भारतीय संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष शब्द का उल्लेख आता है। बेशक इसका आशय अधार्मिक होने से नहीं है ,बावजूद इसके चुनाव के समय और इसके अलावा अन्य कई अवसरों पर भी कई राजनीतिक दलों के नेताओं के द्वारा इसे लेकर सनातन धर्म की तरह-तरह से आलोचना की जाती है। कई राजनीतिक दल के नेता इस्लाम और अन्य पंथों को तो संविधान सम्मत मानते हैं, लेकिन सनातन धर्म को लेकर अक्सर आलोचना करते नजर आ जाते हैं। ऐसे में उदय भारतम जैसा एक नवसृजित राजनीतिक दल जब अपने प्रतीक चिन्ह ‘चक्र ‘ में धर्म भारतम्,सनातन भारतम् जैसे वाक्यांशों का प्रयोग करता हैं तो राजनीतिक दलों के साथ – साथ आम जनमानस और मतदाता भी सनातन, धर्म और राजनीति को लेकर विचार मंथन करने लग जाता है। आईए जानते हैं सनातन धर्म की उत्पत्ति और विकास के साथ-साथ विभिन्न काल की राजनीति में इसके प्रयोग, भारतीय संविधान में इसका स्थान और संप्रति विभिन्न राजनीतिक दलों की इसे लेकर विचार के बारे में।
सृष्टि के प्रारंभ में जब मनुष्य एकांतवासी था और गुफाओं तथा वनों की कंदराओं में निवास करता था,तब इन्हें किसी से कुछ लेना – देना नहीं था,लेकिन तब भी कुछ चीजें ऐसी थीं ,जिसे इन्हें नियमित रूप से पालन करना होता था।
कालांतर में मनुष्य टोली बनाकर रहने लगा। तब कुछ चीजों को इन्हें अनिवार्य रूप से करना होता था। यह धर्म था। धर्म को लेकर कहा गया है धारयति इति धर्म:। यानि धर्म कोई पंथ या संप्रदाय नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति है।धर्म शास्त्रों में इस बात की वृहद चर्चा है कि कौन सी चीज हमें धारण करना चाहिए अर्थात हमारा धर्म हो और कौन सी चीज हमें नहीं करना चाहिए अर्थात जो अधर्म है।
अब तक लोगों के जीवन के दो चरण व्यक्तिक और सामाजिक पूरे हो गए थे, और अब जरूरत थी, राज्य के निर्माण की ताकि मनुष्य सुचारु और सुखमय ढंग से सर्वांगीण विकास करता रहे, कोई किसी को प्रताड़ित न करे।इन जरूरत को पूरा करने के लिए राज्य बने,और राज्य के सफल संचालन के लिए, राज्य के अंदर रहने वाले लोगों के सर्वांगीण विकास के लिए नीतियां बनाई गई जो धारण करने योग्य अर्थात धर्म पर आधारित थीं ,साथ ही अधार्मिक कार्यों के लिए दंड विधान भी बनाए गए।
राज्यों का निर्माण मुख्य रूप से दो मूल सिद्धांतों के आधार पर किया गया था। एक प्रकार का राज्य गणराज्य कहलाया जो उस राज्य में रहने वाले निवासियों के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से या फिर उनके द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप संचालित होते थे। दूसरे प्रकार का राज्य साम्राज्य कहलाया जो सम्राट या राजा के द्वारा संचालित किए जाते थे। हालांकि दोनों प्रकार के राज्यों की स्थापना के सिद्धांत अलग-अलग थे, लेकिन उनका मूल कार्य एक ही सिद्धांत अर्थात धर्म पर आधारित था।दोनों ही प्रकार के राज्य अर्थात गणराज्य और साम्राज्य को अपनी प्रजा के सम्यक विकास के लिए उन नीतियों का पालन करना और करवाना अनिवार्य था जो उनके और उनकी प्रजा के सर्वांगीण विकास के लिए धारण करने योग्य हो अर्थात धर्म हो और जो कोई धर्म आधारित नीतियों का उल्लंघन अर्थात अधर्म करता था उसके लिए दंड के विधान बनाए गए थे।
रामायणकालीन राजनीति में धर्म के प्रयोग को लेकर लिखा है: –
राजनीति बिनु धन बिनु धर्मा , हरहीं समर्पे बिनु सतकर्मा।
अर्थात बिना धर्म से कमाए धन और अच्छी नीति ( धर्म आधारित) के बिना राजनीति तथा बिना हरि को समर्पित किए सत्कर्म फलदाई नहीं होते हैं।
बात महाभारत कालीन राजनीति की करें तो वहां तो धर्म और अधर्म के आधार पर ही महाभारत युद्ध हुआ था। गीता में श्री कृष्ण ने कहा भी है
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं प्रकट होता हूँ (अवतरित होता हूँ)|
साधुजनों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना करने के लिए, मैं हर युग में प्रकट होता हूँ |
बात भारतीय संविधान की की जाए तो भारतीय संविधान की प्रस्तावना में पंथ निरपेक्षता शब्द लिखा हुआ है। इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 25 और 14 में भी धर्म को लेकर विचार प्रकट किया गया है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के मुताबिक, सभी लोगों को अंतःकरण की आज़ादी और धर्म को मानने, आचरण करने, और उसका प्रचार करने का अधिकार है।
संविधान के अनुच्छेद 14 के मुताबिक, भारत में सभी लोगों को कानून की नज़र में बराबरी का दर्जा हासिल है। धर्म, जाति, या लिंग के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं किया जा सकता।
बात धर्म को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के विचारों की की जाय तो कांग्रेस पार्टी ने राम मंदिर से जुड़े मुकदमे में तब की सरकार की तरफ से रामलला के प्रामाणिक नहीं होने की बात की थी,राम लला विग्रह की स्थापना का भी कांग्रेस ने पार्टी के तौर पर बहिष्कार किया था। कांग्रेस ने तब की सरकार की तरफ से यह भी कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है।
समाजवादी पार्टी ने सरकार के तौर पर बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय कार सेवकों पर गोलियां चलवाई थी। अयोध्या में रामलला विग्रह की स्थापना के अवसर पर भी इसने कार्यक्रम का बहिष्कार किया था। मुसलमान को प्रसन्न करने के लिए समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह ने कहा था कि बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना के समय अगर और हिंदुओं को मरवाने की जरूरत पड़ती तो वह भी किया जाता ।
राष्ट्रीय जनता दल ने भी अयोध्या में रामलला के विग्रह स्थापना कार्यक्रम का बहिष्कार किया था। हाल के दिनों में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने मुसलमान को लेकर कहा कि वह और उनकी पार्टी इसके समर्थन में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी।
आम आदमी पार्टी ने भी अयोध्या में रामलाल विग्रह की स्थापना वाले कार्यक्रम का बहिष्कार किया था, लेकिन उसने उस दिन दिल्ली के विभिन्न स्थानों पर हनुमान चालीसा का पाठ किया था।
भारतीय जनता पार्टी लंबे समय से राम मंदिर निर्माण की बात करता आ रहा था ।अयोध्या में रामलला विग्रह की स्थापना के मुख्य यजमान की भूमिका में बीजेपी के नेता और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बैठे थे। सबका साथ,सबका विकास, सबका प्रयास की बात करने के बावजूद हिंदुओं के प्रति बीजेपी का स्पष्ट झुकाव देखा जा सकता है। फिलहाल बीजेपी का एक नारा बटोगे तो कटोगे काफी चर्चा में है।
धर्म को लेकर नवसृजित राजनीतिक दल उदय भारतम् की बात की जाए तो इसका धर्म भारतम एक वैचारिक सिद्धांत का प्रतीक है, जो सनातन दर्शन और नैतिकता के ताने-बाने को प्रदर्शित करता है। इसके मूल में, धर्म भारतम् ,धर्म की अवधारणा का समर्थन करता है, जिसमें धार्मिकता,कर्तव्य और नैतिक व्यवस्था शामिल है। एक वैचारिक सिद्धांत के रूप में यह व्यक्तिगत इच्छा या परिणामोऺं की परवाह किए बिना जीवन में अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के पालन करने के महत्व पर जोर देता है। यह नैतिक आचरण,सामाजिक सद्भाव और न्याय की वकालत करता है, जो व्यक्तियों और समाजों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम करता है। धर्म भारतम् व्यक्तियों को नैतिक सत्यनिष्ठा बनाए रखने, सही विकल्प चुनने और ज्ञान तथा सदाचार के साथ जीवन की जटिलताओं को पार करने के लिए प्रेरित करता है। अपनी कालजयी शिक्षाओं की मदद से यह नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के प्रतीक के रूप में गूंजता रहता है।यह संस्कृतियों में और पीढ़ियों में विचारधाराओं और विश्व दृष्टिकोण को आकार देता है।