बीरेंद्र कुमार झा
चंद्रयान 3 ने चंद्रमा पर जहां लैंडिंग की है ,उस जगह को ‘ शिव शक्ति प्वाइंट ‘ के नाम से जाना जाएगा।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को यह बात कही और इसके बाद से ही देश में इस नामकरण को लेकर बहस शुरू हो गई है।ऐसे में सवाल यह उठाने लगा है कि आखिर हमारे घर से लाखों किलोमीटर की दूरी पर मौजूद चांद की सतह पर जगह का नामकरण कैसे होता है? साथ ही इस प्रक्रिया का अधिकार किसके पास है?
शिव कल्याण का द्योतक और शक्ति कल्याणकारी इरादों की पूर्ति का सामर्थ्य
प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि मून लैंडर जिस स्थान पर उतरा था, उसे अब शिव शक्ति के नाम से जाना जाएगा।। उन्होंने कहा की शिव में मानवता के कल्याण का संकल्प समाहित है और शक्ति से हमें उन संकल्पों को पूरा करने का सामर्थ्य मिलता है। चंद्रमा का यह शिव शक्ति पॉइंट हिमालय के कन्याकुमारी से जुड़े होने का बोध कराता है।
कैसे होता है नामकरण
आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार वर्ष 1919 में स्थापित इंटरनेशनल एस्टॉनोमिकल यूनियन (IAU) खगोलीय पिंडों (Celestial objects ) का नामकरण करती है। इस नोडल एजेंसी के पास कई टास्क फोर्सज हैं।इसमें एग्जीक्यूटिव कमिटी, लीकमीशन,डिवीजन और वर्किंग ग्रुप शामिल है। दुनिया भर में कई बड़े-बड़े खगोलविद भी इसका हिस्सा होते हैं ।
किसी ग्रह या सैटेलाइट सरफेस का नामकरण को लेकर बताया जाता है कि जब किसी ग्रह या सेटेलाइट की पहली तस्वीर सामने आती है तो इसकी विशेषताओं के नामकरण के लिए कई नई थीम चुनी जाती है और कुछ खासियतों के नाम का प्रस्ताव कर दिया जाता है। आमतौर पर यह काम आईएयू की टास्क फोर्स करती है, जो मिशन टीम के साथ मिलकर काम कर रही होती है।
डब्ल्यूजीपीएसएन के सदस्यों के मुहर के बाद होता है नामकरण सत्यापित
नियमों को मानने के बाद आईएयू की वर्किंग ग्रुप फॉर प्लेनेटरी सिस्टम नोमेनक्लेचर (WGPSN ) इन मामलों में आए नाम पर मुहर लगती है। बाद में डब्ल्यूजीपीएसएन के सदस्य इसपर वोट करते हैं और प्रस्तावित नाम को आधिकारिक मान्यता दे दी जाती है। साथ ही इसका इस्तेमाल नक्सा या प्रकाशनों के लिए भी होने लगता है।