अखिलेश अखिल
भारत में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ यह ढह चुका है यह फिर उसे ढाह देने की तैयारी चल रही है। इस खेल को बीजेपी के समर्थक अपनी तरह से व्याख्या कर रहे हैं जबकि विपक्षी अपना राग अलाप रहे हैं। लेकिन एक बड़ा सच तो यही है जिन राज्यों में जिसकी सरकार है वह नहीं चाहती कि कोई भी पत्रकार यह मीडिया संस्थान उसके खिलाफ में कुछ लिखे या बोले। वैसे भी इस देश में अब सबककुछ राजनीति ही तय कर रही है। प्रेस को लोकतंत्र का चौथा खम्भा तो जरूर कहा गया है कि इस लोकतंत्र के तीन खम्भों कार्यपालिका ,न्यायपालिका और विधायिका की तरह उसे अलग से कोई ताकत नहीं दी गई है। केवल इस बात की गारंटी दी गई है कि प्रेस लोकतंत्र के तीन खम्भों पर नजर रखेगा ताकि समाज और देश की सच्चाई सामने आती रहे।
ऐसा नहीं है कि कोई पहली बार भारत में प्रेस की आजादी पर हमले किये जा रहे हैं। सच तो यही है कि केंद्र और राज्यों में जिसकी भी सरकार रही है वह अपने तरीके से प्रेस को नापती ही रही है। 1975 के आपातकाल को आप इसी नजरिये से देख सकते हैं। लेकिन यह भी सच है कि आपातकाल केवल प्रेस के लिए ही नहीं था। वह पूरी व्यवस्था के लिए आपातकाल था। ताजुब तो यही है कि जिन नेताओं ने आपातकाल में जेल की हवाएं खाई थी और फिर इंदिरा सरकार को जमींदोज किया था आज सत्ता में कर वही लोग प्रेस की आजादी को और भी धूल धूसरित कर रहे हैं। भारत का अधोगति कहाँ तक होगा यह कोई नहीं जानता लेकिन यह बात भी सही है कि मौजूदा सरकार के काल में यह प्रेस और ध्रुवो में बंट गया है। एक सत्ता के साथ खड़ा है तो दुसरा सत्ता के खिलाफ।
मजे की बात तो यह है कि इस दौर में अगर सोशल मीडिया नहीं होता तो भारत के लोगों को जो कुछ भी खबरे सरकार के खिलाफ मिल रही है शायद वह भी नहीं मिलती। ठीक वैसे ह जैसे देश के अखबारों में सरकार के खिलाफ कुछ भी नहीं छपता। लगता है यह सरकार सतयुग की सरकार है और इस सरकार के सारे नेता हरिश्चंद्र के वंशज ही है।
पिछले मंगलवार को देश के कुछ पत्रकारों के घर पर छापे मारे गए। ये पत्रकार न्यूज़ क्लिक जैसे मीडिया संस्थान से जुड़े हुए हैं। कहा गया कि न्यूज़ क्लिक चीनी फंड से चलते हैं और यहाँ जो भी पत्रकार काम करते हैं या न्यूज़ क्लिक के लिए लिखते पढ़ते हैं शायद वे भी चीन के समर्थक ही हो। लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि इसकी जानकारी सरकार को कैसे मिली ?
दरअसल, न्यूयॉर्क टाइम्स में कुछ समय पहले एक खबर छपी थी, जिसमें कहा गया था कि अमेरिका के बिज़नेसमैन नेविले रॉय सिंगमा ने न्यूज़क्लिक में निवेश कर रखा है। सिंगमा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थक हैं और वह ‘चीन के प्रॉपेगैंडा को फैलाने के लिए वहां की सरकार के साथ मिल कर काम करते हैं। इसके बाद ही देश की जांच एजेंसियों ने इस मीडिया संस्थान पर केस दर्ज किया था। और मंगलवार को पत्रकारों से पूछताछ की है।
हलाकि पुलिस ने कई घंटे पूछताछ करने के बाद न्यूजक्लिक के एडिटर-इन-चीफ प्रबीर पुरकायस्थ और एचआर चीफ अमित चक्रवर्ती को मंगलवार को ही गिरफ़्तार कर लिया। पुलिस ने इन दोनों के अलावा पत्रकार अभिसार शर्मा, औनिंद्यो चक्रवर्ती, भाषा सिंह, व्यंग्यकार संजय राजौरा और इतिहासकार सोहेल हाशमी के घर पर भी छापा मारा। पूछताछ हुई और शाम को छोड़ दिया। शाम होते-होते इस मामले की चर्चा देश से बाहर विदेशों में भी होने लगी। विदेशी मीडिया ने इस मामले पर बात की है।
वॉशिंगटन पोस्ट ने इस मामले में लिखा है, ”पुलिस ने आतंकवाद विरोधी क़ानून वाले केस में न्यूज़क्लिक से जुड़े 46 पत्रकारों और योगदान देने वालों के घरों पर छापा मारा। इनके यहां से फोन और लैपटॉप जब्त किए गए हैं। न्यूज़क्लिक केंद्र सरकार की काफी आलोचना करता है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्त में मीडिया पर तेज़ होते हमले का ताज़ा नमूना है।”
वॉशिंगटन पोस्ट ने आगे लिखा, ”भारत में स्वतंत्र मीडिया आउटलेट कड़ी सेंसरशिप से जूझ रहे हैं। इन संस्थानों को गिरफ्तारी और आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ता है। मोदी सरकार की आलोचना करने वाले मीडिया संस्थानों पर वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाते हुए छापेमारी बढ़ा दी गई है। ”
अल-जज़ीरा ने इस पर लिखा है कि भारत में पुलिस ने ‘चीन का प्रॉपेगैंडा चलाने के लिए विदेशी फंड लेने के आरोप में देश के प्रमुख पत्रकार और एक समाचार वेबसाइट के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ को कड़े आतंकवाद विरोधी क़ानून के तहत गिरफ्तार किया है। अल-जज़ीरा लिखता है कि 17 अगस्त को न्यूज़क्लिक और इसके पत्रकारों के ख़िलाफ़ यूएपीए की धाराओं के तहत के मामले दर्ज किए गए थे।
उधर न्यूयार्क टाइम्स ने अपने आर्टिकल में लिखा है कि पुलिस ने नई दिल्ली में पत्रकारों के घरों पर मंगलवार सुबह छापे मारे और एक पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया है। मोदी सरकार को रिपोर्ट करने वाली पुलिस की स्पेशल सेल विंग ने पत्रकारों पर ये कार्रवाई की है। इससे पहले 2021 में इस कंपनी पर ईडी ने छापा मारा था. दो महीने पहले न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट छापी थी, जिसमें दावा किया गया कि न्यूज़क्लिक उस इंटरनेशनल नेटवर्क का हिस्सा है, जिसकी फंडिंग चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थक बिजनेसमैन कर रहे हैं। पर इस तरह की कार्रवाई मीडिया की स्वतंत्रता को दबाते हैं। अंतरराष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर की रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रेस आज़ादी के मामले में 180 देशों की लिस्ट में भारत का स्थान 161 है।
जानिए जिस न्यूयार्क टाइम्स ने चीनी फंडिंग से न्यूज़क्लिक को जोड़ा था अब उसने क्या कहा ?
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