बीरेंद्र कुमार झा
झारखंड में भारतीय जनता पार्टी के तमाम क्रियाकलाप अब ट्वीटर, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म तक सिमट कर रह गए हैं। भाजपा राज्य में प्रमुख विपक्षी पार्टी है। जाहिर है राज्य सरकार के गलत फैसलों या नीतियों के विरोध का सारा दारोमदार उसी पर है। राज्य की हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के इतने सारे मामले उजागर हुए, जिनकी मुखालफत बीजेपी सतह पर करती तो उसका खोया रुतबा फिर हासिल हो सकता था और वह सत्ताशीर्ष पर बैठ सकती थी। लेकिन इसकी जरूरत राज्य के बीजेपी नेताओं को कभी महसूस ही नहीं हुई। हेमंत सरकार के साढ़े तीन साल पूरे हो रहे हैं। इस अवधि में बीजेपी के सामने इतने मौके आए, जिनके खिलाफ बीजेपी सड़क पर उतरती तो अगली बार हेमंत को सत्ता में दोबारा वापसी की संभावना खत्म हो ही जाती,वर्तमान विधान सभा सत्र में भी वह 5वर्ष पूरा किए बिना ही चलता हो सकती थी। लेकिन इसकी चिंता न बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सांसद दीपक प्रकाश ने कभी महसूस की और न ही विरोधी दल के नेता होने के नाते पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने। बहुत हुआ तो इनलोगों ने ट्विटर हैंडल या फेसबुक अकाउंट के जरिए बयानबाजी कर ली,जनता के बीच जोरदार ढंग से इस मुद्दे को नहीं उछाला।
नियोजन नीति बड़ा मुद्दा बन सकता था
हेमंत सोरेन की सरकार के खिलाफ सबसे पहले नियोजन नीति का मुद्दा बीजेपी के हाथ में आया। नियोजन नीति में बिहार, यूपी जैसे राज्यों से आकर झारखंड में बसे लोगों की नौकरी के अवसर राज्य सरकार ने खत्म कर दिए थे। तकरीबन 40 फीसदी ऐसी आबादी के साथ राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे अन्याय की बात कर वह 40:60 की जगह 100:100 के हित की बात कर बीजेपी राज्यव्यापी आंदोलन कर सकती थी,लेकिन उसने चुप्पी साध ली। विरोध सिर्फ सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हुआ। यह तो हाईकोर्ट था, जिसने नियोजन नीति को खारिज कर दिया। यह राज्य सरकार की सबसे बड़ी विफलता थी। बीजेपी ने इसे लेकर रांची में सचिवालय का घेराव कार्यक्रम किया। हो सकता है कि हाईकोर्ट से पहले नियोजन नीति का विरोध करना बीजेपी को नुकसान पहुंचाता, क्योंकि इसमें मूल झारखंडियों को राज्य सरकार ने लाभ देने की घोषणा की थी। लेकिन हाईकोर्ट के फैसले के बाद उसे सरकार की विफलता बता कर या झारखंडियों के साथ छल कह कर सतत आंदोलन बीजेपी चला सकती थी।
स्थानीय नीति पर भी चुप रही बीजेपी
बीजेपी को मालूम था कि स्थानीय नीति का आधार 1932 के खतियान को बनाना कानूनी रूप से उचित नहीं है। हेमंत सोरेन ने विधानसभा का विशेष सत्र बुला कर 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति का प्रस्ताव पास करा लिया। बीजेपी ने मुखर रूप से इसका विरोध न तो सदन में किया और न सदन के बाहर।वह चाहती तो सदन में भी और सदन के बाहर आकर जनता के बीच इस हकीकत के साथ जा सकती थी कि स्थानीय नीति का झुनझुना थमा कर सरकार झारखंडियों के साथ छल कर रही है,पूर्व में बाबूलाल मरांडी के शासन काल में ऐसा प्रयास झारखंड हाई कोर्ट की सक्रियता से निष्क्रिय ही चुका है।यहां तक कि जब राजभवन ने इसमें कानूनी कमियां गिना कर विधेयक लौटा दिया, तब भी बीजेपी राज्य सरकार की धोखेबाजी को लेकर जनता के बीच जा सकती थी,लेकिन बीजेपी ने यह अवसर भी गंवा दिया।
हेमंत सरकार के भ्रष्टाचार पर भी शांत रह रही बीजेपी
हेमंत सोरेन की सरकार पर शुरू से ही भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। पद का दुरुपयोग कर हेमंत सोरेन ने अपने और पत्नी के नाम खनन पट्टा लिया,लेकिन बीजेपी ने इसे जनमुद्दा बनाने की जगह अपनी भूमिका सिर्फ इसकी शिकायत राज्यपाल से करने तक ही सीमित रखी। आफिस आफ प्रॉफिट के इस मामले को लेकर बीजेपी जनता के बीच जोरदार ढंग से गई ही नहीं। ईडी-सीबीआई जैसी एजेंसियों की जांच में खनन घोटाले और जमीन के गोरखधंधे के कई बड़े राज प्रकाश में आए। आईएस पूजा सिंघल और छवि रंजन के अलावा हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्र और अन्य कई लोग गिरफ्तार किये गए।मुख्यमंत्री भवन में तैनात सुरक्षा प्रहरी की रायफल एक माफिया के घर से बरामद हुई। बीजेपी इन मुद्दों को जनमुद्दा बनाकर हेमंत सोरेन की सरकार को गिरवासकती थी,लेकिन झारखंड में बीजेपी ने इन मुद्दों को जनता के बीच जाकर का भुनाने की कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई। सत्ता से नजदीकी संबंध रखने वाले दलालों के नाम उजागर हुए। उनमें कई की गिरफ्तारी हुई। जमीन घोटाले में ही आईएएस छवि रंजन की गिरफ्तारी हुई। इस फर्जीवाड़े में आधा दर्जन से अधिक लोग पकड़े गए हैं। जांच अब भी जारी है। दलालों ने भ्रष्ट अफसरों-कर्मचारियों से सांठगांठ कर सेना की जमीन तक बेच डाली। जांच के क्रम में ईडी ने सेना के कब्जे वाली जमीन के मालिक समेत 13 लोगों को समन भेजा है। जिन्हें समन भेजा गया है, उनमें चार्टर्ड अकाउंटैंट नरेश केजरीवाल की पत्नी माया केजरीवाल, और जयंत कर्नाड भी शामिल हैं। ईडी ने इनलोगो अपने दफ्तर में हाजिर होने की कहा है। यहां सीबीआई और ईडी ने ही विपक्ष का काम किया है।
हाईकोर्ट और राजभवन ऐसे मामलों में संज्ञान लेकर राय और फैसला दे रहे। लेकिन बीजेपी के नेता इसे जनमुड्डा बनाने की जगह अपनी भूमिका सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित रखे हुए है और हेमंत सोरेन की वर्तमान सरकार को संजीवनी प्रदान कर रहे है।आसन्न लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने बिहार समेत कई राज्यों में बड़ा सांगठनिक फेर-बदल किया, लेकिन झारखंड में अब तक यह काम भी नहीं हो पाया है।इससे ऐसा लगता है कि प्रदेश बीजेपी के नेता यह मान कर चल रहे कि आगामी लोक। सभा और विधान सभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी और अमित शाह कोई न कोई करिश्मा कर ही देंगे।तभी तो झारखंड के बीजेपी नेता हेमंत सोरेन सरकार के विरुद्ध हाथ आ रहे मुद्दे को जनमुद्दा बनाने की जगह मस्ती से घर-दफ्तर में बैठ कर फेसबुक और ट्वीटर वार तक ही अपने को सीमित रखे हुए हैं।