बीरेंद्र कुमार झा
उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव से लेकर रामपुर की स्वार और मिर्जापुर की छानवे विधानसभा सीट के नतीजे अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हुआ है। समाजवादी पार्टी लगातार बीजेपी सरकार पर हमलावर होकर उसे कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रही थी। धार्मिक और जातीय आधार पर भी उसने इस बार सतर्कता बरतने का प्रयास किया,लेकिन फिर भी वह मतदाताओं का भरोसा नहीं जीत सकी। नगर निगमों से लेकर नगर पालिका और नगर पंचायत तक में उसका ग्राफ 2017 के मुकाबले काफी नीचे गिर गया है। इससे अखिलेश यादव के समक्ष लोकसभा चुनाव से पहले ही एक बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई है।
धरी रह गई समाजवादी पार्टी की सारी उम्मीदें
समाजवादी पार्टी को यह उम्मीद थी कि इस बार मेयर पद की लड़ाई में वह अच्छा प्रदर्शन करेगी, कम से कम उसका खाता तो जरूर खुलेगा,लेकिन एक बार फिर उसे नाकामी ही हासिल हुई। चुनाव दर चुनाव उसकी हार का सिलसिला जारी है। अखिलेश यादव या समाजवादी पार्टी के अन्य नेता भले ही सरकार पर पक्षपात और सत्ता का दुरुपयोग सहित अन्य आरोप लगा लें, लेकिन हकीकत यह है कि पार्टी अपनी रणनीति को धरातल पर उतारने से लेकर मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने में सफल नहीं हो पा रही है। इसका असर उसके सियासी ताकत पर भी पड़ रहा है।
नगर निगमों में उठाना पड़ा नुकसान
उत्तर प्रदेश में कई जगह समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता एक दूसरे का विरोध करते नजर आए टिकट नहीं मिलने के कारण नाराज लोग पार्टी उम्मीदवार के साथ मेहनत करते नहीं दिखी इसकी वजह से भी नकारात्मक असर पड़ा यहां तक कि पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों को बागियों के मैदान में उतरने से भी नुकसान उत्तर प्रदेश में 2017 में समाजवादी पार्टी के 202 पार्षद थे।इस तरह कुल पार्षद का दशमलव 50% समाजवादी पार्टी की झोली में गया था इस बारिश में गिरावट देखने को मिली है और यह 13.45 फीसदी तक ही पहुंच पाया।
नगर पालिका में भी नीचे गिरा ग्राफ
इसी तरह नगर पालिका/ परिषद अध्यक्ष की बात करें तो 2017 में पार्टी के 45 प्रत्याशी इस पद पर जीते थे ,जो कुल पद का 22.73% था।इस बार के चुनाव में यहां भी समाजवादी पार्टी पिछड़ती नजर आई और उसके 29 उम्मीदवार ही जीत सके। इस तरह यह आंकड़ा 17.59% तक ही पहुंच सका। नगरपालिका के सदस्यों में भी यही स्थिति देखने को मिली पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी के नगर पालिका सदस्यों की संख्या 488 था जो कुल का 9% था, इस बार इस पद पर पार्टी के 420 सदस्य हैं जो कुल का मात्र 7.8% है।,
नगर पंचायत में भी लचर प्रदर्शन
नगर पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में 2017 में सपा के खाते में 83 सीटें आई थी जो कुल का 18.9 5% था, वहीं इस बार इसके 78 उम्मीदवार ही जीत सके और आंकड़ा 14.3 4% पर सिमट गया।नगर पंचायत सदस्यों, की बात करें तो 2017 की तुलना में इस बार इसमें भी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा है। इसका आंकड़ा 8.34% से घटकर 6.73% तक पहुंच गया।
समाजवादी पार्टी की हार के प्रमुख कारण
1 बीजेपी में संगठन से लेकर सरकार तक हर मोर्चे पर निकाय चुनाव को लेकर काफी पहले से सक्रिय हो गई थी, जबकि समाजवादी पार्टी में प्रारंभ में इसे लेकर कोई हलचल भी नजर नहीं आ रही थी। प्रमुख विपक्षी दल होने के कारण उसे ज्यादा मेहनत करने की जरूरत थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
2 लोकसभा चुनाव 2024 के लिए विपक्ष को मजबूत करने की बात करने वाले अखिलेश यादव स्वयं अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को मजबूती देने के लिए समय से धरातल पर नजर नहीं आए।
3 बीजेपी रैलियों पर रैलियां करती रही, लेकिन समाजवादी की पार्टी की रणनीति इस बात पर टिकी रही कि जनता खुद सरकार का विरोध कर उसके प्रत्याशियों को वोट देकर जीता देगी।
4 समाजवादी पार्टी ने अपने प्रत्याशियों की सूची घोषित करने में भी काफी देरी की। नामांकन के अंतिम दिन तक उम्मीदवार घोषित किए गए।
5 पार्टी नेतृत्व अपने नेताओं का मनमुटाव दूर करने में नाकाम रहा। स्थानीय स्तर पर खींचतान का नुकसान उसके उम्मीदवारों को उठाना पड़ा।
6 स्वार विधानसभा उपचुनाव में आजम खां अकेले नजर आए और ऐसा लगा कि यह उप चुनाव नहीं हो कर उनका निजी मामला हो। जबकि समाजवादी पार्टी को वहां ज्यादा फोकस करने की जरूरत थी।
6 छानवे में भी यही स्थिति रही। चुनाव में अखिलेश यादव इतना जोर नहीं लगा पाए जितना विपक्षी दल होने के नाते जनता को उनसे उम्मीद थी।