बीरेंद्र कुमार झा
झारखंड के घाटशिला अनुमंडल के गांव में मक्खियों ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है। बंगाल और उड़ीसा की सीमा से सटे बीहड़ जंगलों में बसे इस गांव में लोग दिन-रात मक्खियों की भिनभिनाहट से परेशान है। ऐसे में ग्रामीणों की जिंदगी मच्छरदानी में सिमट कर रह गई है। लोग खाते पीते हैं तो मच्छरदानी के अंदर और बच्चे पढ़ते लिखते है तो मच्छरदानी के अंदर। यहां तक की ऐसे बाहर निकलते हैं तो चेहरे पर मच्छरदानी का टुकड़ा या पतला कपड़ा पहनना पड़ता है।
पर्यावरण प्रदूषण का प्रभाव
मक्खियों की मार से परेशान ग्रामीण इसे सुखाड़ और महामारी का संकेत मानते हैं। ग्रामीणों के अनुसार पहले मार्च,अप्रैल और मई महीने में जो अंधड़ – तूफान आते थे, उससे मक्खियां कम हो जाती थी, लेकिन इस बार अंधड़- तूफान के नहीं आने से क्षेत्रों में मक्खियां बड़ी तादाद में पनप रही थी। मौसम वैज्ञानिक मक्खियों के इस प्रकार बढ़ने को मौसम बदलते पर्यावरण संकट के रूप में देख रहे हैं।
प्रशाशन नहीं उठा रहा कोई कदम
घाटशिला अनुमंडल के पहाड़ों पर बसे लगभग एक सौ गांवों में लगभग 20 हजार के आस पास आबादी निवास करती है। यहां के ग्रामीणों ने बताया कि मक्खियों का प्रकोप मार्च से शुरू हुआ था जिसने धीरे-धीरे अब विकराल रूप ले लिया है। पहले तो ये मक्खियों की भिन्न-भिन्न आहट और उससे उत्पन्न होने वाले घिन और शरीर के हिस्सों पर बैठने जाने की उकताहट से परेशान रहते थे, लेकिन अब इन मक्खियों की वजह से बीमारियों का प्रकोप भी तेजी से बढ़ने लगा है। बावजूद इसके न तो जिला प्रशासन और न ही स्वास्थ्य विभाग ने अबतक उन्हें इससे निजात दिलाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है।