झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता और मुख्यमंत्री पद की लोलुपता का आलम यह है कि बिहार से बंटकर झारखंड के अलग राज्य बनने के अब तक के 24 वर्ष के दौरान राज्य में 13 मुख्यमंत्री बन चुके हैं और वह भी तब जबकि झारखंड में 3-3 बार राष्ट्रपति साधन भी लग चुका है। बेल पर जेल से निकलने के 1 सप्ताह के अंदर ही 4 जुलाई को हेमंत सोरेन अपनी ही पार्टी की मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री पद से हटाकर खुद मुख्यमंत्री के आसन पर जा बैठे। गौरतलब है कि झारखंड हाई कोर्ट से हेमंत सोरेन को 28 जून को जमानत मिली। बेल पर जेल से बाहर आने के बाद हेमंत सोरेन ने पहले तो पॉलिटिकल माइलेज लेने के लिए बीजेपी पर यह कहकर दहाड़ना शुरू किया कि उसने गलत ढंग से इन्हें जेल में डलवा दिया था।इसके बाद 30 जून को हेमंत सोरेन तत्कालीन मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के साथ प्रसिद्ध संथाल हूल की स्थली भोगनाडीह पहुंचे। तब तक चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री पद से हटाने और उसकी जगह हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने को लेकर कोई चर्चा नहीं थी।सिर्फ बीजेपी वाले हेमंत सोरेन के हमले की धार कुंद करने के लिए हेमंत द्वारा चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री पद से हटाकर खुद के मुख्यमंत्री बनने की बात कहा करते थे।लेकिन 2 जुलाई से चंपई सोरेन के मुख्यमंत्रित्व वाली झारखंड के महागठबंधन की सरकार में तेजी से उथल -पुथल शुरू हो गया।
2 जुलाई को मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के दुमका में विभिन्न योजनाओं के उद्घाटन और शिलान्यास तथा परिसंपत्ति वितरण के कार्यक्रम को स्थगित करवाकर उन्हें सीएम आवास में बने रहने के लिए कहा गया। यहां सबसे पहले हेमंत सोरेन ने उनसे मुलाकात की और फिर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने भी उनसे मुलाकात की।इस मुलाकात के अगले दिन 3 जुलाई को मुख्यमंत्री आवास में ही महागठबंधन सरकार के विधायक दल की बैठक बुलाई गई, जिसमें सर्वसम्मति से हेमंत सोरेन को विधायक दल का नेता चुना गया।फिर 3 जुलाई की ही शाम को हेमंत सोरेन चौपाई सोरेन और महागठबंधन के घटक दल के कुछ नेताओं को लेकर राज भवन पहुंचे। यहां पहले चंपई सोरेन से मुख्यमंत्री पद का इस्तीफा दिलवाया गया और फिर हेमंत सोरेन ने राज्यपाल को 43 विधायकों के समर्थन वाला पत्र सौंपते हुए सरकार बनाने का दावा किया। राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने उन्हें गुरुवार 4 तारीख को मुख्यमंत्री बनने को लेकर सूचना देने की बात कही। इसके बाद 4 जून को हेमंत सोरेन चंपई सोरेन और कुछ अन्य नेता राज भवन पहुंचे और राज्यपाल से मुलाकात कर वापस लौटे। इसके बाद जेएमएम के पार्टी प्रवक्ता की तरफ से हेमंत सोरेन द्वारा 7 जुलाई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की बाद पत्रकारों को बताई गई, लेकिन फिर इसके कुछ ही घंटे बाद बड़े ही नाटकीय ढंग से सरकार और संगठन के बीच की परिस्थितियों बदली। इसके बाद यह जानकारी दी गई कि हेमंत सोरेन 4 जुलाई को ही मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।इसके बाद 4 जुलाई की शाम को राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री के पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।इस दौरान खास बात यह देखी गई कि इस शपथ ग्रहण कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने बिना किसी कैबिनेट के ही अकेले मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इन तमाम परिस्थितियों के बाद जिस हड़बड़ी में हेमंत सोरेन ने फिर से मुख्यमंत्री का पद संभाला,उससे कई प्रश्न झारखंड की राजनीति में उठने लगे।सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या मुख्यमंत्री के रूप में चंपई सोरेन में काबिलियत की कमी थी या उनका ज्यादा दिनों तक मुख्यमंत्री बने रहने से हेमंत सोरेन को कोई खतरा था , इसके अलावा तेजी से बदले घटनाक्रम जिसकी अंत परिणति हेमंत सोरेन द्वारा मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाने के रूप में हुई,वह सब सिर्फ हेमंत सोरेन ने किया या फिर किसी और ने हेमंत सोरेन को ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया।
पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की काबिलियत या हेमंत सोरेन के लिए उनके मुख्यमंत्री बने रहने से उत्पन्न खतरे को लेकर अगर विवेचना की जाए तो पिछले 5 महीने के उनके कार्यकाल में उन्होंने जनता में अपनी पकड़ बनाने के लिए कई कार्य करने की घोषणा की।इसमें राज्य के विभिन्न हिस्सों में कई विकाश योजनाओं के शिलान्यास,और उद्घाटन के अलावा परिसंपतियों के वितरण समेत झारखंड के सभी राशनधारी व्यक्तियों को आयुष्मान योजना से जोड़ने जैसे संपन्न हुए महत्वपूर्ण कार्य शामिल हैं,तो वही लोगों को 200 यूनिट तक फ्री बिजली देने जैसी कई घोषणाएं ऐसी हैं जो कैबिनेट से तो पास हो गई लेकिन संकल्प के अभाव में अधूरा ही रह गई क्योंकि इससे पूर्व ही इनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी,हेमंत सोरेन के हाथों छीन गई।इसी तरह सरकार और संगठन पर पकड़ बनाने के लिए उन्होंने झारखंड के मंत्रिमंडल में हेर- फेर की योजना बनाई थी, लेकिन कांग्रेस द्वारा लंगडी मार दिए जाने और हेमंत सोरेन के उनकी जगह झारखंड का मुख्यमंत्री बन जाने से उनकी यह योजना योजना भी सफल नहीं हो सकी।
बेल पर जेल से हेमंत सोरेन के निकलने से लेकर 1 सप्ताह के अंदर तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण को लेकर झारखंड में तेजी से बदले घटनाचक्र के पीछे कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी का बड़ा हाथ होने की बात भी सामने आ रही है। गौरतलब है कि इस दौरान सोनिया गांधी ने फोन पर हेमंत सोरेन से बातचीत की थी।ऐसी चर्चा है की टेलीफोन पर हुई इस बातचीत में सोनिया गांधी ने हेमंत सोरेन से फिर से झारखंड प्रदेश का कमान संभालने की बात कही थी।कांग्रेस नेतृत्व का मानना था कि सरकार के कार्यकाल खत्म होने और उसके बाद विधानसभा का चुनाव होने में बहुत कम समय है। ऐसे में चंपई सोरेन की जगह हेमंत सोरेन को सरकार में मुख्यमंत्री के शीर्ष पद में आना चाहिए।
वही चंपई सोरेन को हटाकर हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के पीछे हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा के अंदर भी खलबली मची हुई थी। हेमंत सोरेन और उनके समर्थक नेताओं का मानना था की विधानसभा चुनाव में झारखंड में सत्ताधारी दल के भीतर दो पावर सेंटर ना रहे। सरकार और संगठन का नेतृत्वकर्ता एक ही व्यक्ति हो। इसी फार्मूले के तहत आने वाले विधानसभा में सरकार और संगठन दोनों की कमान खुद हेमंत सोरेन अपने पास रखना चाहते थे और चंपई सोरेन से मुख्यमंत्री पद का इस्तीफा दिलवाकर उनकी जगह खुद मुख्यमंत्री बन उन्होंने ऐसा किया भी।
सरकार का मुखिया बनकर अब हेमंत सोरेन विधानसभा चुनाव अभियान में निकलेंगे।आगामी विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री के साथ-साथ चुनावी मोर्चे पर सिर्फ झारखंड मुक्ति मोर्चा ही नहीं,बल्कि इंडिया गठबंधन का भी नेतृत्व करेंगे।हेमंत सोरेन विधानसभा चुनाव को लेकर अपनी सोच पर आगे चल रहे हैं, ताकि सहानुभूति वोट और अपने कार्यों तथा लोक लुभावन वायदों के आधार पर 2024 की अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में फिर से जीत हासिल कर सकें ।अब इसमें उन्हें कितनी सफलता मिलेगी है यह तो वक्त ही बताएगा।