस  ऐसी पार्टी है जिसकी पहुँच आज भी देश भर में है।    
    लेकिन विपक्षी एकता की बात होती है तो जाहिर ही कि कांग्रेस को भी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने से पीछे हटना पडेगा। ऐसा नहीं होता है तो विपक्षी एकता की बात बेकार है। पिछले कुछ समय से नीतीश कुमार देश भर के क्षत्रपों से मिले। सभी उन्होंने यही बात कही  है कि एक सीट एक उम्मीदवार और जहां कांग्रेस मजबूत है और बीजेपी से उसकी सीधी लड़ाई है वहां कांग्रेस मजबूती से लड़े और जहां क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत है वहां उसकी अगुवाई में चुनाव लड़ा जाए। यह फॉर्मूला अभी कामयाब लगता है। इसी बता को आगे बढ़ाते हुए पश्चिम बंगल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि जहां-जहां कांग्रेस मजबूत है, उनकी पार्टी समर्थन देने को तैयार है। उन्होंने कहा कि जहां भी कोई क्षेत्रीय राजनीतिक दल मजबूत है, वहां भाजपा नहीं लड़ सकती। जो दल किसी क्षेत्र विशेष में मजबूत हैं, उन्हें मिलकर लड़ना चाहिए।उन्होंने कहा था- मैं कर्नाटक में कांग्रेस का समर्थन कर रही हूं, लेकिन उन्हें बंगाल में मेरे खिलाफ नहीं लड़ना चाहिए। बंगाल में कांग्रेस को टीएमसी की मदद करनी होगी। ममता बनर्जी ने कहा कि मैं कोई जादूगर नहीं हूं न ही ज्योतिषी हूं। भविष्य में क्या होगा? यह नहीं कह सकती। लेकिन एक बात बता सकती हूं कि जहां-जहां क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत है, वहां बीजेपी लड़ नहीं सकती है। कर्नाटक में डाला गया वोट बीजेपी सरकार के खिलाफ एक महत्वपूर्ण जनादेश है।         
फिर सपा प्रमुख अखिलेश यादव का बयान आया। उनका कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व में कांग्रेस का हो लेकिन किस राज्य में वह लड़ रहे हैं वहां की सबसे मजबूत पार्टी के हाथ में वहां का नेतृत्व होना चाहिए। मतलब गठबंधन तो एक रहे, लेकिन नेता कई बनाया जाए। लेकिन कांग्रेस इसके लिए तैयार होगी की नहीं यह कहना अभी मुश्किल है।         
 कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद मानो विपक्ष को संजीवनी मिल गई है। सबसे बड़ी संजीवनी तो कांग्रेस को मिली है। कल्पना कीजिए अगर कर्नाटक में कांग्रेस की हर हो जाती तो विपक्ष के ये बड़े चेहरे शायद ही इस तरह के बयान देते। लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। कांग्रेस के भीतर भी उम्मीद की किरण फूटी  है और उसे भी लगने लगा है कि अगर वह मिलकर मेहनत करे तो परिणाम को बदले जा सकते हैं।  अब कांग्रेस विपक्षी एकता को कितना धार देश है इसे भी देखने की जरूरत है। लेकिन विपक्ष के जिन नेताओं के बयान कि कांग्रेस को 200 सीटों पर केंद्रित करना चाहिए इसे जानना ज़रूरी है।    
 ममता और अखिलेश यादव के बयान को जोड़कर देखा जाए तो कहा जा सकता है कि विपक्ष यही चाहता है कि कांग्रेस दो सौ सीटों पर ध्यान दे और बंगाल को टीएमसी ,यूपी को अखिलेश यदव ,बिहार को रजड और जदयू ,महाराष्ट्र को शिवसेना कर एनसीपी ,तमिलनाडु को डीएमके ,पंजाब और दिल्ली को आप ,तेलंगाना को केसीआर ,केरल को वाम दल और आंध्र को चंद्रबाबू नायडू के लिए छोड़ दिया जाए। हलांकि इसक मतलब यह नहीं है कि कांग्रेस इन राज्यों में चुनाव ही नहीं  लड़े। कांग्रेस यहां उन क्षेत्रीय दलों के गंणित के हिसाब से चुनाव लड़े जो वहां सबसे बड़ी पार्टी है। अब इसमें कांग्रेस कितन सहमत सहमत होगी इसे देखना बाकी है।            
 ममता बनर्जी के मुताबिक 200 सीटें ऐसी हैं, जिन पर विपक्षी भी समर्थन दे सकती हैं। ऐसे में वो 200 सीटें कौन सी हो सकती हैं इसको जानना जरूरी है। मध्य प्रदेश में 29, कर्नाटक में 28, गुजरात में 26, राजस्थान में 25, असम में 14, छत्तीसगढ़ में 11 और हरियाणा में 10 सीटें आती हैं।
इन सभी राज्यों की सीटें जोड़ दें तो ये आंकड़ा 143 का हो जाता है। यहां कांग्रेस और बीजेपी में सीधी लड़ाई है। इन सीटों पर कांग्रेस को विपक्षी दलों का सपोर्ट कांग्रेस को देने की बात हो रही है। इसके अलावा हर बड़े राज्यों में चार-पांच सीटें देकर आंकड़ा 200 पहुंचाने का है। जैसे की बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल।  
   यह फॉर्मूल कोई गलत भी नहीं है। इस फॉर्मूले में सबकी भलाई दिख रही ही और सबकी रजनीति भी है।  लेकिन कर्नाटक के परिणाम से माहौल बदला है और संभव है कि कांग्रेस की सीटें कुछ और भी बढ़ाई जा सकती है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस करीब 250 से जयदा सीटों पर लड़ने को तैयार है। ऐसे में कोई रास्ता निकाला जा सकता है। और यह रस्ता निकल गया तो बीजेपी को चुनौती दी जा सकती है। 

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