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फिल्म शोले रील या रियल, परदे के अंदर की कहानी

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फिल्मों में दिखाए जाने वाली दृश्य को रील स्टोरी कहा जाता है और यह माना जाता है की यह हकीकत से थोड़ी अलग होती। लेकिन 50वीं साल में प्रवेश करके कर रहे अपने जमाने की चर्चित और सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में शुमार शोले की स्टोरी के साथ बहुत कुछ रियल है और बहुत कुछ रियल लगते हुए भी रियल नहीं होकर रील है। आईए जानते हैं फिल्मों में क्या रियल है और क्या जो रियल लगता है वह प्रारंभिक रियलिटी नहीं है।

सबसे पहले बात इस फिल्म के प्रमुख किरदार गब्बर सिंह की बात की जाए जिसे आधार बनाकर पूरे शोले फिल्म में सारे दृष्यांकन किए गए हैं,वह एक हकीकत था।साल 1926 में मध्य प्रदेश के भिंड जिले के डांग इलाके में हुआ था डाकू गब्बर सिंह का जन्म। मात-पिता ने इसे नाम दिया प्रीतम सिंह, लेकिन शुरू से ही वो मोटा-तगड़ा था तो घरवाले गबरा बोलने लगे। तब यह कोई नहीं जानता था कि वह एक दिन डाकू गब्बर सिंह बन जाएगा, जिसके नाम का खौफ सदियों तक रहेगा। पिता गरीब थे और खेती करते।अपनी कुलदेवी को खुश करने के लिए उसने 116 लोगों की नाक-कान काट डाले। 21 बच्चों की एक साथ हत्या कर दी। एक तांत्रिक के बहकावे में आकर वो अमर होने की कोशिश कर रहा था।इसके अलावा पुलिस मे अपना खौफ पैदा करने के लिए यह जिस पुलिस को पकड़ता था ,उसका नाक – कान काटकर जाने देता था।

फिल्म शोले देखकर जितना दर्शक जय-वीरू की दोस्ती को याद करते हैं, गब्बर को याद कर वे उतनी ही डर जाते हैं। भले ही फिल्म शोले में गब्बर सिंह का रोल अमजद खान ने निभाया था ,लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य लगेगा कि इतनी अच्छी तरह से गब्बर सिंह का रोल अदा करने वाले अमजद खान निर्माता निर्देशक की पहली पसंद नहीं थे।गब्बर के रोल के लिए निर्माता और निर्देशक ने पहले डैनी डेन्जोंगपा को फाइनल कर लिया था। हालांकि डैनी ने उस समय फिरोज खान की फिल्म धर्मात्मा भी साइन की थी। शोले और धर्मात्मा की शूटिंग अक्टूबर में शुरू होने वाली थी। डैनी दोनों फिल्में करना चाहते थे।दोनों बड़े बैनर की फिल्म थी और डैनी का किरदार भी दोनों फिल्मों में जबरदस्त था।उस समय डैनी ने अपने असिस्टेंट मदन अरोड़ा को इसका सॉल्यूशन खोजने के लिए कहा।

डैनी डेन्जोंगपा के असिस्टेंट मदन अरोड़ा ने शोले और धर्मात्मा के मेकर्स से डेट को शिफ्ट करने के लिए कहा।फिरोज खान ने बहुत मुश्किल से अफगानिस्तान में शूटिंग के लिए वहां के सरकार से परमिशन ली थी। इस वजह से शेड्यूल शिफ्ट नहीं हो सकती थी। वहीं, रमेश सिप्पी को अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार, हेमा मालिनी, जया बच्चन से साथ में डेट्स मिले थे। शेड्यूल शिफ्ट करने का मतलब होता उन सारे स्टार्स की डेट्स फिर से एक साथ अरेंज करना, जो काफी मुश्किल होता। जिसके बाद रमेश, फिरोज और मदन ने इसे लेकर खूब माथा-पच्ची की, लेकिन कुछ हाथ नहीं आया।डैनी और फिरोज दोस्त थे ऐसे में डैनी उसे निराश नहीं कर सकते थे।इस वजह से डैनी ने गब्बर के रोल के लिए ना कह दिया। डैनी के इनकार करने के बाद गब्बर सिंह के रूप में अमजद खान का सेलेक्शन किया गया।

फिल्म शोले में सिर्फ गब्बर ही नहीं बल्कि, फिल्म में जय के साथ एक्शन रोल और चुलबुली हेमामालिनी के साथ मजाकिया रोल करने वाले धर्मेंद्र भी फिल्म में बीरू का रोल न करके पुलिस इंस्पेक्टर और ठाकुर बलदेव सिंह का रोल अदा करना चाहते थे। लेकिन जब डायरेक्टर रमेश सिप्पी ने बड़ी चालाकी से धर्मेंद्र को यह बात समझाई कि अगर वह ठाकुर का किरदार निभाते हैं तो फिल्म में हेमा मालिनी और संजीव कुमार के रूप में बीरू और बसंती की रोमांटिक जोड़ी बन जायेगी l और अंत में हेमा मालिनी संजीव कुमार की हो जायेगी, जो फिल्म में वीरू का रोल निभाएंगे। कहते हैं कि इतना सुनने के साथ ही धर्मेंद्र ने वीरू का रोल के लिए हामी भर दी, और लोग पर्दे पर जय और वीरू के रूप में अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र की जोड़ी के साथ बीरू और बसंती के रूप में धर्मेंद्र और हेमा मालिनी की धमाकेदार जोड़ी देख सके।

वही फिल्म शोले में दर्शकों ने पुलिस इंस्पेक्टर और ठाकुर बलदेव सिंह के रूप में जिस जोशीले और गंभीर अदाकारी करने वाले संजीव कुमार को देखा वे भी ठाकुर का रोल न कर गब्बर सिंह का रोल करने की जिद पर अड़े हुए थे। यहां तक की डायरेक्टर को खुश करने के लिए उन्होंने अपने दांतों को काला पेंट कर लिया था और अपना सिर भी मुड़वा लिया था।लेकिन आखिर में डायरेक्टर रमेश सिप्पी की सलाह पर उन्हें फिल्म में ठाकुर का किरदार निभाना पड़ा, जिसे उन्होंने पूरी संजीदगी और जोश – खरोस से निभाकर दर्शकों की खूब वाहवाही लूटी।

इस फिल्म का एक मजेदार वाकया यह भी है कि इसमें 1 मिनट के एक सीन के सूटिंग में 20 दिन लग गए थे। शोले फिल्म में जब यह 1 मिनट का सीन आता है तब अमिताभ बच्चन माउथ ऑर्गन से हारमोनियम का सुर निकालते हैं, और सूर्यास्त के समय राधा बनी जया भादुड़ी दीपक जलाती है।इसी 1 मिनट के सीन को पूरा करने में फिल्म मेकर्स को 20 दिन लग गए क्योंकि वे सूर्यास्त और रात के बीच के बीच का समय का जब आसमान गोल्डन रंग का होता है,डायरेक्टर तभी इस सीन का दृश्यांकण कर फिल्म में दिखाना चाहते थे।

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