अखिलेश अखिल
भारत जैसे देश में जातियां ही सर्वोपरि है। यह जाति ही है जिससे राजनीति आगे चलती है। जिसके पास जातियों का ज्यादा समूह उसकी राजनीति उतनी ही चमकदार। यूपी के घोसी विधान सभा उप चुनाव में मुख्य मुकाबला बीजेपी के दारा सिंह चौहान और सपा के सुधाकर सिंह के बीच है लेकिन पूरी बीजेपी एक तरफ खड़ी है और साथ में एनडीए के नेता भी। उधर सपा खड़ी है और उसके साथ इंडिया वाले भी। एक उपचुनाव में इस तरह की मारामारी आज से पहले नहीं देखी गई।
बड़ा ही दिलचस्प जातीय खेल शुरू है घोसी में। बीजेपी के पक्ष में पूरी जातीय गोलबंदी दिख रही है। उधर सपा भी जातीय गोलबंदी को लेकर सक्रिय हैं। कोई किसी से कम नहीं। उधर जातियां भी बाट निहार रही है कि कौन सी पार्टी उसकी चरण बंदना करने पहुँचती हैं। सच तो यही है कि जो भी इन जातियों को साध लेगा जीत उसी की होगी। सियासी जानकर कहते हैं कि सपा के सामने घोसी सीट बरकरार रखने की चुनौती है। इस सीट पर राजभर मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। पिछली बार सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर सपा के साथ थे, जबकि इस बार वह भाजपा के पाले में आ चुके हैं। दारा सिंह चौहान की नोनिया जाति के भी मतदाता यहां निर्णायक भूमिका में माने जाते हैं। राजनीतिक दलों के चुनावी आंकड़ों की मानें तो उप चुनाव में 4,30,391 मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे।
क्षेत्र में करीब 90 हजार दलित मतदाता हैं। इनमें चमार, जाटव, धोबी, खटीक, पासी के मतदाता अधिक हैं। लगभग 95 हजार मुस्लिम मतदाता बताए जाते हैं इनमें से 50 हजार से अधिक अंसारी हैं। इसके अलावा पिछड़े वर्ग में 50 हजार राजभर, 45 हजार नोनिया चौहान, करीब 20 हजार मल्लाह निषाद, 40 हजार यादव, 5 हजार से अधिक कोइरी और करीब 5 हजार प्रजापति समाज के मतदाता हैं। अगड़ी जातियों में 15 हजार से अधिक क्षत्रिय, 20 हजार से अधिक भूमिहार, 8 हजार से ज्यादा ब्राह्मण और 30 हजार वैश्य मतदाता हैं। जानकर बताते हैं कि कांग्रेस और बसपा के मैदान में न होने से मुकाबला भाजपा और सपा के बीच में है। राजनीतिक जानकर कहते हैं कि सपा ने एक क्षत्रिय को मैदान में उतारा है।
बेशक यह प्रत्याशी इस इलाके से दो बार विधायक भी रहे हैं, लेकिन यहां भाजपा के ओबीसी व सपा के सवर्ण प्रत्याशी के बीच का मुकाबला अलग कहानी कह रहा है। घोसी इलाके में कुछ लोग इतनी जल्दी चुनाव होने पर अपनी नाराजगी जता रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि अभी साल भर भी नहीं बीते इतनी जल्दी चुनाव होना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। अच्छा काम करने वाले को हम लोग दोबारा चुनेंगे। विजय राजभर को मौका देना चाहिए। वह काफी संघर्ष करने वाले व्यक्ति हैं।
कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि इस बार चुनाव राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे पर लड़ा जाएगा। यहां पर योगी और मोदी के ही नाम पर वोट दिया जाता है। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि लोग दल बदलू नेताओं से काफी परेशान हैं। इस बार स्थानीय नेता चुनकर ऐसे लोगों को जवाब दिया जाएगा। जब कोई प्रत्याशी पांच साल के लिए चुना जाता है तो उसे उतनी देर तक तो ठहरना चाहिए। दुर्भाग्य है कि इतनी जल्दी उपचुनाव देखना पड़ रहा है।
उधर घोसी के चौहान बस्ती के लोगों ने जातिगत समीकरण के आधार पर मतदान करने की बात कही है। लोगों का मानना है कि केंद्र और राज्य में जिसकी सरकार है, लोग उसी पार्टी के उम्मीदवार को ही चुनाव जिताएंगे। जानकार कहते हैं कि यह उपचुनाव इंडिया और एनडीए की तो परीक्षा ले ही रहा है। इसके आलावा ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा के सपा का साथ छोड़ने व अब भाजपा के साथ आने से कितना फर्क पड़ेगा। उनकी भी साख का सवाल है। इसी आधार पर वह भाजपा के साथ गए हैं। लोकसभा से पहले घोसी का उपचुनाव कई संदेश देने जा रहा है। सपा का पीडीए कितना कामयाब होगा यह भी देखना होगा।