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केजरीवाल और मोदी दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त हैं! देखिए कैसे आप की मदद से BJP को मिल रहा है बार-बार सत्ता का सुख

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विकास कुमार
राजनीति की दुनिया में कौन दुश्मन है कौन दोस्त इसकी पहचान करना आम जनता के लिए आसान नहीं होता है। मोदी और केजरीवाल के बारे में भी कुछ लोगों की ये सोच है कि अंदरखाने दोनों दोस्त हैं। हालांकि दोनों नेता सार्वजनिक मंच से एक-दूसरे के खिलाफ जमकर आग उगलते हैं। लेकिन दोनों नेताओं का मकसद कांग्रेस के वोट बैंक पर कब्जा जमाने का ही है। इसलिए मकसद के लिहाज से मोदी और केजरीवाल एक ही नैया पर सवार नजर आते हैं।

जब से राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता रद्द हुई है। तब से राहुल गांधी चर्चा के केंद्र में आ गए थे। लेकिन अचानक से केजरीवाल ने पीएम नरेंद्र मोदी की डिग्री को लेकर सवाल खड़ा कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री का सवाल उठा कर देश में एक नई चर्चा केजरीवाल ने छेड़ दी। दरअसल केजरीवाल ने गुजरात यूनिवर्सिटी से पीएम नरेंद्र मोदी की डिग्री की जानकारी मांगी थी। ये मामला गुजरात हाई कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने केजरीवाल पर जुर्माना लगा दिया। लेकिन इस बीच पूरे देश में फिर से बहस के केंद्र में मोदी और केजरीवाल आ गए। और अचानक से राहुल गांधी के नाम की चर्चा धीमी होने लगी। साथ ही साथ ही केजरीवाल ने खुद को बीजेपी के मुख्य प्रतिद्वंदी के तौर पर साबित कर दिया। दोनों ही स्थिति में नुकसान सीधा कांग्रेस को ही हुआ।

वहीं मोदी की डिग्री के विवाद से बीजेपी को विस्तार का नया मौका मिल गया। दरअसल देखा जाए तो देश में 50 करोड़ से ज्यादा लोग दसवीं या बारहवीं की डिग्री ही रखते हैं। ऐसे में उन्हें मोदी से सीधा जुड़ाव महसूस होगा। इधर बीजेपी के नेता ये साबित करने में लंबे अरसे से लगे हैं कि मोदी एक सुपर परफार्मर हैं। भले ही उनके पास ऑक्सफोर्ड की डिग्री नहीं हो। लेकिन बीजेपी का तर्क है कि मोदी डेडिकेशन से अपना काम करते हैं। और इससे देश में विकास की धारा बह रही है। साफ है केजरीवाल ने एक बार फिर आम जनता के दिल में जगह बनाने का एक बड़ा मौका मोदी को बैठे बिठाए दे दिया है।

वहीं अगर गुजरात और उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें। तो ये साफ हो जाता है कि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को नुकसान और बीजेपी को फायदा दिलाया है। गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 27 दशमलव 28 फीसदी वोट मिलें। जो कि 2017 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 14 फीसदी कम हैं। जबकि इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को लगभग 13 फीसदी वोट मिले थे। यानी केजरीवाल ने सीधे-सीधे कांग्रेस के वोट बैंक में ही सेंध लगाई है। और इसी के कारण कांग्रेस 77 सीटों से खिसककर 17 सीट पर आ गई।

उत्तराखंड और गोवा विधानसभा चुनावों में भी ठीक यही कहानी दुहराई गई थी। उत्तराखंड में भाजपा को 44 दशमलव 3 फीसदी और कांग्रेस को 37 दशमलव 9 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस को भाजपा से 6 दशमलव 4 फीसदी कम वोट मिले। जबकि इसी चुनाव में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को 3 दशमलव 3 फीसदी और बीएसपी को 4 दशमलव 8 फीसदी वोट मिले। यदि केजरीवाल और बीएसपी के कारण वोट ना बंटता तो उत्तराखंड का चुनावी नतीजा कुछ और हो सकता था।

गोवा में भी ठीक यही चुनावी स्थिति बनी थी। गोवा विधानसभा चुनाव में भाजपा को 33 दशमलव 3 फीसदी वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस को 23 दशमलव 5 फीसदी वोट मिले। यानी यहां कांग्रेस को बीजेपी की तुलना में लगभग 9 दशमलव 8 फीसदी कम वोट हासिल हुए। जबकि इसी चुनाव में आम आदमी पार्टी को 6 दशमलव 8 और टीएमसी को 5 दशमलव 2 फीसदी वोट मिले। आप और टीएमसी को मिलाकर 12 फीसदी वोट मिले। यदि वोटों में बिखराव न होता तो गोवा की कहानी भी कुछ और हो सकती थी।

आंकड़ों के नजरिए से भी केजरीवाल, मोदी के मददगार नजर आते हैं। इसलिए ये कहना सही लगता है कि मोदी और केजरीवाल दुश्मन से ज्यादा दोस्त हैं। हालांकि देश में अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो इसे सीधे तौर से मानने को तैयार नहीं होंगे।

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