अखिलेश अखिल
राजनीति अपने तरीके से चलती है और जनता को मुर्ख बनाने का खेल किया जाता है। कह सकते हैं कि कोई भी राजनीतिक पार्टी हमेशा जनता को मुर्ख ही बनाती है और सिर्फ जनता के जरिये अपनी पार्टी और खुद का पोषण ही करती है। आज भी कुछ ऐसा ही संसद के भीतर हुआ।
बिहार के सीएम लम्बे समय से बिहार के लिए विशेष राज्य की मांग करते रहे हैं। मोदी की इस सरकार में भी उन्होंने इस मांग को आगे बढ़ाया था। लेकिन आज संसद में सर्कार ने साफ नकार दिया कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। अब नीतीश कुमार क्या कुछ करेंगे यह देखने की बात हो सकती है।
वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने रामप्रीत मंडल के सवाल के जवाब में बताया- “राष्ट्रीय विकास परिषद ने पहले कुछ राज्यों को योजना सहायता के लिए विशेष श्रेणी का दर्जा प्रदान किया था। उन राज्यों में कुछ विशेष परिस्थितियां थीं, जिनके आधार पर यह किया गया था। यह निर्णय उन सभी कारकों और राज्य की विशिष्ट स्थिति के एकीकृत विचार के आधार पर लिया गया था।
उन्होंने कहा कि विशेष श्रेणी के दर्जे के लिए बिहार के अनुरोध पर एक अंतर-मंत्रालयी समूह ने पहले भी विचार किया था, जिसने 30 मार्च, 2012 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। आईएमजी ने निष्कर्ष निकाला था कि मौजूदा एनडीसी मानदंडों के आधार पर बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।” 2012 में देश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी। उस समय भी यही रिपोर्ट आई थी, केंद्र की मौजूदा सरकार ने उसी का हवाला दिया है।
देश के किसी क्षेत्र को विशेष श्रेणी का दर्जा देने की बात पहली बार 1969 में राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में आई थी। इस बैठक में डीआर गाडगिल समिति ने भारत में राज्य योजनाओं के लिए केंद्रीय सहायता आवंटित करने का एक फॉर्मूला पेश किया। इससे पहले राज्यों को इस तरह से आगे बढ़ाने के लिए धन वितरण का कोई विशेष फॉर्मूला नहीं था। एनडीसी ने अनुमोदित गाडगिल फॉर्मूला ने असम, जम्मू-कश्मीर और नगालैंड जैसे विशेष श्रेणी के राज्यों को प्राथमिकता दी गई।
5वें वित्त आयोग ने 1969 में स्पष्ट किया कि विशेष श्रेणी की अवधारणा क्या रहेगी? एनडीसी ने इस स्थिति के आधार पर इन राज्यों को केंद्रीय योजना से सहायता आवंटित की थी। वित्तीय वर्ष 2014-2015 तक विशेष श्रेणी स्थिति वाले 11 राज्यों को इसका लाभ मिला। 2014 में जब केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सरकार बनी तो योजना आयोग का विघटन कर नीति आयोग का गठन किया गया।
इसके प्रभाव से गाडगिल फॉर्मूला-आधारित अनुदान बंद हो गया और राज्यों को अलग-अलग श्रेणी में बांटने का प्रावधान भी खत्म हो गया। अब किसी भी नए राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि भारत का संविधान इस तरह के वर्गीकरण का प्रावधान नहीं करता है।