वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाली लगभग 100 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है।याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अविलंब अंतरिम राहत देने की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया और कानून के संचालन पर रोक लगाने से मना कर दिया है।इसका अर्थ यह हुआ कि कोर्ट ने अपीलों पर सुनवाई करने से तो इनकार नहीं किया, लेकिन इसकी शर्तों को मान इस कानून पर बिना पूरा विचार किए अंतिम रोक लगाने से भी इनकार कर दिया।साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इससे जुड़े कुछ मुद्दों पर केंद्र सरकार से भी जवाब मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह पूछा है कि वक्फ बोर्ड में दो गैर मुसलमानों को शामिल करने की बात कही गई है, तो क्या हिंदू मंदिरों के ट्रस्ट में सरकार मुसलमानों को शामिल करेगी? वक्फ (संशोधन) अधिनियम में यह प्रावधान है कि 22 नियुक्त सदस्यों में से दो गैर मुसलमान होंगे, वहीं राज्य के बोर्ड में भी दो गैर मुसलमानों को नियुक्त करने की बात कही गई है। सुप्रीम कोर्ट में वक्फ बाय यूजर का मसला भी उठा, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर आप वक्फ बाय यूजर को हटा रहे हैं, तो यह एक मसला है।देश में अधिकतर वक्फ मस्जिदें 14 वीं और 15 वीं सदी में बनी हैं और अब उनका डीड मांगना सही नहीं होगा, क्योंकि वह किसी के पास मौजूद नहीं होगा।कोर्ट ने इन्हीं दो मसले पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।
वक्फ बाय यूजर के अनुसार अगर कोई व्यक्ति या संस्था लंबे समय से किसी संपत्ति का उपयोग कर रही है, तो उसे उक्त संपत्ति को वक्फ करने का अधिकार है।पुराने वक्फ के नियम अनुसार यही व्यवस्था लागू थी, लेकिन 2025 के संशोधन में इस प्रावधान यानी वक्फ बाय यूजर को हटा दिया गया है। इसका मतलब यह है कि अब इस्तेमाल के आधार पर कोई संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी।इस मसले पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। वक्फ संशोधन अधिनियम पर अब कोर्ट में फिर सुनवाई होगी।
वक्फ संशोधन अधिनियम को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पांच अप्रैल को मंजूरी दी थी।उससे पहले इसे लोकसभा और राज्यसभा से पारित किया गया था।विधेयक के पारित होते ही कांग्रेस पार्टी, एआईएमआईएम नेता और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था और इसे मौलिक अधिकारों का हनन बताया गया था।इसके जवाब में केंद्र ने 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दायर किया, जिसके तहत कोर्ट से यह अनुरोध किया गया है कि किसी भी तरह आदेश जारी करने से पहले सरकार का पक्ष सुना जाए।