अखिलेश अखिल
तमिलनाडु के राज्यपाल एन रवि उस समय विपक्ष के निशाने पर आ गए जब जब उन्होंने कहा कि सेक्युलरिज्म यूरोपीय अवधारणा है, न कि भारतीय। राज्यपाल के इस बयान के सामने आते ही विपक्षी डीएमके ,कांग्रेस और अन्य दलों ने राज्यपाल पर जोरदार हमला किया है। विपक्षी दलों ने राज्यपाल एन रवि के बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस ने कहा कि एक उच्च संवैधानिक पद बैठे व्यक्ति को ऐसे बयान शोभा नहीं देते और उन्हें संविधान पढ़ना चाहिए।
बता दें कि आर एन रवि ने सोमवार को कन्याकुमारी में एक कार्यक्रम में कहा था, “धर्मनिरपेक्षता एक यूरोपीय अवधारणा है, न कि भारतीय…हमें भारत में ऐसी अवधारणा की जरूरत नहीं है। इसकी उत्पत्ति यूरोप से हुई थी, क्योंकि वहां चर्च और राजा के बीच संघर्ष था।भारत को धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता नहीं है।” उन्होंने यह भी कहा कि, “इस देश के लोगों के साथ बहुत सारे धोखे किए गए हैं और उनमें से एक यह है कि उन्हें धर्मनिरपेक्षता की गलत व्याख्या दी गई है।”
राज्यपाल आरएन रवि के बयान पर तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके के प्रवक्ता टीकेएस एलंगोवन ने जवाब दिया है। उन्होंने कहा, “राज्यपाल को भारत का संविधान पढ़ना चाहिए… अनुच्छेद 25 कहता है कि धर्म की स्वतंत्रता होनी चाहिए, जिसे शायद वह नहीं जानते। उन्हें संविधान को पूरा पढ़ना चाहिए। हमारे संविधान में 22 भाषाएं सूचीबद्ध हैं।”
वहीं, कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने भी इस पर टिप्पणी की है। उन्होंने अपने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि “विदेशों में धर्मनिरपेक्षता का विचार अलग हो सकता है, भारत में हम सभी अन्य धर्मों का सम्मान करते हैं, हम सभी अन्य परंपराओं का सम्मान करते हैं और हम सभी अन्य प्रथाओं का सम्मान करते हैं और यही भारत में धर्मनिरपेक्षता का विचार है… क्या राज्यपाल हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं?”
सीपीएम नेता वृंदा करात ने कहा कि, “राज्यपाल ने संभवतः संविधान के नाम पर शपथ ली है। धर्मनिरपेक्षता हमारे संविधान का अभिन्न अंग है और धर्म को राजनीति से अलग रखना भी इसके भीतर निहित है। कल, वह दावा कर सकते हैं कि भारत का संविधान ही एक विदेशी अवधारणा है। यह आरएसएस की समझ को दर्शाता है। यह शर्मनाक है कि ऐसे व्यक्ति को तमिलनाडु जैसे महत्वपूर्ण राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया गया है।”
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने भी आर एन रवि के बयान पर टिप्पणी की है। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा है कि इस तरह तो संघवाद भी एक यूरोपीय अवधारणा थी। एक व्यक्ति, एक वोट भी एक यूरोपीय अवधारणा थी। क्या हम यह घोषित कर दें कि कुछ लोगों को वोट देने का अधिकार नहीं होगा? लोकतंत्र भी एक यूरोपीय अवधारणा थी जो महाराजाओं और राजाओं द्वारा शासित भारत को ज्ञात नहीं थी। क्या हम यह घोषित कर दें कि इस देश में लोकतंत्र को खत्म कर दिया जाएगा?
उधर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता डी राजा ने भी इस मामले में प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि डॉ बी आर अम्बेडकर ने कहा था कि अगर हिंदू राष्ट्र वास्तविकता बन गया तो देश को संकट का सामना करना पड़ेगा।
सिर्फ तथ्य के लिए बता दें कि संविधान की मूल प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं था। इसे संविधान के 42वें संशोधन के जरिए शामिल किया गया था। बीजेपी और अन्य दक्षिणपंथी संगठन लगातार धर्मनिरपेक्षता शब्द से चिढ़ते रहे हैं और यहां तक कहते रहे हैं कि जब भी मौका मिलेगा वे न सिर्फ संविधान की प्रस्तावान बदलेंगे बल्कि संविधान ही बदल देंगे।
पिछले दिनों जब नए संसद भवन का उद्घाटन हुआ था और सभी सांसदों को संविधान की प्रति दी गई थी तो उसमें संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता शब्द नहीं था, जिस पर विपक्ष ने तीखी आपत्ति दर्ज कराई थी।