बीरेंद्र कुमार झा
भारत और सऊदी अरब के बीच रिश्तों को लेकर इन दिनों खूब चर्चा हो रही है ।खास तौर पर हिंदुत्व समर्थक कहे जाने वाले नरेंद्र मोदी सरकार और इस्लामी दुनिया के झंडावरदार सऊदी अरब की रिश्तो को लोग हैरानी से देखते हैं, लेकिन बीते करीब 8 सालों से यह अब यह एक पहेली न रहकर कूटनीति की एक सच्चाई बन गई है।हालांकि कूटनीति की इस सच्चाई से वह पाकिस्तान परेशान दिखता है जो सऊदी अरब को अपना करीबी मानता रहा है और उससे कश्मीर समेत कई मुद्दों पर अपना पक्ष लेने की उम्मीद रखता है। भारत और सऊदी अरब के बीच जिस कॉरिडोर पर सहमति बनी है वह भारत और सऊदी अरब के बीच के दोस्ती के नए गलियारे की भी तस्दीक करता है।
कच्चे तेल के निर्यात के लिए भारत से अच्छे संबंध जरूरी
पाकिस्तान के जानकार भी अब इस बदलाव को अपने देश के दुनिया में साइड लाईन होने के तौर पर देखते हैं।पिछले दिनों डॉन अखबार में लिखा था कि अब हमारे मुसलमान भाई भी कारोबार के लिए भारत के साथ जा रहे हैं। इसे लेकर पाकिस्तान के पत्रकार रऊफ क्लासरा की टिप्पणी अहम है।वे कहते हैं कि सऊदी अरब को यह पता चल गया है कि दुनिया आने वाले अगले कुछ सालों में कच्चे तेल का रिप्लेसमेंट तलाश लेगी। फिलहाल के लिए भारत और चीन जैसे देश कच्चे तेल की सबसे बड़े आयातक हैं,इसलिए सऊदी अरब के लिए मजबूरी है कि वह भारत से अच्छे रिश्ते बनाए रखे।
सऊदी अरब से रिश्तों में पाकिस्तान ने खुद मार ली पैरों पर कुल्हाड़ी
माना जाता है कि पाकिस्तान ने सऊदी अरब के साथ रिश्तों में खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी। दरअसल कुछ साल पूर्व पाकिस्तान तुर्की और मलेशिया के साथ मिलकर एक अलग ब्लॉक बनाना चाहता था। इसे सऊदी अरब ने अपने खिलाफ समझा और तब से ही पाकिस्तान को लेकर उसका नजरिया मजहबी तौर पर भी बदल गया है। कहा जाता है कि पाकिस्तान के हुकुमरान अभी भी यह नहीं समझ पा रहे हैं किअब दुनिया बदल गई है और मजहबी संघर्ष की जगह कारोबारी प्रतिस्पर्धा ने ले ली है।इसलिए सऊदी अरब का फोकस अब धार्मिक नेतृत्व की बजाय मजबूत अर्थव्यवस्था के तौर पर खुद को विकसित करने पर है।