सुमित्रा देवी, बंगाली सिनेमा की एक मशहूर अभिनेत्री थीं, जिनका करियर 1940 और 1950 के दशक में पीक पर था।उन्होंने न केवल बंगाली बल्कि हिंदी फिल्मों में भी अपने अभिनय का जादू बिखेरा था।उनकी अदाओं ने उन्हें सिनेमा की दुनिया में एक अलग पहचान दी।
सुमित्रा देवी का असली नाम नीलिमा चट्टोपाध्याय था। वे पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मी थीं।एक भयंकर भूकंप के कारण इनके परिवारजनों को अपना घर और संपत्ति मुजफ्फरपुर में छोड़कर कोलकाता आना पड़ा था।
सुमित्रा देवी को बचपन से ही फिल्मी दुनिया से लगाव था।उन्होंने गुप्त रूप से अपने भाई की मदद से न्यू थियेटर्स से अभिनय करियर की शुरुआत की थी।उनकी पहली ही फिल्म ‘संधि’ (1944) ने उन्हें एक टैलेंटेड एक्ट्रेस के रूप में स्थापित कर दिया।इसके बाद वे लगातार अपनी फिल्मों में और ज्यादा प्रतिभावान हीरोइन के रूप में निखरती चली गईं।
सुमित्रा देवी ने अपने करियर में लगभग साठ फिल्मों में काम किया।उनकी आंखें उनकी सबसे बड़ी ताकत थीं, जो उनके हर किरदार में जान डाल देती थीं। उनके किरदार हमेशा मजबूत और बगावती हुआ करते थे।
सुमित्रा देवी का फिल्मी करियर बड़ी उपलब्धियों से भरा रहा। उन्होंने ‘मशाल’ (1950), ‘दीवाना’ (1952), ‘जागते रहो’ (1956) जैसी कई हिंदी और बंगाली फिल्मों में काम किया।उनकी खूबसूरत आंखों और दमदार अभिनय ने उन्हें बंगाली सिनेमा की रानी बना दिया।1956 की फिल्म ‘साहेब बीबी गोलाम’ में उनका अभिनय आज भी याद किया जाता है।
दिग्गज अभिनेता शम्मी कपूर ने एक बार कहा था कि सुमित्रा देवी को सिर्फ ‘खूबसूरत’ कहकर उनकी तारीफ करना गलत होगा।उनकी आंखों में जो जादू है, वो अनकहा है,इनकी फिल्में दमदार हैं जो फिल्मों के जरिए लोगों के दिल में बस जाते हैं।
आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी एक्टिंग और उनकी पावरफुल परफॉर्मेस आज भी हमारे साथ है। आज उनकी पुण्यतिथि पर हार्दिक श्रद्धांजलि ।