अखिलेश अखिल
बीजेपी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से यह पूछा जाना चाहिए कि अगर आप लगभग 20 साल से एमपी के मुख्यमंत्री हैं तो फिर चुनाव से पहले तीन विधायकों को मंत्री बनाने की क्या जरूरत है ?जो तीन विधायक मंत्री बनाये गए हैं उनमे से वक ब्राह्मण हैं और दो ओबीसी समुदाय से। हालांकि ये तीनो नेता अपने -अपने इलाके के बड़े नेताओं में शुमार हैं लेकिन ये तीनो मंत्री तीन महीने में बीजेपी के लिए क्या कुछ तैयार कर पाएंगे यह कहना मुश्किल है।
शिवराज सिंह से यह भी पूछा जाना चाहिए कि आप लगभग 20 साल से इसी सूबे के मुखिया है तो आपको किस्से शिकायत है ? आप किसा खिलाफत करते हैं ? आपके किसके विरोध में बोलते हैं ?आपको विपक्ष ने क्या बिगाड़ा है ? विपक्ष तो केवल सत्ता तक पहुँचने का संघर्ष कर रहा है। क्या यह भी उसे नहीं करना चाहिए ? और ऐसा नहीं करना चाहिए बता लोकतंत्र की बाते क्यों की जाती है ? फिर जहां आपकी भी सरकार नहीं है तो वहाँ भी आपको चुनाव नहीं लड़नी चाहिए!
लेकिन ऐसा हो कहा रहा है ? एमपी में शिवराज सिंह बेचैन हैं। वे चाहते हैं कि अबकी बार भी उनकी ही सरकार बने। वे ही फिर से मुखिया बने। आप जरूर बने। लेकिन यह तो बताइये कि पिछले 20 सालों में आपने प्रदेश को क्या कुछ दिया है ? रेवड़ियां बाँटने के अलावा प्रदेश को कुछ मिल अहो तो आप बता दीजिये। अगर शिक्षा का स्तर बढ़ाने में आपने कोई नबादा चमत्कार किया हो न तो यह भी बताये। स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई बदु उपलब्धि आपने प् ली हो तो यह भी बता दें ! महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध पर भी आपने पूरी कमान कर ली है तो आप यह सब बता सकते हैं /लेकिन इसके बावजूद में प्रदेश में बेरोजगारी ,समाज में हिंसा और बेईमानी ,एक दूर के खिलाफ जहर फैलाने वाली राजनीति अगर बंद हो गई तो तो प इसे भी बता सकते हैं।
यह समझ से परे हैं कि 20 साल तक राज करने के बाद भी बीजेपी की सरकार विपक्ष पर ही हमला कर रही है। क्या बीजेपी की सरकार ने विकास के कोई मान नहीं किये हैं ?अगर काम हुए होते तो तिकड़मबाजी की जरूरत ही नहीं होती। अभी मंत्री बनाये गए हैं वह भी तो एक खेल ही है। तिकड़मबाजी ही तो है।
मंत्रिमंडल के इस आखिरी विस्तार से सत्तारूढ़ बीजेपी और मंत्री बनने वाले विधायक भले ही खुश है लेकिन विपक्षी कांग्रेस के दिग्गज नेता इस पर तंज कस रहे हैं। माना जा रहा है कि अगर नवंबर में विधानसभा के चुनाव होते हैं तो इन मंत्रियों का कार्यकाल सिर्फ 3 महीने का होगा.10 अक्टूबर के आसपास आचार संहिता लगने की भी खबर है। इस हिसाब से इन मंत्रियों को स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए सिर्फ डेढ़ महीने मिलेंगे।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रिमंडल में पूर्व सीएम उमा भारती के भतीजे राहुल लोधी, राजेंद्र शुक्ला और गौरी शंकर बिसेन को जाति एवं क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से चुनाव के ठीक पहले जगह दी है। इसमें से राहुल लोधी और गौरी शंकर बिसेन राज्य के सबसे बड़े वोट बैंक (ओबीसी) से आते है। वहीं, राजेंद्र शुक्ला शिवराज कैबिनेट में बड़े ब्राह्मण चेहरे के रूप में शामिल किए गए हैं।
बता दें कि रीवा से विधायक राजेंद्र शुक्ला विंध्य, बालाघाट से विधायक गौरीशंकर बिसेन महाकोशल और टीकमगढ़ जिले के खरगापुर से विधायक राहुल लोधी बुंदेलखंड का प्रतिनिधित्व करेंगे। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि फिलहाल इन तीनों ही इलाकों में बीजेपी के लिए अगले चुनाव के लिहाज से काफी मुश्किलें हैं। राजेन्द्र शुक्ला को विंध्य क्षेत्र का बड़ा ब्राम्हण चेहरा होने के साथ सीएम शिवराज सिंह चौहान से नजदीकी का फायदा भी मिला है। उन्हें मंत्री बनाकर विंध्य इलाके के ब्राह्मण वोट बैंक को साधने की कोशिश की गई है. विंध्य इलाके में करीब 15 प्रतिशत ब्राह्मण वोटर्स हैं। विंध्य के पेशाब कांड से नाराज ब्राह्मण वोटरों को मनाने के लिए भी राजेंद्र शुक्ला की ताजपोशी करने की चर्चा हो रही है।
विधायक गौरीशंकर बिसेन और राहुल लोधी सूबे के सबसे बड़े वोट बैंक यानी ओबीसी वर्ग से आते हैं। प्रदेश में ओबीसी की आबादी तकरीबन 50 प्रतिशत है। खरगापुर से विधायक राहुल लोधी के बारे में कहा जाता है कि उनकी पैरवी पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने जमकर की थी। राहुल लोधी बीजेपी की दिग्गज नेता उमा भारती के भतीजे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि बुंदेलखंड को प्रतिनिधित्व देने के साथ राज्य के बड़े लोधी वोट बैंक को साधने के लिए राहुल लोधी को राज्य मंत्री के रूप में शिवराज कैबिनेट में शामिल किया गया है। महाकौशल, बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल अंचल में लोधी वोट बड़ी संख्या में है।
बीजेपी के सीनियर और मुखर लीडर गौरीशंकर बिसेन 7 बार के विधायक हैं। बिसेन बालाघाट की मजबूत पवार ओबीसी जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी 35 फीसदी आबादी बालाघाट के अलावा महाकौशल के अन्य जिलों में भी है। जाहिर है विकास के नाम पर नहीं जाति समीकरण के नाम पर बीजेपी चुनाव लड़ती दिख राइ है लेकिन विपक्ष के दाव से बेहद परेशान भी है।
मध्यप्रदेश चुनाव : तीन विधायक बने तीन महीने के लिए मंत्री ,क्या बीजेपी को मिलेगा लाभ ?
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