बीरेंद्र कुमार झा
धार्मिक स्थलों के प्रबंधन के मामले में सुप्रीम कोर्ट सरकार के काम में दखल देने के मूड में नहीं है। हाल ही में दायर हुई एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने साफ कर दिया है कि वह धार्मिक स्थलों के प्रबंधन में खास नीति बनाने के निर्देश सरकार को नहीं देंगे ।याचिका में मांग की गई थी कि हिंदुओं, बौद्ध, सिख और जैन समुदाय को भी मुसलमान की तरह पूजा स्थल के प्रबंधन के अधिकार मिलने चाहिए ।
याचिका अस्पष्ट
याचिका पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ,जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस प्रशांत मिश्रा सुनवाई कर रहे थे।याचिका एडवोकेट अश्वनी उपाध्याय की तरफ से दाखिल की गई थी। सोलसीटर जनरल तुषार मेहता की ओर से भी याचिका को अस्पष्ट करार दे दिया गया। इसमें कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हर धर्म को अपने धार्मिक स्थल के प्रबंधन का अधिकार है।
क्या बोला कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि धार्मिक स्थलों के संबंध में सरकार को हम कोई दिशा निर्देश नहीं देंगे कि आप एक्स करें या बाय करें या जेड करें। यह मामला पूरी तरह से नीति और संसद का है।हम विधायिका के क्षेत्र में नहीं जाएंगे। सी जेआई ने याचिकाकर्ता को सरकार से बात करने की सलाह दी। याचिकाकर्ता का कहना था कि दिल्ली में कालका मंदिर का प्रबंध सरकार करती है ,लेकिन जामा मस्जिद का नहीं।
यह तीन याचिकाएं हुई स्वीकार
शीर्ष न्यायालय में तीन और याचिकाएं दाखिल हुई थी,जहां तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पुडुचेरी में धार्मिक स्थलों पर सरकार के कब्जे को चुनौती दी गई थी। कोर्ट का कहना था की इन याचिकाओं में राज्य की तरफ से बनाए गए कानून को चुनौती दी गई है।कोर्ट इस मामले को देखेगी। इन तीन याचिकाओं के लिए कोर्ट में एडवोकेट सीएस वैद्यनाथन, एडवोकेट साई दीपक और एडवोकेट सुब्रमण्यम स्वामी पेश हुए थे।