बीरेंद्र कुमार झा
राजस्थान के कोटा में 16 साल के नीट के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली है इस साल महज 8 महीने में कोचिंग हब के नाम से मशहूर कोटा में कई छात्रों ने आत्महत्या कर ली है। पुलिस और जिला के अन्य अधिकारियों के मुताबिक कोटा में छात्रों के कमजोर मानसिक स्वास्थ्य को इसके लिए जिम्मेदार माना गया है पढ़ाई के लिए चर्चित कोटा फैक्ट्री में छात्रों की सुसाइड करने के मामले अचानक बढ़ रहे हैं अधिकारियों और पुलिस का कहना है कि बच्चों के परिजन उनसे कहते हैं कि वहां से वापस नहीं लौटना है। इस तरह की बातों की वजह से छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
आत्महत्या का मामला पिछले सभी वर्षों से ज्यादा
कोटा के एक शीर्ष कोचिंग संस्थान का दावा है कि ज्यादातर परिजन को जब उनके बच्चों का फीडबैक दिया जाता है, तो वह इस पर ध्यान देने से इनकार कर देते हैं परिजन यह चाहते हैं कि उनके बच्चे किसी तरह इंजीनियरिंग और मेडिकल भर्ती परीक्षा की तैयारी करते रहें।कोटा में अब एक 16 साल की एक नीट अभ्यर्थी ने अपने कमरे में फांसी के फंदे से लटक का आत्महत्या कर ली है कोचिंग हब में इस तरह आत्महत्या करने वाली वह 23 वीं छात्रा थी।इस वर्ष आत्महत्या का संख्या किसी एक साल में आत्महत्या करने वाला छात्रों की सबसे ज्यादा संख्या है। पिछले साल यह आंकड़ा 15 था।
अवसाद ग्रस्त हो रहे हैं छात्र
कोटा के एसएसपी चन्र्दशील ठाकुर ने बताया कि कई बार छात्रों से बातचीत के दौरान हमने पाया कुछ छात्रों अवसाद से ग्रसित पाया। जब मैने उसके पिता को इसकी जानकारी दी तो उसके पिता का जवाब था यह तो औरों को भी डिप्रैस कर देगा ।ऐसा कुछ नहीं है। लड़के के पिता ने यह बात मानने से ही इनकार कर दिया कि उनके बेटे के साथ कोई इशू है और उसे इसपर ध्यान देने की जरूरत है।
पैरेंट ट्रेन टिकट नहीं मिलने का बनाते हैं बहाना
पुलिस कप्तान ने आगे बताया कि जब उन्होंने उसे छात्र के पिता से जिद किया कि वह यहां आए और अपने बेटे को कुछ देने के लिए अपने साथ ले जाएं तो उसका पिता लगातार बहाना बनाने लगा कि उन्हें ट्रेन में जल्द आरक्षित टिकट नहीं मिलेगा ।जब एफआईआर दर्ज करने की धमकी दी गई तब वह यहां आने के लिए तैयार हुए। इस संदर्भ में इस बात का खुलासा हुआ कि यहां पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावक अपने बच्चों से कहते हैं कि बिना सफल हुए वापस नहीं लौटना है ।
नहीं मानते कोचिंग संस्थानों की सलाह
कोचिंग सेंटर के एक प्रतिनिधि ने अपनी पहचान ना उजागर करने की शर्त पर कहा कि पिछले 1 साल में हमने करीब 50 बच्चों के माता-पिता से संपर्क किया। हमने उनसे कहा कि आपका बच्चा इस तैयारी के लिए अभी काबिल नहीं है और उसे आपके साथ की जरूरत है। उसमें से 40% अपने बच्चों को ले जाने पर राजी नहीं हुए ।कुछ अन्य लोगों ने हमारी सलाह पर अपने बच्चों का नाम इस कोचिंग संस्थान से कटवा कर दूसरे कोचिंग संस्थान में लिखवा दिया।
उन्होंने कहा कि हम परिजनों के लिए काउंसलिंग और अन्य एक्टिविटी भी आयोजित करते हैं ,लेकिन इस दौरान उनकी उपस्थिति काफी कम रहती है। ज्यादातर परिजन आर्थिक स्थिति का हवाला देकर आने में असमर्थता जताते हैं हर साल करीब ढाई लाख छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए यहां आते हैं। इनमें जेईई और एनईईटी परीक्षाओं की तैयारी भी शामिल है। टाइट शेड्यूल, गलाकाट प्रतियोगिता, हमेशा बेहतर करने का दबाव, परिजनों का दबाव और छात्रों से कई उम्मीदें ये कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिससे यहां के छात्र हमेशा संघर्ष करते रहते हैं।
परिजन नहीं करते विश्वास
कोटा के कलेक्टर ओपी बांकुरा ने कहा कि कोटा में पढ़ने के लिए अपने बच्चों को भेजने के लिए माता-पिता के पास कुछ वजह होती है, लेकिन अगर उनका बेटा किसी वजह से इसे जारी रखने में सफल नहीं हो पा रहा होता है तो यह बात परिजनों को भी कबूल करना चाहिए, लेकिन वे अक्सर उसे कबूल नहीं करते है। कई परिजनों को तो यह कहते हुए भी सुना जाता है कि हमने उसपर काफी पैसा लगाया है। इनमें से कई कठिन संघर्ष कर फीस देते हैं। इसलिए कई बार सच्चाई को कबूल करना उनके लिए मुश्किल हो जाता है उनका विश्वास रहता है कि उनका बेटा पढ़ सकता है, लेकिन वह जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहा है, या फिर कठिन मेहनत नहीं कर रहा है। छात्रों की बातें अक्सर नहीं सुनी जाती है। यह एक बड़ी वजह है कि बच्चे यहां तनाव में आकर अवसादग्रस्त ही जाते हैं और इनमें से कुछ छात्र आत्महत्या करने जैसा कदम भी उठा लेते हैं।