अखिलेश अखिल
हरियाणा में दावे तो सभी कर रहे हैं। सत्तारूढ़ रही बीजेपी भी फिर से सत्ता में लौटने का दम्भ भर रही है तो कांग्रेस की भी उम्मीद है कि इस बार उसे सत्ता हाथ लग सकती है। कांग्रेस के सभी नेता जोश में हैं लेकिन इसका लाभ उसे कितना मिलेगा यह तो समय ही बताएगा।
एक बड़ी बात यही है कि इस बार के चुनाव में बीजेपी को बड़ा झटका लगा है और पार्टी के कई बड़े नेता पार्टी से बाहर हो गए हैं। लेकिन हरियाणा में जिस तरह की राजनीति होती दिख रही है उससे साफ़ है कि इस बार कांग्रेस और बीजेपी की राह भी आसान नहीं है।
सूबे के चुनावी मैदान में जहाँ एक तरफ कांग्रेस और बीजेपी आमने सामने हैं वही तीन गठबंधन भी पूरी ताकत के साथ मैदान में हैं। जाहिर है चुनाव पंचकोणीय हो गया है। यह भी बता दें कि इस बार के चुनाव में आप भी सभी 90 सीटों पर मैदान में खड़ी है।
बता दें कि इस चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन है और जननायक जनता पार्टी व आजाद समाज पार्टी का गठबंधन है। इस तरह तीन पार्टियां अकेले लड़ रही हैं और दो गठबंधन चुनाव मैदान हैं, जिनमें चार पार्टियां हैं। इनके अलावा भी छोटी पार्टियां और निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में हैं।
तभी सवाल है कि इतने लोगों के चुनाव लड़ने का फायदा किसको होगा और किसको नुकसान होगा? क्या ज्यादा पार्टियों और गठबंधनों के चुनाव लड़ने से सत्ता विरोधी वोट का बंटवारा होगा, जिसका फायदा भाजपा को हो जाएगा? क्या दो जाट और दो दलित पार्टियों के गठबंधन का नुकसान कांग्रेस को होगा, जिसने दलित और जाट का समीकरण बनाया है? और क्या अरविंद केजरीवाल की पार्टी को वैश्य मत मिलेंगे, जिससे भाजपा को नुकसान होगा?
इन सवालों के जवाब आसान नहीं हैं लेकिन मोटे तौर पर ऐसा लग रहा है कि इनेलो और जजपा अपने पारंपरिक असर वाले इलाकों में थोड़े बहुत वोट हासिल कर पाएंगे। जजपा चूंकि भाजपा के साथ साढ़े चार साल सरकार में रही तो सत्ता विरोधी वोट उसके मिलने का सवाल ही नहीं है और इनेलो के पास अब ने नेता हैं और संगठन। सिर्फ परिवार के लोगों वाली सीटों डबवाली, रानियां, एलनाबाद आदि में कुछ हो तो हो।
आम आदमी पार्टी पहले भी हरियाणा में किस्मत आजमा चुकी है और उसके हाथ कुछ नहीं लगा है। इसलिए बहुत नजदीकी मुकाबले वाली कुछ सीटों को छोड़ दें तो इनेलो, बसपा, जजपा, आजाद समाज पार्टी और आप का कोई ज्यादा असर नहीं होने वाला है।