अखिलेश अखिल
झूठ और ठगी पर आधारित गैर राजनीतिक लोगों के लिए भले ही राजनीति अछूत हो लेकिन राजनीति में डुबकी लगाने वाले जीवों के लिए यह अमृत मंथन से कम नहीं। यह राजनीति राजधारियो को सम्मानित भी कराता है और मालामाल भी। राजनीतिक ताकत तो मिलती ही है जिसके बल पर वह कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता है ।देश में अभी कोई नेता नहीं जो दावा इस बात का कर सके कि वह ईमानदार है और संसद के वेतन से उसके घर परिवार पलते है। जब धनकुबेर ही नेतागिरी करते हों तो गरीब और वेतन के आसरे नेतागिरी करने वालों को राजनीति में कौन लाता है ।पेट पालने वाले कभी धनी नही होते और पैसे वाले ही धनकुबेर बनते रहते हैं। मौजूदा राजनीति का सच तो यही है ।
राजनीति लंपट भी होती है। बहुत कम नेता संसद में मिलेंगे जिनके लंपट की कहानी कही दर्ज न हो ।कोई ठगी का आरोपी है तो कोई जघन्य अपराध का आरोपी,कोई बलात्कार के केस का आरोपी है तो कोई डकैती का आरोपी ।कई नेता झूठी गवाही देने से लेकर न जाने कितने मामले के आरोपी है लेकिन उनकी नेतागिरी चलती रहती है ।आम जनता एक मामूली केस में अपना सब कुछ गवां बैठता है लेकिन आरोपी जन सबको चकमा देकर उम्र भर जीता भी है और कमाता भी है ।लोकतंत्र का यह खेल किसी प्रहसन से कम नहीं ।
खेल देखिए ।अभी हाल में ही जस्टिस नजीर को बीजेपी ने राज्यपाल बनाया । नजीर आंध्र प्रदेश के राज्यपाल बने ।पिछले कई दिनों से वे आलोचना के शिकार है ।लेकिन वी चुप है ।चुप रहने में ही भलाई है ।नजीर मोदी सरकार के पक्ष में कई फैसले दिए है ।उन्होंने जज रहते हुए अयोध्या के पक्ष में फैसला दिया। नोटबंदी के पक्ष में वी खड़े रहे और सरकार के तीन तालक मामले में भी साथ दिया ।फिर सरकार ने जैसे पूर्व सीजे आई रंजन गोगई को रिटायरमेंट के बाद पोस्टिंग दिया था ठीक उसी तरह जस्टिस नजीर को भी राज्यपाल के रूप में पोस्टिंग दी है ।
कांग्रेस ने इसे न्यायपालिका के लिए खतरा बताया है। पार्टी के नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने पूर्व कानून और वित्त मंत्री अरुण जेटली के बयान का जिक्र किया। 2013 में जेटली ने कहा था कि रिटायरमेंट से पहले के फैसले सेवानिवृत्ति के बाद की नौकरियों से प्रभावित होते हैं। हाल के वर्षों में पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस अशोक भूषण को रिटायरमेंट के बाद पोस्टिंग दी गई थी। तीनों जज नवंबर 2019 में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस में फैसला देने वाले पांच जजों की संविधान पीठ में शामिल थे।
अब एक नजर रंजन गोगई पर भी डाल लोजिए ।जस्टिस गोगोई काफी समय तक राज्यसभा एमपी के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा भी कर चुके हैं लेकिन उनका पार्लियामेंट में परफॉर्मेंस काफी निराशाजनक रहा है। तीन साल में राज्यसभा सांसद गोगोई की औसत अटेंडेंस महज 29 प्रतिशत रही है, जबकि बाकी सांसदों की औसत उपस्थिति 79 प्रतिशत है।
उच्च सदन में अपनी नियुक्ति पर तब गोगोई ने कहा था कि संसद में उनकी मौजूदगी विधायिका में न्यायपालिका का नजरिया सामने रखने का एक अवसर होगी। उन्होंने लिखा भी था कि उन्होंने यह ऑफर स्वीकार किया क्योंकि वह न्यायपालिका और पूर्वोत्तर क्षेत्र से जुड़े मुद्दों को उठाना चाहते हैं। दरअसल, संविधान के तहत राष्ट्रपति 12 विशिष्ट क्षेत्रों के लोगों को उच्च सदन में नामित कर सकते हैं। लेकिन तीन साल और आठ राज्यसभा सत्रों में पूर्व सीजेआई ने एक भी सवाल नहीं पूछा है। वह किसी भी चर्चा में शामिल नहीं हुई और न ही कोई प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आए।
क्या गोगई साहब के पास कोई जवाब है ? क्या गोगई साहब से पूर्वोत्तर की जनता सवाल पूछेगी कि आपने उनके लिए क्या किया ? सच तो यही है की न जनता उनसे कुछ पूछेगी और न ही वे कभी जनता के बीच जायेंगे ।वी कभी जनता के लोग तो रहे नही ।जज से रिटायर होकर पेंशन लेंगे और लगे हाथ सांसदी का भी पेंशन मिलेगा ।
देश में ऐसे बहुत से जज ,नौकरशाह और रंगे सियार नुमा लोग है जिनकी नजर सिर्फ सत्ता और सत्ता के जरिए मिलने वाले लाभ पर टिकी होती है ।राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के कारण इन्हें आगे लाते है और मिल बांटकर खाते है ।लोकतंत्र का यह बदला चरित्र आपको भरमा सकता है लेकिन कइयों को लुभाता भी है ।