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क्लर्की छोड़कर बने थे एक्टर,बांग्ला सिनेमा के ‘महानायक को1 हिंदी फिल्म ने किया बर्बाद

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बांग्ला फिल्म ‘ओति उत्तम’ हाल में रिलीज हुई। इसका ट्रेलर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने शेयर किया और लिखा कि उस दौर के अभिनेता को जीवंत करना ‘ओति उत्तम’। यह बेहद खास मूवी है, जिसे डायरेक्टर ने गढ़ने में 6 साल लगा दिए थे। पर्दे पर उस एक्टर को चार दशक बाद फिर जिंदा कर दिया, जिसे बांग्ला फिल्म का महानायक कहते हैं।

हिंदी सिनेमा के ‘अमानुष’, बांग्ला सिनेमा के सरताज और देश का पहला नेशनल अवॉर्ड जीतने वाले नायक अरुण कुमार चट्टोपाध्याय यानि प्रशंसकों के ‘गुरु’ उत्तम कुमार. साधारण परिवार में पले बढ़े। उत्तम कुमार आज भी बंगाल की एक बड़ी आबादी का क्रश माने जाते हैं।करियर का आगाज इतना बेहतरीन नहीं था
लोगों का प्यार भी नहीं मिला और न ही निर्देशकों का साथ। क्लर्क की नौकरी भी करते थे और फिल्म में एक्टिंग भी। एक मजबूरी थी, तो दूसरा पैशन था।

 

उत्तम कुमार का 1947 से स्ट्रगल शुरू हुआ और 1951 तक जारी रहा।यही वजह है कि उस दौर में लोग इन्हें ‘फ्लॉप मास्टर जनरल’ नाम से पुकारने लगे। असफलता पर 1952 में जाकर विराम लगा।उस साल रिलीज हुई बांग्ला फिल्म ‘बासु परिबॉर’ सफल रही।इसके बाद तो जैसे फिल्म दर फिल्म हिट की झड़ी लग गई। लोगों के दिलों में बस गए और गोल्डन एरा के गोल्डन स्टार बन गए। उनकी फिल्में आज भी बंगाली सिनेमा की धरोहर मानी जाती हैं।

कहा जाता है कि बांग्ला सिनेमा के स्वर्ण युग का पटाक्षेप इनकी अकाल मृत्यु के बाद हो गया।इस कलाकार को अभिनय करने, गीत गाने-रचने, फिल्मों का निर्माण और निर्देशन करने में महारत हासिल थी।इनका जन्म 3 सितंबर 1926 को उत्तर कलकत्ता (अब कोलकाता) के एक साधारण परिवार में हुआ था। शुरू से ही कला के प्रति रुझान जबरदस्त था। घर का माहौल भी कुछ ऐसा ही था।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बांग्ला फिल्मों के इस महानायक ने अपनी शुरुआत हिंदी फिल्म से की थी।1947 की फिल्म का नाम है ‘माया डोर’। यह फिल्म कभी रिलीज ही नहीं हो पाई। फिर इन्होंने बंगाल की ओर फोकस बढ़ाया और कुछ सालों बाद जो हुआ, वह किसी जादू से कम नहीं था।उत्तम कुमार एक व्यक्ति नहीं, बल्कि संस्था थे- ऑल इन वन। मतलब एक अभिनेता, निर्माता, निर्देशक, पटकथा लेखक, गायक और संगीतकार,सब कुछ ! उन्होंने छह बांग्ला फिल्में और एक हिंदी फिल्म का निर्माण किया। संगीतकार के रूप में, उन्होंने 1966 में बनी फिल्म ‘काल तुमी अलेया’ के लिए संगीत दिया, जिसमें हेमंत कुमार और आशा भोसले ने अपनी आवाज दी थी।

हिंदी सिनेमा का कैनवास बड़ा था इसलिए उत्तम कुमार ने वहां दुबारा किस्मत आजमाई, लेकिन इस बार भी इन्हें निराशा ही हाथ लगी।1967 ईसवी में उत्तम कुमार ने वैजयंतीमाला को लेकर एक हिंदी फिल्म ‘छोटी सी मुलाकात’ बनाई।इस फिल्म का निर्देशन अलो सरकार ने किया था और संगीत शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने दिया था, जो 1960 के दशक में सिल्वर जुबली फिल्मों की गारंटी हुआ करते थे,लेकिन उनका जादू भी यहां नहीं चला और फिल्म बॉक्स ऑफिस पर पिट गई।इस फिल्म के पिट जाने से उत्तम कुमार पर भारी कर्ज हो गया।अपना कर्ज चुकाने के लिए उन्होंने कई फिल्में भी की ,लेकिन इस फिल्म ने उन्हें बुरी तरह से तोड़ दिया।

छोटी सी मुलाकात’ के फ्लॉप होने के बाद उनकी सेहत खराब हो गई।
आईएएनएस की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तम कुमार को पहला दिल का दौरा 1967 में रे की फिल्म ‘चिड़ियाखाना’ की शूटिंग के दौरान पड़ा।‘छोटी सी मुलाकात’ (1967) के फ्लॉप होने के बाद उनकी सेहत और ज्यादा बिगड़ने लगी और उन्हें दो और दौरे पड़े।23 जुलाई 1980 की आधी रात को उन्हें दिल का दौरा पड़ा।उन्हें कोलकाता बेल व्यू क्लिनिक में भर्ती कराया गया, जहां पांच हृदय रोग विशेषज्ञ उनको ट्रीट करते रहे। 16 घंटे बाद जुलाई 1980 में रात 9:35 बजे 53 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई।उत्तम कुमार की मृत्यु ने बंगाली सिनेमा को एक बड़ा झटका दिया था।उनकी मृत्यु के बाद बंगाली सिनेमा में एक नए युग की शुरुआत हुई, लेकिन उत्तम कुमार जैसा कोई नहीं आया।वे एक अनोखे कलाकार थे, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से बंगाली सिनेमा को समृद्ध बनाया था।

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