बीरेंद्र कुमार झा
2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्षी एकजुटता का आह्वान किया, जिसमें अधिकांश विपक्षी दल शामिल हुए ।इसके बाद उन्होंने जाति गणना की रिपोर्ट को जारी करके अपनी मनसा को उजागर कर दिया है। उनके इस कदम ने सत्ता पक्ष को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। भारत में जाति इतना संवेदनशील मुद्दा है कि यह महिला आरक्षण जैसे मुद्दे पर भारी साबित हो सकता है। हालांकि दूसरी तरफ राष्ट्रवाद एक ऐसा मुद्दा है, जिसके सामने जाति का मुद्दा भी नहीं टिक पाता है और बीजेपी खुलकर इस मुद्दे को भंजाते भी रही है।
नीतीश कुमार ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनके पास अपने दल जेडीयू के विधायकों की संख्या मात्र 43 है।जिस कुर्मी जाति से वे आते हैं उसकी जनसंख्या भी मात्र 2.87% है।इसके बावजूद अपने राजनीतिक कौशल से बिहार विधान सभा में तीसरी बड़ी राजनीतिक पार्टी के नेता होने के बावजूद वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने हुए हैं।और ऐसा कोई 1 या 2 वर्षों से नहीं बल्कि 18 वर्षों से हैं। राजद के कई नेता दबी जुबान से तेजस्वी यादव के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली करने की लगातार मांग भी करते रहे हैं।
जातीय गणना से आरजेडी को नियंत्रित करने का प्रयास
जदयू के अलावा नीतीश कुमार की महा गठबंधन सरकार में राजद, कांग्रेस और वामदानों का एक समूह शामिल है। 2020 का विधानसभा चुनाव बीजेपी के साथ गठबंधन में लड़ने के बाद नीतीश कुमार ने 2022 में राज्य के विपक्षी खेमे से हाथ मिला लिया।बिहार विधानसभा में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन जातीय सर्वेक्षण के साथ नीतीश कुमार ने अपनी ताकत काफी बढ़ा ली है। उन्होंने दोहराया है कि वे न सिर्फ कुर्मी के बल्कि अत्यंत पिछड़े वर्ग के भी नेता हैं।बिहार की आबादी में ईबीसी का प्रतिशत है 36 है। वहीं बिहार की आबादी में यादव 14% है। आरजेडी यादव – मुस्लिम गठबंधन पर निर्भर है, लेकिन यहां भी नीतीश कुमार ने जातीय सर्वेक्षण से सेंध लगाकर खुद की स्थिति में सुधार के साथ आरजेडी को कमजोर करने की कोशिश की है।
मुसलमान को लुभाने की कोशिश
नीतीश कुमार ने जातीय गणना में मुसलमानों को ईबीसी में शामिल कर मुस्लिम राजनीति के पिच पर खेलने की कोशिश की है। वह पसमांदा मुस्लिम के एक वर्ग को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। यही कारण है कि नीतीश कुमार ने पसमांदा मुसलमान के नेता अनवर अंसारी को आगे बढ़ाया है। इससे आरजेडी का महत्वपूर्ण वोट बैंक छिटक सकता है।
राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान मिलने का मार्ग प्रशस्त
नीतीश कुमार को बिहार की राजनीति में एक कोने में सिमटाने के प्रयास के साथ ही उन्हें अपने ही गठबंधन के घटक दल के नेताओं द्वारा राष्ट्रीय मंच पर भी हासिये पर धकेला जा रहा था। जाति जनगणना के आंकड़े जारी करने के बाद अब इस बात की प्रबल संभावना है कि अब उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ा मौका मिलने वाला है। नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने के सपने की भी खूब चर्चा होती है, हालांकि उन्होंने कभी इस बारे में खुलकर बात नहीं की है और अंदर ही अंदर इसकी हसरत पाले हुए हैं। इस वजह से नए बने इंडिया गठबंधन के मजबूत घटक दल के नेता नीतीश कुमार को संयोजक तक का पद देने में डर रहे हैं।इतना ही नहीं राष्ट्रीय मंचों पर भी उन्हें दरकिनार किया जाता था।लेकिन अब स्थिति बदलने की पूरी संभावना है। कांग्रेस, आरजेडी और टीएमसी पैसे दलों को भी यह सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा कि इंडिया गठबंधन में नीतीश कुमार को कौन सा पद दिया जाए।
कुल मिलाकर देखा जाए तो फिलहाल नीतीश कुमार ने जाति जनगणना वाले अपने तरकश के इस आखिरी तीर से एक नहीं बल्कि कम से कम तीन शिकार किए हैं। उन्होंने पार्टी के आंतरिक मुद्दे को संभाला है, आरजेडी की धमकी का भी जवाब दिया है और साथ ही साथ उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी प्रासंगिकता को मजबूत किया है।