बीरेंद्र कुमार झा
राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने खूंटी में आयोजित स्वयं सहायता समूह महिला सम्मेलन में बृहस्पतिवार को कहा कि मैं उड़ीसा की हूं, लेकिन मेरे शरीर में खून झारखंड का बह रह है। देश की आजादी में खूंटी की धरती पर जन्म में भगवान बिरसा मुंडा की योगदान के साथ-साथ फूलों झानो को भी उन्होंने याद किया। राष्ट्रपति ने कहा कि झारखंड की महिलाओं में अदम्य शक्ति है।वह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती है।सामाजिक और आर्थिक विकास में योगदान देती है। राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि उन्हें जनजाति परिवार में जन्म लेने पर गर्व है क्योंकि उनकी कई परंपराएं हैं जो किसी और समाज में नहीं है। उन्होंने कहा कि महिला समूह की महिलाओं के चेहरे पर खुशी देखकर वे बेहद पसंद है।
एसएचजी की महिलाओं को देखकर बहुत खुश हूं
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्वयं सहायता समूह को मिलने वाली सुविधाओं की बात की ।उन्होंने कहा महिला समूह के उत्पादों को मैंने देखा है।मैने उनके चेहरे की मुस्कान देखी है। मैंने पूछा आपको सालाना कितना मिलता है ,आप खुश हैं ? उन्होंने कहा हां। मैं उनके चेहरे को देख कर अपना बचपन याद करने लगी ।महिलाओं को देखकर थोड़ी सी ईर्ष्या भी थी। शायद मेरे पास भी बचपन में वही ज्ञान होता। इसके बाद वे बचपन की यादों में खो गईं। राष्ट्रपति ने कहा कि गांव से 5 – 6 किलोमीटर दूर हमारे खेत थे।खेतों के मेड़ों पर महुआ के 20-22 पेड़ थे। हैं रात को 2 बजे उठकर महुआ चुनने जाते थे।मेरी दादी ले जाती थी।
अनाज नहीं होने की स्थिति में महुआ था भोजन का एक विकल्प
उन्होंने कहा कि महुआ चुनकर उसे सुखाकर पोटोम बंद कर रखते थे। साल भर में उस में कीड़ा लग जाता था ।कई बार हमारे पास अनाज नहीं होता था, तो हम महुआ को उबालकर खा लेते थे। तब महुआ 20- 25 पैसे प्रति किलो बिकता था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि आज हमारी बहने महुआ के लड्डू , केक और अन्य चीजें बना रहे हैंऔर उसे ऊंचे कीमत पर बाजार में बेच रही है। हमारे पास तब यह ज्ञान नहीं था।हम भी फॉरेस्ट प्रोड्यूस कलेक्ट करते थे, लेकिन उसका मूल्यवर्धन कैसे होगा, इसकी जानकारी हमें नहीं थी ।आज सरकार महिला समूह की मदद कर रही है। आज की महिलाएं सिर्फ धान की खेती पर निर्भर नहीं है।
सिर्फ सरकार के भरोसे ना रहे खुद भी पहल करें
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि मुझे महिला और आदिवासी समाज में जन्म लेने पर गर्व है। देश में महिलाओं के योगदान की अनगिनत प्रेरक कहानियां हैं। अर्थव्यवस्था, विज्ञान और अनुसंधान से लेकर खेल और अन्य क्षेत्रों में हमारी बहन बेटियों ने अमूल्य योगदान दिया है। कितनी महिलाएं हैं, जो प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद आगे बढ़ रही हैं।भारत के लोकतंत्र की शक्ति हैं कि मैं आज आप सबके बीच राष्ट्रपति के रूप में उपस्थित हूं ।राष्ट्रपति के रूप में देश भर में शिक्षण संस्थानों के दीक्षांत समारोह में मैंने देखा है कि हमारी बेटियां बेटों से अच्छा कर रही हैं। राष्ट्रपति भवन में आयोजित पद्म पुरस्कार हो या कोई अन्य कार्यक्रम हर जगह मुझे महिलाओं की अदम्य शक्ति का एहसास हुआ है। उन्होंने कहा कि लोगों को सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं रहना चाहिए। सरकार उनकी मदद के लिए है, लेकिन आपको खुद भी पहल करना चाहिए।
महिलाएं अपनी प्रतिभा को पहचानें
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि किसी भी काम में सफल होने के लिए जरूरी है कि आप अपनी प्रतिभा को पहचाने ।दूसरों से अपनी तुलना न करें ।आपके अंदर असीम शक्ति है, उस शक्ति को पहचानें और उसे जगाएं। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मैंने एक लेख लिखा था ‘ हर महिला की कहानी’ मेरी कहानी है’ इसमें मैंने लिखा था कि एक शांतिपूर्ण और समृद्ध समाज के निर्माण के लिए महिला पुरुष समानता पर आधारित पूर्वाग्रह को समझना और उनसे मुक्त होना जरूरी है यदि महिला को मानवता की प्रगति में बराबर का भागीदार बनाया जाता तो हमारी दुनिया अधिक खुशहाल होती। झारखंड की परिश्रमी बहने और बेटियां देश में आर्थिक योगदान देने में सक्षम है। मैं झारखंड की धरती से ही जुड़ी हुई हूं।
हम आदिवासी भाग्यशाली हैं, ना दहेज लेते हैं, ना देते हैं
राष्ट्रपति ने कहा कि जनजाति समाज समाज में दहेज प्रथा नहीं है। हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमने इस समाज में जन्म लिया है। हम बिना दहेज के बहु लाते हैं और बिना दहेज के बेटी देते हैं। अन्य समाज इसका अनुकरण करना चाहते हैं,लेकिन कर नहीं पाते हैं।राष्ट्रपति ने दहेज को एक राक्षस करा दिया, जिससे सभ्य समाज भी बच नहीं पा रहा है। उन्होंने विश्वास जताया कि झारखंड में महिलाओं के नेतृत्व में विकास की नई गाथाएं लिखी जाएगी।
झारखंड की महिलाएं सशक्त हैं आत्मनिर्भर हैं
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि राष्ट्रपति बनने के बाद उन्हें देश के सभी राज्यों में जाने का अवसर मिला।बहुत सी महिला समूह से मिली। उन्होंने कहा कि झारखंड आदिवासी बहुल राज्य हैं।यहां 26 फ़ीसदी आबादी आदिवासियों की है, यानि 1 करोड़ से अधिक आदिवासी हैं इस राज्य में, इनमें आधी महिलाएं हैं। झारखंड की महिलाएं सशक्त हैं, ये आत्मनिर्भर हैं और अपने पूरे परिवार को अन्य राज्यों से आगे रखती हैं ।यह सब महिला समूह की वजह से ही संभव हो पाया है।
राष्ट्रपति ने सुनाई एक कहानी
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने संबोधन के दौरान एक कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि एक महिला कंप्यूटर लेकर आई, उसने एक-एक कर राज्य और केंद्र सरकार की योजनाओं के बारे में मुझे बताना शुरू किया। मैं उसको देखकर दंग रह गई। मैंने उससे पूछा कितनी पढ़ी लिखी हो , तो उसने बताया ज्यादा नहीं नवमी तक।उसको देखकर मुझे बुरा लगा। मैं सोचने लगी कि मैं कितना पीछे हूं।राष्ट्रपति ने विभिन्न क्षेत्रों में पद्म पुरस्कार प्राप्त करने वाली झारखंड की जमुना टुडू,छूटनी महतो और दीपिका कुमारी के अलावा महिला खिलाड़ियों ब्यूटी डूंगडूंग प्रमिदिनी लकड़ा और दीपिका सेरेंग की उपलब्धियों का बखान किया।
राष्ट्रपति ने बिरसा मुंडा और डोंबारीबुरु गोलीकांड को याद किया
द्रौपदी मुर्मू ने भगवान बिरसा मुंडा के अदम्य साहस और डोंबारीबुरु में हुए नरसंहार की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि मुझे आश्चर्य होता है कि 25 वर्ष से भी कम के जीवन काल में भगवान बिरसा मुंडा ने विश्व के सबसे बड़े साम्राज्य के विरुद्ध आबुआ राज के की स्थापना का शंखनाद कर दिया अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी। उन्होंने कहा कि डोंबारीबुरु को झारखंड का जलियांवाला बाग कांड कहा जाता है।जलियांवाला बाग से 25 साल पहले यहां अंग्रेजों ने नरसंहार किया था।बेगुनाह लोगों को घेरकर गोलियों से भून दिया था। लेकिन भगवान बिरसा मुंडा यहां से बच निकले थे और बाद में उन्होंने उलगुलान का नेतृत्व किया था।