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झारखंड हाई कोर्ट से भी हेमंत सोरेन को बड़ा झटका,सीएम की याचिका सुनने लायक नहीं

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बीरेंद्र कुमार झा
सुप्रीम कोर्ट के बाद झारखंड हाई कोर्ट से भी सीएम हेमंत सोरेन को बड़ा झटका लगा है। झारखंड हाई कोर्ट ने सीएम की ओर दायर क्रिमिनल रितब्याचिका को खारिज कर दिया है।अदालत नेl कहा कि यह याचिका सुनने लायक नहीं है। मामले की सुनवाई हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस संजय मिश्र और जस्टिस आनंद सेन की खंड पीठ में हुई।यहां ईडी के वकील ने कहा कि समन को चुनौती देना सही नहीं है। सीएम हेमंत सोरेन की तरफ से वरीय अधिवक्ता पी चिदंबरम ने परसों ही अपनी दलील दी थी।वही दोनों पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट में मनोहर लाल केस का हवाला देते हुए कहा ईडी समान जारी कर सकता है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ईडी के समन को चैलेंज किया था और अदालत से आग्रह किया था कि ईडी के सारे समन निरस्त किए जाएं।इसके लिए वे सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट गए थे, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने सीएम को झारखंड हाई कोर्ट जाने को कहा। झारखंड हाई कोर्ट में 13 अक्टूबर को इसकी फाइनल सुनवाई हुई जिसमें उनकी याचिका को खारिज कर दी गई।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 22 सितंबर को हाई कोर्ट पहुंचे थे हेमंत सोरेन

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ईडी की कारवाई को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।इसके साथ ही पत्र लिखकर ईडी को याचिका दायर करने की जानकारी दी और हाई कोर्ट का निर्देश आने तक इंतजार करने का अनुरोध किया था।मुख्यमंत्री की तरफ से दायर याचिका में पीएमएलए की धारा 50 और 63 को असंवैधानिक करार देने और और उन्हें ईडी की ओर से जारी समन को निरस्त करने का अनुरोध किया गया था। ईडी ने जमीन खरीद बिक्री मामले में मुख्यमंत्री को चौथा समन भेज कर पूछताछ के लिए 23 सितंबर को रांची स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में हाजिर होने का निर्देश दिया था। पेश नहीं होने पर 26 सितंबर को ईडी ने पांचवा समन जारी कर उन्हें 4 अक्टूबर को पूछताछ के लिए बुलाया था। इस पर भी वे ईडी ऑफिस में पेश नहीं हुए।

ईडी के समन को चुनौती देने का आधार

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि पीएमएलए 2002 में निहित प्रावधानों के तहत ईडी के अधिकारी को जांच के दौरान किसी को समन करने का अधिकार प्राप्त है। जिसे धारा 50 के तहत समान जारी किया जाता है, उससे सच्चाई बताने की अपेक्षा की जाती है। उसका बयान दर्ज किया जाता है।इसके बाद इस बयान पर दंड या गिरफ्तारी के डर से उसे इस पर हस्ताक्षर करने की अपेक्षा की जाती है। यह संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन है।संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार के तहत किसी व्यक्ति को इस बात का अधिकार है की वह यह जाने की उसे किस मामले में और क्यों समन किया गया है।ईडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को समन भेजा है, लेकिन वह इस बात की जानकारी नहीं दे रहा है की उन्हें किस सिलसिले मैं बयान दर्ज करने के लिए बुलाया जा रहा है। ईडी की ओर से उन्हें ईसीआर की कॉपी भी नहीं दी जा रही है।सीआरपीसी की धार1973 में इस बात का प्रावधान किया गया है कि समन करनेवाली एजेंसी संबंधित व्यक्ति को यह बताएं कि उसे अभियुक्त या गवाह के तौर पर समन क्यों किया जा रहा है?लेकिन पीएमएलए 2002 इस बिंदु पर पूरी तरह खामोश है।पीएमएलए की धारा 50 के तहत जारी समन में इस बात की जानकारी नहीं दी जा रही है उन्हें किस रूप में समन दिया जा रहा है।

क्या है पूरा मामला

दरअसल मनी लॉन्ड्रिंग वाले मामले में समन जारी होने के बाद ही सीएम हेमंत सोरेन ने ईडी से समन वापस लेने को कहा था। उन्होंने कहा था कि हमने पहले ही अपनी संपत्ति की जानकारी दे दी है। अगर वह गुम हो गया है तो हम फिर से इसे उपलब्ध करा सकते हैं। गौरतलब है कि इससे पूर्व अवैध खनन मामले मेंe ईडी नेr सीएम हेमंत सोरेन को पूछताछ के लिए समन जारी किया था।उस दौरान वह ईडी के समक्ष उपस्थित हुए थे,और ईडी के सभी प्रश्नों का जवाब दिया था। पूछताछ के दौरान संपत्ति से जुड़े दस्तावेज भी इसी को उपलब्ध कराए थे।

 

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