बीरेंद्र कुमार झा
अदालतों में मुकदमों के बढ़ते बोझ और सुनवाई में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गंभीर चिंता व्यक्त की।कोर्ट ने कहा कि यदि कानून प्रक्रिया इसी प्रकार कछुए की गति से आगे बढ़ती रही ,तो न्यायपालिका से लोगों का भरोसा उठ सकता है। शीर्ष अदालत ने 40 साल से अधिक पुराने मामले में फैसला पारित करते हुए यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सभी उच्च न्यायालय को 5 साल या इससे अधिक पुराने मुकदमों के तेजी से सुनवाई और निपटारा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।पीठ ने एक सिविल अपील पर फैसला सुनाते हुए दुख के साथ कहा कि निचली अदालत में 1982 में मुकदमा शुरू हुआ और 40 साल से अधिक समय तक चला।
कुछ मामले 65 साल से अधिक समय से लंबित
न्यायमूर्ति भट्ट ने लंबित मामलों को लेकर राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (NJDG) के देशव्यापी आंकड़ों का हवाला दिया।उन्होंने कहा की समस्या के समाधान के लिए बार एवं बेंच यानी वकील और न्यायाधीश के संयुक्त प्रयासों की जरूरत है।पीठ ने कहा कि एनजेडीजी के आंकड़ों के मुताबिक अदालतों में कुछ मामले 50 साल से अधिक समय से लंबित हैं और इसे लेकर हमने अपनी पीड़ा व्यक्त की है।सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, और उत्तर प्रदेश से राज्यों के कुछ पुराने मामलों का भी जिक्र किया,जिनका 65 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी निपटारा नहीं हो पाया था ।
बार-बार स्थगन मांगने में सावधानी बरतें वादी
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी फैसले में कहा कि वादी को सुनवाई में बार-बार स्थगन मांगने के मामले में सावधानी बरतनी चाहिए मुकदमो के त्वरित निपटारे के लिए 11 दिशानिर्देश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीठासीन अधिकारियों (न्यायमूर्ति )की अच्छाई को उनकी कमजोरी के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।