अखिलेश अखिल
विपक्षी दलों की बैठक बंगलुरु में समाप्त होने के साथ ही दिल्ली के अशोका होटल में एनडीए की बैठक शुरू हो गई। कहा जा रहा है कि इस बैठक में 38 पार्टियां शामिल हो रही है। बैठक देर रात तक चलेगी क्योंकि बैठक के बाद रात्रि भोज का भी आयोजन है। बैठक को बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा सम्बोधित करेंगे और फिर पीएम मोदी भी सभी नेताओं से मिलकर अपनी बात रखेंगे। इस बीच एक बड़ी बात यह सामने आयी है कि बीजेपी के नेताओं ने कहा है कि एनडीए की बैठक देश को आगे बढ़ाने के लिए की जा रही है जबकि विपक्षी बैठक देश के खिलाफ राजनीति करने वाली है।
लेकिन बड़ा सवाल है कि एनडीए की बैठक में वे दल क्यों नहीं आये जो अबतक संसद से लेकर सड़क तक बीजेपी की नीतियों के समर्थन में खड़े रहे हैं। आंध्रा के मुख्यमंत्री जगन रेड्डी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नविन पटनायक मोदी सरकार के हर निर्णय के साथ खड़े रहे हैं लेकिन वे एनडीए के घटक नहीं हैं। इन नेताओं की अपनी सरकार भी चल रही है। उधर केसीआर पहले मोदी सरकार के खिलाफ काफी उग्र हुए थे। मोदी सरकार के खिलाफ तीसरा मोर्चा भी बनाने चले थे। कई राज्यों का दौरा भी उन्होंने किया था। कई क्षत्रपों के साथ उनकी बैठक भी हुई थी लेकिन अभी वे शांत हो गए ,न तो विपक्षी एकता के साथ गए और न ही एनडीए के साथ। कहा जा रहा है कि उनकी बेटी ईडी और सीबीआई के रडार पर हैं और इसीलिए वे मौन हो गए। अब उनकी राजनीति अवसान पर लग रही है। पार्टी में टूट की संभावना है कांग्रेस उसे भारी टक्कर दे रही है।
सवाल तो ये भी है कि महीनो से यह बात चल रही थी कि पश्चिमी यूपी की राजनीति करने वाले जयंत चौधरी एनडीए के साथ जा सकते हैं। बीजेपी ने काफी प्रयास भी किया लेकिन जयंत बंगलुरु पहुंच गए और आज प्रेस के सामने बीजेपी पर काफी हमला किया। चंद्रबाबू नायडू भी एनडीए के साथ नहीं आये। वह आते तो लगता कि कोई बड़ा नेता आया। वे भी मौन है। नायडू भी बीजेपी के समर्थक रहे हैं लेकिन अभी मौन हैं। उम्मीद थी कि कर्नाटक की पार्टी जेडीएस एनडीए के साथ आएगी ,वह भी संभव नहीं हुआ। यह भी कहा जा रहा था कि शिरोमणि अकाली दल एनडीए के साथ आ सकता है ,लेकिन उसने भी मन कर दिया। याद रहे ये सारे दल कभी एनडीए के साथ थे और काफी मजबूत स्थिति में थे।
अब मूल बात पर आइये .एनडीए की बैठक में बिहार की कई पार्टियों को बुलाया गया है। इन पार्टियों में शामिल है उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी ,चिराग पासवान की पार्टी ,मुकेश साहनी की पार्टी और जीतन राम मांझी की पार्टी। इन सभी पार्टियों का अपना जातीय वोट बैंक है और चुनाव जीतते -हारते रहे हैं। इन सभी पार्टियों में केवल चिराग की पार्टी ही ऐसी है जिसने पिछले चुनाव में 6 सीटें जीतकर आई थी। हालांकि चाचा -भतीजा की लड़ाई में पार्टी बंट गई और पांच सांसद चाचा पशुपति पारस के साथ चले गए। पारस अभी मोदी सरकार में मंत्री है और चिराग अकेले अपनी पार्टी को चला रहे हैं। उधर उपेंद्र कुशवाहा बैठक में तो शरीक जरूर हुए हैं लेकिन उन्ही की जाति बड़े नेता रहे नागमणि को भी बीजेपी ने बुलाया है। कुशवाहा की परेशानी बढ़ी हुई है।
कह सकते हैं कि नीतीश कुमार का साथ छूटने के बाद बीजेपी बिहार में कमजोर हुई है और उसकी सबसे बड़ी परेशानी यही है कि पिछली बार की तरह अगर इस बार उसके 22 सांसद बिहार से नहीं जीतकर आये तो बीजेपी को परेशानी होगी। कहा जा रहा है कि एनडीए की मौजूदा बैठक केवल बिहार को साधने के लिए की गई है। लेकिन सवाल है कि बीजेपी की ये सहयोगी पार्टी बिहार को कितना साध पायेगी कहना मुश्किल है। अगर बीजेपी अपने फंड पर भी इन दलों को दो चार सीट दे भी देती है तो कहना मुश्किल है कि ये पार्टियां कोई बेहतर प्रदर्शन कर पायेगी ?

