अखिलेश अखिल
इस खबर का जो शीर्षक है वह बहुत कुछ कह रहा है। बच्चों का भविष्य शिक्षा के मंदिर में बनते हैं और और तपस्वी रूपी शिक्षक बच्चों को संवार कर ,संस्कारित कर देश और समाज के कयलन के लिए अग्रसर करते हैं। लेकिन शिक्षा देने वाले ही जब शिक्षा के नाम पर व्यापार करने लगे और राजनीति से प्रेरित होकर छात्रों के भविष्य के साथ खेलने लगे तो आप क्या कहेंगे ?जिसके हाथ में पतवार है अगर वही नाव को नदी में डूबा दे तो आप क्या कहेंगे ? कुछ इसी तरह का माहौल देश के शिक्षा विभाग में है और यह सब सालों से ऐसे ही चल रहा है। अंजाम क्या होगा कोई नहीं जानता।
बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के कुलपति और प्रतिकुलपति के वेतन रोकने के मामले में शिक्षा विभाग और राज भवन में चल रहे शह और मात के खेल के बीच माना जाने लगा है कि दोनों में टकराव और बढ़ेगा। दरअसल, बिहार शिक्षा विभाग ने पिछले दिनों बीआरए के कुलपति और प्रति कुलपति के वेतन पर रोक लगाते हुए उनके वित्तीय अधिकार को भी रोक दिया। इसके बाद राजभवन ने शिक्षा विभाग के हस्तक्षेप पर विरोध जताते हुए कड़ी नाराजगी जाहिर की।
राजभवन ने विभाग को अपना आदेश वापस लेने के निर्देश दिए। राज भवन ने विभाग को कहा कि बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 के सेक्शन 54 में सरकार को विश्वविद्यालयों के ऑडिट का अधिकार दिया गया है। लेकिन, वेतन बंद करने, वित्तीय अधिकार रोकने और बैंक खाता फ्रीज करने का अधिकार नहीं है।उल्लेखनीय है कि विभाग ने कॉलेजों का निरीक्षण न करने, लंबित परीक्षा के आयोजन में लापरवाही आदि को लेकर कार्रवाई की थी।
सूत्र बताते हैं कि शिक्षा विभाग ने पत्र में कहा है कि राज्य सरकार सालाना विश्वविद्यालयों को 4000 करोड़ रुपए देती है, लिहाजा शिक्षा विभाग को विश्वविद्यालयों को उनकी जिम्मेदारी बताने, पूछने का पूर्ण अधिकार है कि वे इस राशि का कहां और कैसे इस्तेमाल कर रहे हैं। बहरहाल, मुद्दे को लेकर सरकार और राजभवन में टकराव को स्थिति उत्पन्न होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति राजेश सिंह के बीच विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है।संगठन की ओर से जारी बयान में कुलपति को घेरते हुए कहा गया है कि प्रो. राजेश सिंह द्वारा लगातार की जा रही वित्तीय अनियमितताएं व अकादमिक कुप्रबंधन का सीधा दुष्प्रभाव छात्रों के भविष्य पर पड़ रहा है, जिससे तंग आकर वहां के छात्र, विश्वविद्यालय के कुलपति व विश्वविद्यालय प्रशासन के विरोध में उतर आए। परिषद की ओर से कहा गया है कि तथ्यों के आधार पर जबसे प्रो. राजेश सिंह की अक्षमता व भ्रष्टाचार उजागर होना शुरू हुआ है, वह मीडिया पर अवैध हस्तक्षेप कर मीडियाकर्मियों को डराना चाहते हैं।
गोरखपुर विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय के ही प्रोफेसर द्वारा शोध के नाम पर करोड़ों रुपए की धनराशि सीड मनी के रूप जारी होने व उसके कोई हिसाब नहीं होने का आरोप विश्वविद्यालय कुलपति पर लगाया गया है।
इस संदर्भ उचित जांच करके सत्य सामने आना चाहिए और आरोप सत्य साबित होने पर कुलपति पर कार्रवाई हो।
गोरखपुर विश्वविद्यालय की वर्तमान बदहाल स्थिति में प्रोफेसर राजेश सिंह द्वारा अपने भ्रष्टाचार व कुप्रबंधन के विरोध में उठने वाली छात्रों की आवाज को दबाने के लिए तानाशाही रवैया अपनाते हुए छात्रों के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज कराई गई है व विरोध कर रहे छात्रों का दमन किया जा रहा है। बयान में बताया गया है कि प्रो. राजेश सिंह गोरखपुर विश्वविद्यालय में वर्तमान नियुक्ति से पूर्व पूर्णिया विश्वविद्यालय, बिहार के कुलपति (मार्च 2018 से अगस्त 2020) तक रहे। जिस कार्यकाल के दौरान उनके ऊपर विश्वविद्यालय निधि के गबन के व विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे, जिसकी जांच लोकायुक्त बिहार द्वारा की गई।
उक्त जांच में लोकायुक्त बिहार ने पाया कि प्रोफेसर राजेश सिंह ने पूर्णिया विश्वविद्यालय में कुलपति रहते हुए अपनी वित्तीय शक्तियों का दुरुपयोग करके वित्तीय अनियमितताएं की। इस संदर्भ में लोकायुक्त ने पूर्णिया विश्वविद्यालय के ऑडिट की अनुशंसा राज्यपाल से की। जांच पूरी होने तक प्रो. राजेश सिंह आरोप-मुक्त होने का दावा नहीं कर सकते हैं।