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दूसरे चरण में महाराष्ट्र की आठ सीटों पर होंगे चुनाव ,शिंदे और शरद पवार की प्रतिष्ठा दाव पर 

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न्यूज़ डेस्क
 वैसे तो देश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रहे हर उम्मीदवार की प्रतिष्ठा अडाव पर लगी हुई है लेकिन इस चुनाव में कई दलों की प्रतिष्ठा भी दाव पर है। महाराष्ट्र में पिछले दो साल में दो दलों में भारी टूट हुई है। शिवसेना दो खंडो में बंट गई है तो शरद पवार की एनसीपी भी दो गुटों में बंट गई है। ऐसे में इस चुनाव में खासकर शिंदे गुट और शरद पवार गुट की प्रतिष्ठा दाव पर है। अगर इस चुनाव में इन दलों को कुछ सीटें मिल जाती है तो ठीक है वरना इन दलों का भविष्य ही खतरे में पड़ सकता है।

लोकसभा चुनाव 2024 के दूसरे चरण में महाराष्ट्र की आठ सीटों बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल-वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी के लिए 26 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। इन सीटों पर लड़ाई चुनावी हार-जीत से ज्यादा सम्मान और राजनीतिक भविष्य की मानी जा रही है। इस क्षेत्र में मराठा राजनीति के पितामह शरद पवार की एनसीपी और मराठी अस्मिता को एक नई ऊंचाई देने वाले बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना पार्टी की परंपरागत पकड़ रही है।

 यदि एनसीपी का शरद पवार गुट और शिवसेना का उद्धव ठाकरे गुट इस क्षेत्र में जीत हासिल कर अपनी पकड़ बनाए रखने में सफल हो जाता है, तो यही माना जाएगा कि दोनों दलों में दो फाड़ होने के बाद भी मतदाताओं का शरद पवार-उद्धव ठाकरे के ऊपर विश्वास बना हुआ है, लेकिन यदि ये नेता अपनी जमीन पर पकड़ बनाए रखने में सफल नहीं हो सके, तो इससे यही संकेत जाएगा कि मराठा राजनीति और शिवसेना की परंपरागत राजनीति में नए ध्रुव स्थापित हो चुके हैं। इससे मराठा राजनीति को एक नई दिशा मिल सकती है।    

माना यही जा रहा है कि इस क्षेत्र में लड़ाई ‘पवार बनाम पवार’ या ‘शिवसेना बनाम शिवसेना’ की हो सकती है, लेकिन भाजपा इस क्षेत्र में पूरा चुनाव ‘मोदी बनाम राहुल’ बनाने की कोशिश कर रही है। उसके नेता-कार्यकर्ता लोगों के बीच यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में बात राष्ट्रवाद और हिंदुत्व जैसे ज्यादा बड़े मुद्दों की है, लिहाजा मतदाता बड़े मुद्दों को ध्यान में रखते हुए ही मतदान करें। वहीं, महाविकास अघाड़ी गुट इसे मराठा अस्मिता और ठाकरे परिवार से बगावत जैसे भावनात्मक मुद्दों की ओर खींचने की कोशिश कर रहा है।  

महाराष्ट्र की अमरावती लोकसभा सीट नवनीत राणा की उम्मीदवारी के कारण खूब चर्चा में हैं। इस बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं नवनीत राणा ने इसी सीट पर पिछले चुनाव में शरद पवार की पार्टी एनसीपी के सहयोग से स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर बड़ी जीत हासिल की थी। हालांकि, एनसीपी के सहयोग से चुनाव जीतने के बाद भी वे लगभग हर मुद्दे पर मोदी सरकार के साथ खड़ी दिखाई देती रहीं। इसे उनकी भविष्य की राजनीति के लिए जमाई जा रही फील्डिंग के तौर पर देखा गया था। अपने पति के साथ हिंदुत्ववादी चेहरे के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाली नवनीत राणा पिछले समय तब बहुत ज्यादा सुर्खियों में रही थीं, जब उन्होंने तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और सड़कों पर हनुमान चालीसा का पाठ करने लगी थीं। भाजपा को उनकी उस हिंदुत्ववादी छवि का लाभ मिलने का अनुमान है।

अकोला की सीट से भाजपा उम्मीदवार अनुप धोत्रे चुनावी मैदान में हैं। इस सीट पर वे अपने चार बार के सांसद पिता संजय धोत्रे की राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं। उनके पिता संजय धोत्रे इस सीट पर 2004 से अब तक लगातार जीत हासिल करते आ रहे थे। लिहाजा अनुप धोत्रे को अपने पिता की राजनीतिक जमीन का लाभ मिल रहा है, हालांकि पिता की लंबी राजनीतिक विरासत के एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर के कारण उन्हें कुछ नुकसान भी हो सकता है।  

अनूप धोत्रे को इस सीट पर सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. अभय पाटिल से मिल रही है, लेकिन 1998 और 1999 में इसी सीट पर चुनाव जीत चुके प्रकाश अंबेडकर को अनूप धोत्रे के सामने असली चुनौती माना जा रहा है। यदि प्रकाश अंबेडकर और डॉ. अभय पाटिल के बीच वोटों का बंटवारा हुआ, तो इसका सीधा लाभ अनूप धोत्रे को मिल सकता है।
बुलढाणा को शिवसेना के गढ़ के तौर पर देखा जाता है। शिवसेना ने 1999 से अब तक इस सीट पर अपना कब्जा लगातार बरकरार रखा है। प्रतापराव गनपतराव जाधव इस सीट पर तीन बार से लगातार जीत हासिल कर रहे हैं। इस बार वे शिवसेना (शिंदे गुट) से उम्मीदवार हैं। ऐसे में पहली नजर में इस सीट पर प्रतापराव की दावेदारी मजबूत दिखाई पड़ रही है, लेकिन शिवसेना की परंपरागत सीट होने के कारण इस सीट पर उन्हें शिवसेना (उद्धव गुट) के उम्मीदवार नरेंद्र खेड़ेकर से कड़ी टक्कर मिल रही है। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि शिवसेना के परंपरागत वोटर एकनाथ शिंदे गुट वाली शिवसेना पर अपना भरोसा जताते हैं, या उद्धव ठाकरे को सहानुभूति का लाभ मिलता है।  

परभणी लोकसभा सीट भी शिवसेना की परंपरागत सीट मानी जाती है। पार्टी ने 1999 से अब तक इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा है। ऐसे में इस सीट पर भी एकनाथ शिंदे बनाम उद्धव ठाकरे की लड़ाई देखने को मिलने वाली है। 2014 और 2019 में इस सीट से शिवसेना के संजय जाधव ने जीत हासिल की थी। संजय जाधव शिवसेना के उन पांच सांसदों में से एक हैं, जिन्होंने एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद भी उद्धव ठाकरे के साथ अपनी वफादारी बनाए रखी है। इस बार भी वे शिवसेना (उद्धव गुट) के उम्मीदवार हैं।

नांदेड़ की लोकसभा सीट पर भाजपा-कांग्रेस में हमेशा से मजबूत टक्कर रही है। कभी यह सीट कांग्रेस के खाते में, तो कभी भाजपा के खाते में जाती रही है। इस बार भी इस सीट पर लड़ाई इन्हीं दोनों दलों के बीच है। नांदेड़ से वर्तमान सांसद प्रतापराव चिखलिकर को भाजपा ने दोबारा मैदान में उतारा है, तो कांग्रेस ने वसंतराव बलवंतराव चव्हाण पाटिल को मैदान में उतारा है। इस सीट पर पूर्व दिग्गज कांग्रेसी नेता अशोक चव्हाण का विशेष असर रहा है। 

वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार वसंतराव बलवंतराव चव्हाण पाटिल इस क्षेत्र में मजबूत जमीनी नेता के तौर पर देखे जाते हैं। वे दो बार विधायक भी रह चुके हैं, लिहाजा क्षेत्र पर पकड़ भी रखते हैं। कई शैक्षणिक संस्थाओं के जरिए वे इस क्षेत्र में एक साफ-सुथरी छवि के सामाजिक व्यक्ति के तौर पर देखे जाते हैं। वे भाजपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दे सकते हैं।

हिंगोली में लंबे समय से मुकाबला शिवसेना बनाम कांग्रेस का रहा है, लेकिन अब दोनों ही दल महाविकास अघाड़ी का हिस्सा हैं। एकनाथ शिंदे की शिवसेना पार्टी के प्रत्याशी बाबूराव और शिवसेना (यूबीटी) के नागेश पाटिल आष्टीकर के बीच होगा। इससे शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के उम्मीदवार को लाभ मिल सकता है।  

यवतमाल-वाशिम की सीट पर वर्तमान सांसद हेमंत पाटिल की पत्नी राजश्री पाटिल मैदान में हैं। उन्हें पति की राजनीतिक विरासत का लाभ मिल सकता है। उन्हें उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना के उम्मीदवार संजय देशमुख से अच्छी टक्कर मिल रही है। वर्धा लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार रामदास का मुकाबला एनसीपी (शरद पवार गुट) के अमर काले के बीच है।  

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