न्यूज़ डेस्क
दिल्ली के पूर्व सीएम अरबिंद केजरीवाल अब लुटियन जोन में आ गए हैं। पार्टी सांसद अशोक मित्तल को 5, फिरोजशाह रोड पर बंगला एलॉट हुआ है। अब केजरीवाल अपने परिवार के साथ यहीं रहेंगे। इस बंगले से प्रधानमंत्री के आवास की दूरी केवल पांच किलोमीटर ही रह गई है।
नई संसद तो इससे भी आधी यानी करीब 2.4 किलोमीटर ही रह गई है। यानी इस नए बंगले में आकर अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के और करीब आ गए हैं। अब वे ज्यादा जोर से भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने की कोशिश कर सकेंगे।
चूंकि, आम आदमी पार्टी को एलॉट हुआ नया बंगला 1, पंडित रविशंकर शुक्ला लेन फिरोजशाह रोड के ठीक पीछे ही है, अब वे दिल्ली विधानसभा चुनाव की सारी गतिविधियां यहीं से संचालित करेंगे। उनका आवास और पार्टी कार्यालय अधिक करीब होने से वे पार्टी की गतिविधियों के लिए अधिक समय दे सकेंगे।
आम बोलचाल में ‘धरना स्थल’ का नाम पा चुका जंतर-मंतर भी इसके ठीक पास में ही है। कभी अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र जंतर-मंतर ही हुआ करता था। जमानत पाने के बाद भी उन्होंने सबसे पहली जनता की अदालत यहीं लगाई थी। अब चुनाव के बीच जब भी उन्हें लगेगा कि देश में ‘लोकतंत्र खतरे में’ पड़ गया है, वे आसानी से जंतर-मंतर की राह पकड़ सकेंगे।
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि केजरीवाल के बाद मुख्यमंत्री वाले बंगले में कौन रहेगा, लेकिन इतना साफ है कि दिल्ली सरकार किसी भी हालत में इसे अपने नियंत्रण में रखेगी। इस बंगले के निर्माण और साज-सज्जा में भारी अनियमितता होने के आरोप भाजपा लगाती आई है।
यदि किसी भी कारण से चुनाव के पहले इस बंगले पर उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार का नियंत्रण हो जाता है तो बंगले से वे जिन्न बाहर आ सकते हैं जो अरविंद केजरीवाल के लिए नई मुसीबत बन सकते हैं। चतुर राजनेता बन चुके केजरीवाल चुनावों के बीच गलती से भी ऐसा अवसर भाजपा को नहीं देंगे।
लिहाजा माना जा रहा है कि यह बंगला मुख्यमंत्री आतिशी मारलेना को आवंटित किया जा सकता है। हालांकि, जब वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठीं तो वे इस बंगले में भला क्यों रहेंगी। यानी यह बंगला भी मुख्यमंत्री की कुर्सी की तरह चुनाव होने तक अरविंद केजरीवाल का इंतजार करेगा।
आम आदमी पार्टी इसे अरविंद केजरीवाल का त्याग बता रही है। लेकिन भाजपा ने इसे अरविंद केजरीवाल की एक और नौटंकी करार दिया है। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा है कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना अरविंद केजरीवाल का त्याग नहीं, उनकी मजबूरी थी।
अदालत ने उन्हें कार्यालय जाने और किसी फाइल पर हस्ताक्षर करने पर रोक लगा दी थी। ऐसे में वे मुख्यमंत्री पद पर काम नहीं कर सकते थे। लिहाजा मजबूर होकर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
सचदेवा ने कहा कि केजरीवाल को मुख्यमंत्री आवास खाली करना ही था। चुनाव के बाद वैसे भी उन्हें अपने घर लौटकर जाना था, अच्छा हुआ कि उन्होंने पहले से ही इसकी तैयारी कर ली।