न्यूज़ डेस्क
संसद में क्या हो रहा है यह सबको मालूम है। कोई किसी का नहीं सुन रहा। सबकी अपनी कहानी है। सत्ता पक्ष मनमाने पर उत्तरी हुई है तो विपक्ष सरकार को घेरती तो है लेकिन उसका कोई बस चलता नहीं। एक सांसद दूसरे सांसद पर हमलावर हैं। कोई किसी पर तंज करता दिख रहा है तो कोई किसी की मिमिक्री करने से बाज नहीं आ रहा। संसद के भीतर मानो मछली बाजार लगा हो। चारो तरफ शोरगुल ,जनता के मुद्दे गायब। लोकतंत्र के नाम पर वह सब हो रहा है जिसकी कल्पना भी नहीं जा सकती।
अभी संसद में सुरक्षा में सत्ता पक्ष और विपक्ष में हंगामा मचा हुआ है। जो आवाज उठा रहा है उसका निलंबन हो रहा है। अभी तक 141 सांसद निलंबित हो चुके हैं। संसद के परिसर में गाँधी प्रतिमा के सामने निलंबित सांसद धरना दे रहे हैं। विपक्ष के सभी नेता निलंबित सांडों के साथ खड़े हैं लेकिन सरकार को इससे क्या मतलब ?गजब का माहौल है।
इसी बीच, टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी द्वारा सभापति की नकल उतारने का मामला भी तूल पकड़ता जा रहा है। इस मुद्दे को धनखड़ की तरफ से किसान और जाट का अपमान कहे जाने के मुद्दे पर अब मल्लिकार्जुन खड़गे ने निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि जाति को हर मुद्दे में नहीं घसीटा जाना चाहिए। उन्होंने साथ ही यह सवाल भी किया कि क्या उन्हें हर बार राज्यसभा में बोलने की अनुमति नहीं मिलने पर यह कहना चाहिए कि दलित होने के कारण ऐसा हुआ है।
खड़गे ने कहा कि सभापति का काम दूसरे सदस्यों को संरक्षण देना है लेकिन वह खुद इस तरह का बयान दे रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे अक्सर राज्यसभा में बोलने की अनुमति नहीं दी जाती है। क्या मुझे यह कहना चाहिए कि मैं दलित हूं… इसलिए… उन्हें जाति के नाम पर बोल कर लोगों को नहीं भड़काना चाहिए।’’ खड़गे ने कहा, “जो घटना सदन के बाहर हुई उसके बारे में सदन में प्रस्ताव पारित करना सही नहीं है…क्या प्रधानमंत्री ने सदन का बहिष्कार किया है जो वे सदन में आकर बयान नहीं दे रहे हैं?…सदन के अंदर जाति की बात करके लोगों को भड़काने का काम नहीं करना चाहिए।” खरगे ने सवाल किया कि संसद की सुरक्षा में सेंध के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने दोनों सदनों में कुछ भी नहीं कहा लेकिन संसद के बाहर उन्होंने अपनी बात रखी तो क्या प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को माफी नहीं मांगनी चाहिए।
उधर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह देश के लिए बहुत दुखद दिन है जब संवैधानिक पदों पर बैठे लोग अपनी जातियों के बारे में बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार यह मुद्दा उठाकर संसद की सुरक्षा में सेंध के मुद्दे से अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रही है। उन्होंने पूछा कि क्या अब हर किसी को अपनी जाति बताने वाला ठप्पा लगा कर घूमना चाहिए?