न्यूज़ डेस्क
इस बार का चुनाव सामान्य चुनाव तो नहीं ही है। एक तरफ बीजेपी की प्रतिष्टभा भी दाव पर लगी है तो दूसरी तरफ बंगाल में अगर थोड़ी भी गड़बड़ी हुई तो ममता की मुश्किलें भी बढ़ सकती है। यही वजह है कि बंगाल में सीटों को पाने के लिए बीजेपी और टीएमसी के बीच निर्णायक लड़ाई चल रही है। यह चुनावी लड़ाई जनता भी देख रही है लेकिन फैसला भी तो उसे ही करना है।
भाजपा को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तूफानी दौरों का सहारा है, तृणमूल कांग्रेस की कोशिश मुस्लिम और बंगाली भद्रजनों की जुगलबंदी को अपने पक्ष में बनाए रखने की है। भद्रजन अगर छिटके तो तृणमूल की राह मुश्किल हो सकती है।
उधर, भाजपा के तीन सौ पार के पुराने रिकॉर्ड को कायम रखने में पश्चिम बंगाल की भूमिका अहम रह सकती है। जानकारों की नजर प्रदेश की करीब दो दर्जन ऐसी सीटों पर है, जहां एक से तीन फीसदी का स्विंग भाजपा या तृणमूल कांग्रेस के लिए सुनामी बन सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की छोटी पार्टनर रही भाजपा आज उसी के लिए चुनौती बन गई है।
भाजपा की कोशिश जहां 2019 के आंकड़े को पार करने की है, टीएमसी प्रदेश में नंबर एक पार्टी होने के तमगे को खोना नहीं चाहती। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी जानती हैं कि यदि भाजपा प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी तो उनकी सरकार का कार्यकाल पूरा करना भी आसान नहीं होगा। दोनों ही पक्ष सधी चाल से अपने मोहरे चल रहे हैं। पश्चिम बंगाल में हिंदू, मुस्लिम के साथ ही एक तीसरा धड़ा बंगाली मतदाताओं का है। बंगाली मतदाता इस बार भी निर्णायक हो सकते हैं।
भाजपा को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व से पश्चिम बंगाल उसकी झोली में आ जाएगा। चुनाव जीतने के लिए ट्रिपल एम स्ट्रेटेजी यानी मीडियम, मैसेंजर और मैसेज को अहम माना जाता है। भाजपा के लिए मोदी का नाम ही जीत की गारंटी माना जा रहा है। असली बात तो परिणाम के बाद ही पता चलेगी।
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