न्यूज़ डेस्क
जानकारी मिल रही है कि केंद्र सरकार बहुत जल्दी ही देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए लागू करने की तैयारी कर रही है। सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार इस अधिनियम को लोकसभा चुनाव से पहले ही लागु करने की तैयारी में है ताकि इसका लाभ भी उठे जा सके। खबर के मुताबिक सर्कार इस दिशा में गंभीरता से कम कर रही है और अब इस बात की सम्भावना है कि सरकार कभी भी इसकी घोषणा कर सकती है। यद्दे रहे गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों ही कोलकाता में इसे लागू करने की बात कही थी।
संभावना है कि इसी महीने या फरवरी में सीएए के नियम लागू हो जाएंगे। आपको बता दें कि इस विधेयक को दिसंबर 2019 में संसद द्वारा मंजूरी दे दी गई थी। इस विधेयक में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने की वकालत की गई है। वहीं, मुसलमानों को इससे अलग रखा गया है।
एक अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक, जब केंद्र के एक बड़े अधिकारी से पूछा गया कि क्या सीएए नियमों को कुछ महीनों में होने वाले लोकसभा चुनावों की घोषणा से पहले अधिसूचित किया जाएगा, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘हां, उससे बहुत पहले.’ अधिकारी ने आगे कहा, ‘हम जल्द ही सीएए के नियम जारी करने जा रहे हैं।
नियम जारी होने के बाद कानून लागू किया जा सकता है और पात्र लोगों को भारतीय नागरिकता दी जा सकती है। आवेदकों को वह वर्ष बताना होगा जब उन्होंने यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था। आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा। बता दें कि कानून में चार साल से अधिक की देरी हो चुकी है और कानून लागू होने के लिए नियम जरूरी हैं।
इसके लिए एक पोर्टल भी तैयार कर लिया गया है। पात्र पड़ोसी देशों से आने वाले विस्थापितों को सिर्फ पोर्टल पर आनलाइन आवेदन करना होगा और गृह मंत्रालय इसकी जांच कर नागरिकता जारी कर देगा। बता दें कि नागरिकता देने का अधिकार पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास है।
सीएए के तहत अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 के पहले आने वाले छह अल्पसंख्यकों (हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी) को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है। इसके लिए इन तीन देशों से आए विस्थापितों को कोई दस्तावेज देने की भी जरूरत नहीं है।
एक अधिकारी ने बताया कि केंद्र ने नियम बनाने के लिए अब तक आठ तारीखों के विस्तार का लाभ उठाया है। पिछले दो वर्षों में नौ राज्यों के 30 से अधिक जिला मजिस्ट्रेटों और गृह सचिवों को नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने की शक्तियां दी गई हैं।