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कर्नाटक की राजनीति में 100 सीटों को प्रभावित करने वाले वोक्कलिगा समाज को पाटने का सियासी खेल शुरू

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अखिलेश अखिल
कर्नाटक की राजनीति में लिंगायत समाज के बाद अगर कोई बड़ा समाज है तो वह है वोक्कलिंगा समाज ।चुनावी राजनीति में इस समाज की बड़ी पकड़ भी है और इस समाज को साधे बगैर भी तक कोई भी पार्टी सत्ता तक नही पहुंच पाई । इस समाज के लोग करीब सौ सीटों पर दबदबा रखते है और यही वजह है कि इस समाज से अभी तक सात मुख्यमंत्री और एक प्रधानमंत्री बने हैं । अभी तक की राजनीति का सच यही है ।

मौजूदा चुनाव में सभी की नजर इस समाज पर है ।बीजेपी पिछले कुछ सालों से इस समाज में पैठ बनाने की कोशिश तो कर रही है लेकिन जेडीएस की राजनीति के सामने वह सफल नहीं रही । वोक्कलिंगा समाज के लोग अभी तक जेडीएस के साथ सबसे ज्यादा जुड़े रहे है ।इसके बाद इस समाज का जुड़ाव कांग्रेस के साथ ही रहा ।

बता दें कि वोकलिंगा एक ऐसा समुदाय है जिसमें समृद्ध राजनीतिक जागरूकता है। कर्नाटक के 17 मुख्यमंत्रियों में से सात वोक्कालिगा समुदाय से थे। के चेंगलराय रेड्डी, केंगल हनुमंथैया और राज्य के पहले तीन मुख्यमंत्री कदीदल मंजप्पा वोक्कालिगा समुदाय से थे। उन्होंने कहा कि वोक्कालिगा से ताल्लुक रखने वाले एच डी देवेगौड़ा कर्नाटक के पहले व्यक्ति बने जिन्होंने प्रधानमंत्री का पद संभाला।

पुराने मैसूरु क्षेत्र में रामनगर, मांड्या, मैसूरु, चामराजनगर, कोडागु, कोलार, तुमकुरु और हासन जिले ऐसे हैं, जहां समुदाय के वोटर्स सबसे ज्यादा हैं। इस क्षेत्र में 58 विधानसभा क्षेत्र हैं, जो 224 सदस्यीय सदन में कुल सीटों की संख्या के एक-चौथाई से अधिक है। जेडीएस ने वर्तमान विधानसभा में इस क्षेत्र में 24 सीटों, कांग्रेस ने 18 और भाजपा ने 15 सीटों का प्रतिनिधित्व किया।

इसके अलावा, वोक्कालिगा का प्रभाव बेंगलुरु शहरी जिले में 28 निर्वाचन क्षेत्रों, बेंगलुरु ग्रामीण जिले (चार निर्वाचन क्षेत्रों), और चिक्काबल्लापुरा (आठ निर्वाचन क्षेत्रों) पर भी है। एक राजनीतिक कार्यकर्ता राजे गौड़ा ने दावा किया कि अनेकल को छोड़कर बेंगलुरु शहरी जिले के 28 विधानसभा क्षेत्रों में से सभी 27 में वोक्कालिगाओं का दबदबा है। उन्होंने कहा कि बेंगलुरु ग्रामीण जिले और चिक्काबल्लापुरा में उनका दबदबा है।

राजे गौड़ा ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘हम वैचारिक रूप से बिखरे हुए हैं और कुछ अन्य समुदायों की तरह बड़े पैमाने पर मतदान नहीं करते हैं। यह दर्शाता है कि हम अपने नेताओं को चुनने में उदार हैं, जिसे या तो हमारी कमजोरी या हमारी ताकत के रूप में देखा जा सकता है।’

एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली जद (एस) वोक्कालिगा को पुराने मैसूर क्षेत्र में अपने मुख्य वोट आधार के रूप में गिनाती है। यहां मुख्य लड़ाई कांग्रेस के साथ होती है। हालांकि हाल ही में भाजपा कुछ हद तक बढ़त बनाने में सफल रही है। जाहिर तौर पर, इस समुदाय के बीच अपना आधार बढ़ाने की कोशिश में भाजपा है।

हाल ही में वोक्कालिगाओं के लिए आरक्षण चार प्रतिशत से बढ़कर छह प्रतिशत हो गया है। इस कदम ने वोक्कालिगा समुदाय के श्रद्धेय द्रष्टा, आदिचुंचनगिरी मठ के पुजारी स्वामी निर्मलानंदनाथ को प्रसन्न किया, जिन्होंने भाजपा सरकार की प्रशंसा की। यही नहीं, भाजपा ने बेंगलुरू के संस्थापक और विजयनगर राजवंश के 16 वीं शताब्दी के प्रमुख नाडा प्रभु केम्पे गौड़ा की 108 फुट ऊंची प्रतिमा का निर्माण भी कराया, जो बेंगलुरू अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास है। इससे भी वोक्कालिगा वोटर्स काफी खुश नजर आ रहे हैं।

हाल ही में, कर्नाटक के मंत्री मुनिरत्न, जो एक फिल्म निर्माता भी हैं, एक लोककथा पर आधारित फिल्म ‘उरी गौड़ा-नंजे गौड़ा’ बनाने की योजना के साथ आए। लोककथा लोगों के एक वर्ग के बीच एक विश्वास पर आधारित है कि उरी गौड़ा और नानजे गौड़ा के नाम से पूर्व मैसूरु साम्राज्य में दो वोक्कालिगा सरदार थे।

यह औपनिवेशिक ब्रिटिश सेना नहीं थी बल्कि ये दो सरदार थे जिन्होंने 18वीं सदी के मैसूर के शासक टीपू सुल्तान की हत्या की थी, इस दावे का कुछ भाजपा मंत्रियों ने भी समर्थन किया था। हालांकि, मुनिरत्ना ने योजना को तब छोड़ दिया जब स्वामी निर्मलानंदनाथ ने उन्हें यह कहते हुए परियोजना को आगे नहीं बढ़ाने के लिए कहा कि कहानी के पीछे कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है और यह केवल लोगों में भ्रम पैदा करेगा।

वोक्कालिगा संघ के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए पीटीआई को बताया कि अगर फिल्म बनती तो इससे भाजपा को अधिक वोट हासिल करने में मदद मिलती। उन्होंने कहा, “‘उरी गौड़ा नानजे गौड़ा’ परियोजना भले ही डंप हो गई हो, लेकिन वोक्कालिगाओं के बीच अभी भी इस पर चर्चा हो रही है। इसके अलावा, आरक्षण में वृद्धि का चुनाव पर भी असर पड़ेगा।’

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