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मणिपुर संकट : राजनीतिक समाधान को लेकर सड़कों पर उतरे हजारों आदिवासी, केंद्र को भेजा ज्ञापन

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न्यूज़ डेस्क 
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में साल भर से चल रही जातीय हिंसा को समाप्त करने के लिए राजनीतिक समाधान की मांग को लेकर मणिपुर के चुराचांदपुर समेत कई जिलों में हजारों आदिवासियों ने सोमवार को रैलियां निकालीं और अपनी मांगों को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक ज्ञापन भेजा।

मणिपुर में आदिवासियों की शीर्ष संस्था स्वदेशी जनजातीय नेता फोरम द्वारा आयोजित इस रैली में हजारों की संख्या में आदिवासियों ने हिस्सा लिया। जनजातीय पुरुषों और महिलाओं ने इस रैली में हिस्सा लिया और जिले के उपायुक्त के माध्यम से केंद्रीय गृह मंत्री को ज्ञापन सौंपा। 

इसी तरह की रैलियां आदिवासी बहुल कांगपोकपी, टेंग्नौपाल और फेरजावल जिलों में भी आयोजित की गईं। कुकी, ज़ोमी, हमार समुदायों से संबंधित आदिवासियों ने अपने हाथों में मांग वाली लिखी तख्तियां लेकर जातीय संकट के राजनीतिक समाधान की मांग की।

स्वदेशी जनजातीय नेता फोरम के अध्यक्ष पागिन हाओकिप ने कहा कि सोमवार की रैलियों का आयोजन केंद्र सरकार से हिंसा का राजनीतिक समाधान खोजने की मांग को लेकर किया गया। उन्होंने कहा, ”संविधान के अनुच्छेद 239ए के तहत आदिवासियों की मांग है कि विधानसभा के साथ मणिपुर को केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए।” 

संस्था आईटीएलएफ ने एक बयान में कहा कि हत्याओं और विस्थापन को एक साल से अधिक समय बीत चुका है, मगर मणिपुर में सुरक्षा स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है, नागरिकों के हर दिन मारे जाने का खतरा बना हुआ है।

उन्होंने आगे कहा कि पिछले कुछ हफ्तों में जिरीबाम जिले में दो आदिवासियों की हत्या कर दी गई। एक अन्य का अपहरण कर लिया गया, जिसका अभी तक पता नहीं चल पाया है। फोरम के अध्यक्ष ने बताया, ”संघर्ष शुरू होने के एक साल बाद तक आदिवासियों के घर और संपत्ति नष्ट की जा रही है। 

अब तक लगभग 200 से ज्यादा आदिवासी मारे जा चुके हैं और 7,000 से ज्यादा घर नष्ट हो चुके हैं।” आदिवासी निकाय की ओर से कहा गया कि जिरीबाम जिले में हाल ही में भड़की हिंसा में आदिवासियों के लगभग 50 घरों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया।

उन्होंने आगे कहा कि एक साल से ज्यादा समय से सभी जरूरी वस्तुएं आदिवासी इलाकों तक नहीं पहुंच पा रही हैं। यहां तक कि अस्पताल में इस्तेमाल होने वाली रुई जैसी बुनियादी चीज भी अक्सर खत्म हो जाती है। इससे आदिवासियों के जीवन की गुणवत्ता पर बहुत बुरा असर पड़ा है। 

बयान में कहा गया, “सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के रखरखाव और मरम्मत सहित सभी विकास गतिविधियां पिछले एक साल से आदिवासी क्षेत्रों में रुकी हुई हैं, जबकि मैतेई नियंत्रित सभी घाटी क्षेत्रों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है।’

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