अखिलेश अखिल
सरकारी दावे तो बहुत कुछ के हैं लेकिन सच्चाई यही है कि जम्मू कश्मीर और खाकर घाटी के इलाको में आज भी बड़े स्तर पर आतंकी बैठे हुए हैं। उनके शक्ल बदले हुए हैं ,उनके ठिकाने बदले हुए हैं और उनके इलाके भी बदले हुए हैं। अब आतंकी जैश और लश्कर के नाम पर यहां काम नहीं करते। इन आतंकी संगठनों ने अपने शैडो संगठनों को यहाँ उतार रखा है। और शैडो संगठन में घाटी के बहुत से युवा आज भी काम करते हैं। ये शैडो संगठन आज भी घाटी में ही रहते हैं और किसी को भनक तक नहीं लगती। माना जा रहा है कि जब तक जम्मू कश्मीर के घाटी के युवाओं के मन में देश के प्रति प्यार नहीं होगा और वे जबतक पाकिस्तानी आतंकी संगठनों से जुड़े रहेंगे तब तक कश्मीर घटोई में शांति नहीं आ सकती।
सुरक्षा एजेंसी सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान लगातार आतंकी संगठनों को मदद कर रहा है और लश्कर और जैश जैसे आतंकी संगठनों के शेडो संगठनों को लश्कर और जैश के आतंकी पाकिस्तान से बैठकर ऑपरेट कर रहे हैं। एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर आने के बाद पाकिस्तान फिर से खुलकर आतंकियों को सपोर्ट करने लगा है। ऐसा नहीं था कि पाकिस्तान ने पहले आतंकियों को सपोर्ट करना बंद किया था लेकिन तब वह यह दिखाने की कोशिश करता था।
यह भी बता दें कि ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) साल 2020 में कोविड-19 के बीच सामने आया था। यह लश्कर ए तोएबा का ही शेडो संगठन है। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि लश्कर के लोग ही इसे कराची में बैठकर ऑपरेट करते हैं और घाटी में मौजूद आतंकियों के जरिए इस नए संगठन को चलाने की कोशिश करते हैं। इसी तरह पीएपीएफ जैश का शेडो संगठन है जो कि 2019 में अस्तित्व में आया । भारत सरकार ने इसी साल यूएपीए के तहत 4 संगठनों को आतंकी संगठन करार दिया था। गृह मंत्रालय ने संसद में बताया था कि द रजिसटेंस फ़्रंट यानी टीआरएफ , पीपल्स एंटी फ़ासिस्ट फ़्रंट पीएपीएफ , जम्मू कश्मीर गजनवी फ़ोर्स यानी जेकेजीएफ और खालिस्तान टाइगर फोर्स यानी केटीएफ शामिल आतंकी संगठनों की लिस्ट में शामिल है।
आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन में सेना के दो अधिकारियों के शहीद होने के बाद यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या आतंकी अब ज्यादा ट्रेंड हो गए हैं। सेना के एक अधिकारी के मुताबिक आंतकियों को दरअसल जगह, वक्त, सरप्राइज और टेरेन का फायदा मिलता है। ये चीजें सुरक्षा बलों के लिए चुनौती हैं और इसका फायदा आतंकी उठाते हैं। सुरक्षा बल हमेशा मुस्तैद रहते हैं लेकिन आतंकी अपनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए अपने हिसाब से वक्त और जगह चुनता है तो पहला सरप्राइज फैक्टर तो उसके पक्ष में होता ही है। आतंकी छुपने के लिए ऐसी जगह चुनता है जहां टेरेन का उसे फायदा मिल सके।
कश्मीर घाटी यानी नॉर्थ ऑफ पीर पंजाल में सुरक्षा एजेंसियों के जबरदस्त दबाव की वजह से आतंकियों ने पिछले काफी वक्त से साउथ ऑफ पीर पंजाल का रूख किया है। पुंछ, रजौरी का इलाका साउथ ऑफ पीर पंजाल में आता है। लेकिन अनंतनाग में आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन में सेना के दो अधिकारियों की शहादत और लगातार चल रही मुठभेड़ से साफ है कि आंतकियों का साउथ कश्मीर और नॉर्थ ऑफ पीर पंजाल में पूरा सफाया नहीं हुआ है। यहां अभी भी उन्हें स्थानीय लोगों से मदद मिल रही है और वह किसी भी तरह से जम्मू-कश्मीर में आतंक की जड़ों को फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।