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कर्नाटक में बीजेपी ने किया जेडीएस के साथ गठबंधन ,क्या लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिलेगा फायदा ?

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अखिलेश अखिल 

विपक्षी इंडिया का असर यही है कि बीजेपी और जेडीएस ने कर्नाटक में एक साथ मिलकर कांग्रेस सरकार के खिलाफ आवाज उठाने का गठजोड़ किया है। हलाकि मौजूदा समय में यह गठबंधन विधान सभा में मिलकर कांग्रेस सरकार के खिलाफ काम करने को लेकर लेकिन सच्चाई यही है कि यह गठबंधन आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए किया गया है। यह बात और है कि बीजेपी की कर्नाटक इकाई जेडीएस के साथ किसी भी तरह के गठबंधन के पक्ष में नहीं है। कर्नाटक की बीजेपी इकाई का कहना है कि पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 28 में से 25 सीटें मिल गई थी। बीजेपी का वोट प्रतिशत तब 52 फीसदी के पास था। बीजेपी भले ही विधान सभा चुनाव में हार गई है लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी बेहतर परफॉर्मेंस करेगी और सभी सीटें जीतेगी। ऐसे में जेडीएस के साथ गठबंधन की कोई जरूरत नहीं है।  
  उधर जेडीएस ने कई दिनों तक इसपर मंथन करने के बाद बीजेपी के साथ जाने का निर्णय लिया है। इस निर्णय के पीछे की कहानी यही है कि आगामी लोकसभा चुनाव में उसे लाभ हो। लेकिन सवाल है कि जिन सीटों को बीजेपी पिछले चुनाव में जीत चुकी है क्या बीजेपी वहां से उसे सीट देगी ? यह बड़ा सवाल है। फिर जेडीएस भी अपने प्रभाव वाले इलाके में बीजेपी को सीट नहीं देना चाहेगी ,भले ही पिछले लोकसभा चुनाव में उसकी हार ही क्यों न हुई है। इसलिए ऊपर से देखने यह गठबंधन भले ही बेहतर लगे लेकिन लोकसभा चुनाव में यह गठबंधन रहेगा इसकी सम्भावना कम ही है। इस बात को जेडीएस के लोग भी मान रहे हैं। जेडीएस के नेता भी कह रहे हैं कि जो जहाँ मजबूत है वहां उसे लड़ना  चाहिए। ऐसे में बीजेपी लोकसभा चुनाव में तो 25 सीटें जीत गई थी और बीजेपी के लिए वह 25 सीट मजबूत ही है। ऐसे बहुत से सवाल और है।            
    दरअसल ,लोकसभा चुनाव में विपक्ष की चुनौतियों से निपटने के लिए भाजपा की योजना एनडीए का आकार बढ़ाने और जरूरी बदलावों के जरिए राज्यों के संगठन को चाक चौबंद करने की है। इस रणनीति के तहत पार्टी नेतृत्व ने पिछले महीने राजग का कुनबा बढ़ाने की योजना पर काम किया। पार्टी सूत्रों ने बताया कि दो दिन हुई मैराथन बैठक में इन्हीं गुत्थियों को सुलझाने के लिए गृह मंत्री अमित शाह ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, महासचिव सुनील बंसल और संगठन महासचिव बीएल संतोष के साथ माथापच्ची की थी। सूत्रों ने यह भी बताया कि कर्नाटक में जेडीएस एनडीए में शामिल होने के लिए तैयार है। हालांकि, इन दोनों ही मामलों में कई पेंच हैं, जिन्हें सुलझाया जाना बाकी है।
              कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद भाजपा ने दक्षिण भारत में अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। पार्टी अब दक्षिण भारत के अलग-अलग राज्यों में नए साथियों की तलाश में है। हालांकि, कर्नाटक में एचडी देवगौड़ा के राजी होने के बावजूद पार्टी अंतिम निर्णय नहीं कर पा रही।
               एक बात और ,जब कर्नाटक की बात आती है तो जेडीएस के साथ बीजेपी के रिश्ते को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जाती हैं।  कुछ विश्लेषकों का मानना है कि एक साथ जाने से दोनों पार्टियों को मदद मिलेगी, दूसरों का कहना है कि भाजपा के लिए संभावित मामूली लाभ गठबंधन के लायक नहीं हो सकता है। इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस और जेडीएस के बीच गठबंधन की ओर इशारा किया जाता है, जब दोनों पार्टियां केवल एक-एक सीट ही जीत सकीं।
            अब भाजपा-जेडीएस गठबंधन पर बातचीत के साथ एक सवाल यह है कि क्या दोनों पार्टियां एक-दूसरे को वोट ट्रांसफर कर सकती हैं। हाल के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर 36 फीसदी और जेडीएस का 14 फीसदी था, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में अकेले बीजेपी को 52 फीसदी वोट मिले थे। जेडीएस को जहां बीजेपी की जरूरत है, वहीं इसको क्षेत्रीय पार्टी पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है।
 लोकसभा चुनाव में जेडीएस को साथ लेने के लिए बीजेपी की ओर से गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। सतही तौर पर यह एक अच्छा समीकरण दिखता है, लेकिन जमीनी स्तर पर कई बड़े मुद्दे हैं, जिन्हें सुलझाना बाकी है। 

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