बीरेंद्र कुमार झा
2019 में छोड़े गए चंद्रयान-2 की विफलता से सबक लेते हुए भारतीय वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 को काफी परिमार्जित और प्रसंस्कृत करते हुए शुक्रवार को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के लांचिंग पैड से सफलतापूर्वक लॉन्च किया। चंद्रयान-3 के सफलतापूर्वक लॉन्चिंग से पूरे भारत में खुशियों का माहौल है।लेकिन अभी इस चंद्रयान-3 की असली परीक्षा बाकी है। इसके लिए अभी 40 दिनों का एक लंबा वक्त है। यदि चंद्रयान-3 का लैंडर विक्रम चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक चंद्रमा की सतह को छूता है और फिर रोवर प्रज्ञान को सफलतापूर्वक लैंड कराता है, तब भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के अभियानों के इतिहास में एक नया आयाम लिखा जाएगा।
अंतिम समय में गति नियंत्रित नहीं कर सका था चंद्रयान -2
इस साल चंद्रमा पर कुल 6 अभियान हो रहे हैं। चंद्रयान-3 उस लिस्ट में पहले नंबर पर है। चंद्रयान-2 को 22 जुलाई 2019 को श्रीहरिकोटा के जीएसएलवी मार्क 3 यानी बाहुबली रॉकेट के द्वारा लांच किया गया था। इसके भी तीन हिस्से थे ऑर्बिटर,लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान।लैंडर विक्रम को 6 सितंबर की देर रात प्रज्ञान को लेकर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी।लैंडिंग के बाद रोवर प्रज्ञान को बाहर आना था, लेकिन उतरने से 3 मिनट पहले विक्रम से इसरो का संपर्क टूट गया ।कई अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का मानना है कि की लैंडर विक्रम लैंडिंग के दौरान अपनी गति को नियंत्रित किए बिना चंद्रमा की सतह से टकराया था। इस अनुभव को लेकर इसरो के वैज्ञानिक इस बार अधिक सावधान हैं। प्रक्षेपन बिना किसी रूकावट के संपन्न हुआ अब लैंडिंग का इंतजार है।
क्या काम करेगा चंद्रयान 3
इसरो के मुताबिक करीब 40 दिन बाद चंद्रयान-3 का सौर ऊर्जा से संचालित लेंडर 23 या 24 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर उतर सकता है।वहां से सौर ऊर्जा से चलने वाला रोवर प्रज्ञान निकलेगा और चांद की धरती को छुएगा। प्रज्ञान रोवर चंद्रमा की मिट्टी की प्रकृतिऔर विभिन्न खनिजों की उपस्थिति पर डेटा एकत्र करेगा। चंद्रमा पर उतरने का चरण सूर्योदय के समय का होगा। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सूर्यास्त के 2 सप्ताह बाद यह काम समाप्त हो जाएगा। चंद्रयान-3 चंद्रमा की कक्षा में पहुंचेगा और लैंडिंग से पहले और ऑर्बिटर से जुड़ जाएगा।
क्या हुआ था मिशन चंद्रयान-2 का
7 जुलाई 2019 को मिशन-2 लैंडर विक्रम ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सिंपेलियस एन और मैंगिनस सी नामक दो चट्टानों के बीच उतरने का प्रयास किया था,लेकिन वह सफल नहीं हो सका। 3 महीने तक अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी नासा विक्रम के अवशेषों की खोज करती रही,लेकिन किसी तरह से इसे पहचान नहीं सकी। आखिरकार नासा ने लूनर रिकॉनिसेंस ऑर्बिटर द्वारा ली गई एक तस्वीर साझा की। इस तस्वीर को देखकर चेन्नई के एक मैकेनिकल इंजीनियर ने विक्रम के मलवे की पहचान की। आश्चर्य की बात यह है कि लैंडर और रोवर के नष्ट हो जाने के बावजूद इसका ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है।चंद्रयान 3 उस ऑर्बिटर का उपयोग करेगा।