विकास कुमार
मध्य प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का ऐलान कर दिया गया है। इन राज्यों में चुनाव कार्यक्रम आने से पहले ही सियासी सरगर्मी तेज है। मध्य प्रदेश में एक चरण में 17 नवंबर को मतदान होगा। वहीं नतीजे एक साथ तीन दिसंबर को घोषित होंगे। पांच चुनावी राज्यों में से मध्यप्रदेश अकेला राज्य है, जहां वर्तमान में बीजेपी की सरकार है। लिहाजा पार्टी अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए जोर लगाने में जुटी हुई है। कांग्रेस, आप, सपा, बसपा भी चुनाव प्रचार में अपनी ताकत झोक रहे हैं। इस चुनाव में बीजेपी के सामने अपना किला बचाने की चुनौती होगी। वहीं, कांग्रेस 2020 में सत्ता से बेदखल होने की कसक दूर करना चाहेगी।
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर चर्चा चल रही है। राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री भले ही शिवराज सिंह हैं, लेकिन बीजेपी इस बार उनके चेहरे के बिना चुनाव में उतर रही हैं वहीं, कांग्रेस कमलनाथ को ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा प्रोजेक्ट कर रही है।
इस बार राज्य में रोजगार जैसा मुद्दा बीजेपी की परेशानी का सबब बन सकता है। यहां पिछले चुनाव के बाद लगभग तीन साल तक भर्तियां आरक्षण के मुद्दे पर अदालतों में रुकती रहीं। करीब छह साल बाद पटवारी समेत कई पदों पर भर्ती आई थी हालांकि, भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी के आरोप लगने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने नियुक्ति पर रोक लगा दी। परीक्षा में गड़बड़ी और भर्तियों में देरी को लेकर राज्य के में आए दिन बेरोजगार धरना-प्रदर्शन करते रहे हैं। कांग्रेस लगातार इन मुद्दों को अपने कार्यक्रमों में उठा रही। पार्टी दावा कर रही है कि जब उसकी सरकार आएगी तो युवाओं के साथ न्याय होगा।
कांग्रेस मौजूदा बीजेपी सरकार पर कथित भ्रष्टाचार को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने जा रही है। कांग्रेस का दावा है कि मध्य प्रदेश में 50 फीसदी कमीशन की सरकार है। कांग्रेस ने उज्जैन में ‘महाकाल लोक’ के निर्माण में भी भारी अनियमितता का आरोप लगाया है। कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर ढाई सौ से ज्यादा बड़े घोटाले करने के आरोप भी लगाए हैं। वित्तीय घोटालों की सूची में व्यापम भर्ती और प्रवेश घोटाला सबसे ऊपर है।
बीजेपी सरकार को सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना पड़ रहा है। इसलिए बीजेपी इस बार शिवराज सिंह चौहान को अपना सीएम पद का चेहरा नहीं बनाया है। मध्य प्रदेश में बढ़ते अपराध का ग्राफ भी एक चुनावी मुद्दा बन गया है। मध्य प्रदेश में कृषि संबंधी मुद्दे हमेशा राजनीतिक चर्चा में हावी रहे हैं और सभी दलों ने किसानों को लुभाने की कोशिश की है। किसानों के फसलों को उचित कीमत नहीं मिल रही है। इसलिए चुनाव में ये भी एक बड़ा मुद्दा बन गया है।