कोलकाता (बीरेंद्र कुमार):विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यूजीसी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को देशभर में लागू करने के लिए एक समिति का गठन किया है। यह समिति नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर कामकाज पर नजर रखेगी। यूजीसी की ओर से गठित कुल 5 समितियों में से किसी भी समिति में पश्चिम बंगाल का कोई प्रतिनिधि नहीं है,इससे राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु काफी खफा हैं।
पश्चिम बंगाल से पक्षपात करने का लगाया आरोप
पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु यूजीसी की समिति में पश्चिम बंगाल से किसी भी प्रतिनिधि के नहीं होने के मामले को केंद्र सरकार का पक्षपातपूर्ण रवैया बताते हैं उनका मानना है कि पिछले विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में बीजेपी को अपेक्षित सफलता नहीं मिलने और चुनाव जीतकर ममता बनर्जी के फिर से पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बन जाने की वजह से केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार लगातार पश्चिम बंगाल की ममता दीदी वाली सरकार के साथ भेदभाव करती आ रही है।
शिक्षा मंत्री ने अपनी नाराजगी ट्विटर पर व्यक्त किया करते हुए लिखा कि यूजीसी की ओर से गठित 5 जोनल कमेटी में सेंट्रल ,स्टेट, निजी और डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटीज के सभी राज्यों के कुलपति हैं, पर पश्चिम बंगाल का कोई कुलपति नहीं है। यूजीसी के उत्तर पूर्वी और पूर्वी आंचलिक कमेटी में 7 सदस्य नियुक्त किए गए हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल के 40 विश्वविद्यालयों में से एक भी प्रतिनिधि को उस कमेटी में नहीं रखा गया है।
शिक्षा मंत्री ने केंद्र पर का पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए तर्क दिया कि जब एसोसिएशन आफ इंडियन यूनिवर्सिटीज के वाइस चांसलर हमारे अति महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय से जुड़े हैं, तो यूजीसी के जोनल कमेटी में पश्चिम बंगाल का कोई प्रतिनिधि नहीं रखना भेदभाव पूर्ण है। शिक्षा मंत्री के मुताबिक यूजीसी की नियत संदिग्ध है।