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उपराष्ट्रपति धनकड़ ने क्यों कहा कि वैश्विक शांति के लिए ताकत की जरूरत है 

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न्यूज़ डेस्क 
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने बुधवार को दिल्ली में नौसेना द्वारा आयोजित “हिन्द-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद 2023” में मुख्य भाषण देते हुए कहा कि आज का भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के सिद्धांत को संजोते और उसका पालन करते हुए संपूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी सोच तथा भावना पर आधारित विश्व व्यवस्था का पक्षधर है। उन्होंने कहा कि इस आदर्श स्थिति को अमलीजामा तभी पहनाया जा सकता है, जब आप इसके लिए मजबूत और सक्षम होते हैं। उन्होंने कहा कि आचार्य चाणक्य तथा महान वैश्विक विभूति स्वामी विवेकानंद ने भी इसका संकेत देते हुए कहा था , “ आपकी ताकत वैश्विक व्यवस्था को परिभाषित करेगी, आपकी ताकत शांति को परिभाषित करेगी।”
     उप राष्ट्रपति ने कहा कि भारत एक अग्रणी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है। भारत को वैश्विक स्तर पर शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण और रचनात्मक भूमिका निभानी होगी। उन्होंने कहा, “आप शांति स्थापित नहीं कर सकते, आप शांति के लिए बातचीत नहीं कर सकते, आप कमजोरी की स्थिति से शांति की आकांक्षा नहीं कर सकते। आपको मजबूत होना होगा और आपको सभी बुनियादी तथ्यों पर मजबूत होना होगा। वर्तमान परिदृश्य में भारत इसके लिए बिल्कुल उपयुक्त है।”
    उन्होंने कहा कि सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत खुले, स्वतंत्र और शांतिपूर्ण नियम-आधारित हिन्द प्रशांत क्षेत्र का पक्षधर है। भारत का मानना है कि वाणिज्यिक गतिविधियां और आवागमन अंतरराष्ट्रीय कानूनों तथा समझौतों के अनुसार होना चाहिए।
   स्वतंत्र नौवहन और हवाई मार्ग का आह्वान करते हुए  धनखड़ ने कहा, “हम न्यायसंगत वैश्विक नियामक व्यवस्था चाहते हैं, जो समुद्री संसाधनों और समुद्र तल के स्थायी तथा न्यायसंगत दोहन पर अधिकार का सम्मान करती हो।”
     इजरायल -फिलिस्तीन तथा रूस- यूक्रेन युद्ध का नाम लिये बिना उन्होंने कहा कि दुनिया इस समय दो गंभीर संकटों का सामना कर रही है और दूर -दूर तक कोई रोशनी दिखाई नहीं दे रही है। उन्होंने कहा कि इसके समाधान के लिए सभी राष्ट्रों को एक साथ आना होगा और लीक से हटकर सोचना होगा।
            धनखड़ ने कहा कि सामूहिक सुरक्षा और नयी सोच पर आधारित साझेदारी ही आगे बढ़ने का रास्ता है। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने सीमित अनुभव के आधार पर यह कहने में कोई संदेह नहीं है कि यही एकमात्र रास्ता है। उन्होंने कहा, “ कोई भी देश अकेला नहीं खड़ा हो सकता। वहां एकजुटता से कदम उठाना होगा, विचारों को साझा करना होगा, कुछ मुद्दों पर एकमत होने के लिए एक ही सोच पर आगे बढना होगा।”
              संयुक्त राष्ट्र में भारत की मजबूत भूमिका की जरूरत पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि यह दुख का विषय है कि भारत के विशाल देश होने के बावजूद उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है जो निश्चित रूप से इस वैश्विक निकाय के प्रभाव को कम करता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अब समय आ गया है जब इस विषय पर भी ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में भारत को शांति के पक्षधर के रूप में पहचाना जा सकता है। भारत की कभी भी विस्तारवाद की नीति नहीं रही । उन्होंने कहा कि पड़ोस में शांति और स्थिरता भारत में विकास और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।

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