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राहुल गांधी को संसद से निकालने का वक्त आ गया है : निशिकांत दुबे

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बीरेंद्र कुमार झा

राहुल गांधी ने यूरोप और अमेरिका में अपनी बयानों से लगातार संसद और देश की गरिमा को धूमिल किया है। इसलिए उन्हें संसद से निष्कासित करने का समय आ गया है। उनकी लोकसभा सदस्यता को खत्म किया जाना चाहिए।’

यह बयान बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे का है। दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर शिकायत की है कि ऐसे भाषण किसी भी भारतीय और खासकर सांसद के आचरण पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। ऐसे में विशेष कमेटी बनाकर उनके आचरण की जांच की जाए और लोकसभा सदस्यता रद्द की जाए।

राहुल गांधी का ब्रिटेन दौरे पर दिया गया वक्तव्य

राहुल गांधी इस साल फरवरी और मार्च में ब्रिटेन के दौरे पर गए थे। राहुल ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में ‘लर्निंग टू लिसेन इन द 21st सेंचुरी’ कार्यक्रम में कहा था कि भारत में सभी स्वतंत्र एजेंसियों पर कब्जा हो गया है और इसी के चलते देश में लोकतंत्र खतरे में हैं।

उन्होंने कहा कि भारत में विपक्ष के साथ लोगों की आवाज दबाई जा रही है। चाहे संसद, न्यायालय, प्रेस या चुनाव आयोग हो, सभी पर किसी न किसी प्रकार से नियंत्रण किया जा चुका है।

राहुल गांधी लंदन में ब्रिटिश सांसदों को संबोधित करते हुए कहा था कि संसद में काम कर रहे माइक्रोफोन को अक्सर विपक्ष के बोलने पर बंद कर दिया जाता है।

राहुल के बयान पर बीजेपी की आपत्ति और मांग

संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण 14 मार्च से शुरू हुआ। सत्र के शुरू होते ही बीजेपी ने कहा कि राहुल गांधी ने यूरोप और अमेरिका में अपने बयानों से लगातार संसद और देश की गरिमा को धूमिल किया है।

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्‌डा, राजनाथ सिंह और पीयूष गोयल ने राहुल को देश से माफी मांगने को कहा। नड्‌डा ने कहा कि दुर्भाग्य की बात यह है कि कांग्रेस देश विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गई है। जनता के बार-बार नकारे जाने के बाद राहुल गांधी इस देश विरोधी टूलकिट का एक परमानेंट हिस्सा बन गए हैं।

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने 15 मार्च को लोकसभा स्पीकर को नियम 223 के तहत एक पत्र लिखा है। उन्होंने लिखा, ‘राहुल गांधी के आचरण को या तो विशेषाधिकार कमेटी या विशेष कमेटी की ओर से जांचे जाने की जरूरत है। इसके बाद सदन को विचार करना चाहिए कि क्या ऐसे सदस्य की सदस्यता खत्म कर देनी चाहिए ताकि संसद और अन्य लोकतांत्रिक संस्थानों की रक्षा की जा सके। उन्होंने लिखा कि यह स्पष्ट संदेश दिए जाने की जरूरत है कि आगे से कोई भी उच्च संस्थानों के गौरव और सम्मान से खिलवाड़ नहीं कर सके।’

किसी सांसद की सदस्यता कैसे की जा सकती है खत्म

संविधान में सदस्यता खत्म करने का कोई नियम नहीं है, लेकिन सदन प्रस्ताव करके किसी भी सदस्य की सदस्यता समाप्त कर सकता है। आजाद भारत के इतिहास में इसके उदाहरण भी मिलते हैं।

1951 में एचजी मुद्गल की संसद सदस्यता खत्म की गई

आजादी के बाद अस्थाई संसद के सदस्य कांग्रेस नेता एचजी मुद्गल पर 1951 में संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने का आरोप लगा था। उस वक्त प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने मामले की जांच के लिए संसद में एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव पारित कराया।

कमेटी ने मुद्गल को दोषी पाया और उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई। हालांकि, संसद में प्रस्ताव आने से पहले ही मुद्गल ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद भी प्रस्ताव लाया गया था।

1976 में संसद को बदनाम करने के आरोप में सुब्रमण्यम स्वामी की सदस्यता खत्म की गई

साल 1976 में आपातकाल के दौरान सुब्रमण्यम स्वामी जन संघ के नेता थे और राज्यसभा सांसद थे। उस वक्त स्वामी पर देश-विरोधी प्रोपेगैंडा में शामिल होने और संसद और देश के महत्वपूर्ण संस्‍थानों को बदनाम करने के आरोप लगा।

इसके बाद संसद में 10 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई। जांच के बाद कमेटी ने 15 नवंबर 1976 को स्वामी को दोषी बताते हुए राज्यसभा से निष्कासित कर दिया था।

1978 में इंदिरा गांधी की सदस्यता खत्म करने के साथ जेल भी भेजा था

साल 1978 में में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना का आरोप लगाया गया था। उन पर काम में बाधा डालने, कुछ अधिकारियों को धमकाने, शोषण करने और झूठे मुकदमे में फंसाने का आरोप था।

इसके बाद संसद में साधारण प्रस्ताव के जरिए 20 दिसंबर 1978 को उनकी संसद सदस्यता खत्म कर दी गई थी। साथ ही सत्र चलने तक जेल भेजने का आदेश दिया गया था। हालांकि एक महीने बाद लोकसभा ने उनका निष्कासन वापस ले लिया

2005 में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने पर 11 सांसदों की सदस्यता खत्म की गई

दिसंबर 2005 में एजजी मुद्गल जैसा मामला दोबारा सामने आया। एक टीवी चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में कई पार्टियों के 11 सांसद संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेते नजर आए। इसमें 10 लोकसभा और 1 राज्यसभा सांसद थे। सांसदों के काम को भ्रष्ट और अनैतिक बताया गया।

लोकसभा ने कांग्रेस सांसद पवन कुमार बंसल के नेतृत्व में 5 सदस्यीय विशेष कमेटी बनाई। कमेटी में बीजेपी के वी के मल्होत्रा​, सपा के राम गोपाल यादव, सीपीआई-एम के मोहम्मद सलीम और डीएमके सी कुप्पुसामी शामिल थे। राज्यसभा में जांच सदन की एथिक्स कमेटी ने की।

इसके बाद कमेटी ने लोकसभा में 38 पेज की रिपोर्ट पेश की। इसमें सांसदों को दोषी पाया गया। इसके बाद संसद में एक प्रस्ताव के जरिए इन 11 सांसदों की सदस्यता खत्म कर दी गई।

मौजूदा मामले में राहुल गांधी की सदस्यता खत्म की जाने की संभावना

अब तक जैसे उदाहरण सामने आए हैं उनसे ये साफ है कि अगर बीजेपी की मांग पर लोकसभा अध्यक्ष विशेष कमेटी बनाकर जांच कराएं और यह कमेटी राहुल पर लगे आरोपों को सही पाती है तो सदन में एक प्रस्ताव पारित करके उनकी सदस्यता खत्म की जा सकती है।

बीजेपी का लोकसभा में बहुमत है इसलिए यह पार्टी के लिए कठिन काम नहीं है।

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार सदन सर्वोच्च है। सदन के पास विशेष कमेटी बनाने और उसके काम करने की शर्तें तय करने का पूरा अधिकार है।

वहीं लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य के अनुसार सदन एक प्रस्ताव के जरिए कमेटी बना सकती है। ये कमेटी आरोपों की जांच करके सजा की सिफारिश कर सकती है।

राहुल गांधी का मामला और विशेषाधिकार हनन

संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी और बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने राहुल को अडाणी मामले में विशेषाधिकार हनन नोटिस भेजा था। दरअसल, केरल के वायनाड से सांसद राहुल गांधी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री के अरबपति गौतम अडाणी के साथ संबंध हैं।

राहुल गांधी पर लोकसभा के कामकाज के नियम 353 और 369 के उल्लंघन का आरोप है। नियम 353 के तहत जो सदन में मौजूद नहीं हो, उसके खिलाफ आरोप नहीं लगाए जा सकते, क्योंकि वह अपना बचाव नहीं कर सकता है।

नियम 353 ही कहता है कि किसी सदस्य को किसी अन्य सदस्य के खिलाफ आरोप मढ़ने से पहले लोकसभा सचिवालय को बताना होता है और लोकसभा अध्यक्ष से अनुमति लेनी होती है। वहीं नियम 369 के तहत कोई सदस्य सदन में कोई कागज दिखाए तो उसे उसकी सत्यता का प्रमाण पेश करना होता है।

इस मामले में यदि कमेटी अपनी जांच में सदस्य को दोषी मानती है तो उसे अधिकतम पूरे सत्र के लिए निलंबित किया जा सकता है।

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार किसी सदस्य ने विशेषाधिकार का हनन किया है, या सदन की अवमानना हुई है या नहीं हुई है ,यह तय करने का अधिकार भी सदन को ही है।

राहुल गांधी प्रकरण का राजनीति पर पड़ने वाला प्रभाव

राहुल गांधी प्रकरण के बीच एक बड़ा सवाल यह है कि क्या बीजेपी वायनाड से सांसद राहुल की सदस्यता खत्म करवाना चाहती है? इस पर राजनीतिक जानकार कहते हैं कि पार्टी ऐसा करके राहुल पर दबाव बनाए रखना चाहती है।

वहीं पार्टी के कई नेताओं को डर है कि सदस्यता खत्म होने से राहुल को जनता की सहानुभूति मिल सकती है। अभी लोकसभा चुनाव होने में सालभर का समय है। ऐसे में उप चुनाव में यदि राहुल वायनाड से दोबारा जीत जाते हैं तो यह बीजेपी के लिए झटका होगा और लोगों में एक गलत राजनीतिक संदेश जाएगा।

पॉलिटिकल एक्सपर्ट राशिद किदवई के अनुसार बीजेपी कहीं न कहीं राजनीतिक रूप से राहुल गांधी का इमेज बड़ा बनाना चाहते हैं। इससे 2024 का लोकसभा चुनाव मोदी बनाम राहुल गांधी हो जाएगा और बीजेपी के लिए ,2024 का लोकसभा चुनाव जीतना आसान ही जायेगा।

दूसरी बड़ी बात इससे विपक्ष की एकजुटता और एकता भी खतरे में आती है। क्योंकि विपक्षी दल जैसे तृणमूल कांग्रेस, जेडीयू और आप जैसी पार्टियां राहुल को अपना लीडर नहीं मानेंगे। ये बीजेपी की मुराद पूरा होने जैसा होगा। ऐसे में बीजेपी राहुल की लोकसभा सदस्यता खत्म करवाने का प्रयास कर सकती है।

 

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