Homeदेशढहता लोकतंत्र : लोकतान्त्रिक संस्थाओं का पतन काल 

ढहता लोकतंत्र : लोकतान्त्रिक संस्थाओं का पतन काल 

Published on

अखिलेश अखिल 
क्या देश की अदालतें इबादतगाह नहीं जुआघर हैं और संविधान को हमने विफल कर दिया है। क्या संसद और विधान सभाएं जिन्हें हम विधायिका कहते हैं, किसी मछली बाजार से ज्यादा कुछ भी नहीं है! और कार्यपालिका के बारे तो कुछ पूछिए ही नहीं। इसकी गाथा तो अंतहीन है। इसका एकमात्र चरित्र तो यही है कि इसके दामन दागदार हैं और जनता का इस पर कोई भरोसा नहीं। और लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तम्भ विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका पर अंकुश रखने, उसकी रखवाली करने और लोकतंत्र में जनता की आवाज बनने के लिए जिस मीडिया की भूमिका को चिन्हित किया गया था वह अब सबसे ज्यादा पतित, बेईमान और गुलाम हो गई है।

मौजूदा समय में पत्रकारिता की नयी पहचान गोदी मीडिया के रूप में चर्चित है और पत्रकार समाज का सबसे बदनाम तबका। हालांकि पहले ऐसा नहीं था। दुनिया को भारतीय मीडिया पर गर्व था और भारत के पत्रकार भी अपने सुकर्मो पर गीत गाय करते थे। लेकिन अब भारत का वही मीडिया मानो किसी कोठे की दासी बन गई हो। अधिकतर  मीडिया का लोकतंत्र में न कोई आस्था है और न ही जनता के सवालों से उसका कोई लगाव। देश जलता रहे ,धर्म के नाम पर वोटों की तिजारत होती रहे और देश के मौजूदा सवालों पर विपक्ष चिल्लाता रहे लेकिन जब मीडिया इन सब बातों से अपना मुँह फेर ले और किसी निर्देश पर नर्तन करने लगे तो सारी लोकतंत्र की कहानी बेमानी ही लगती है।

मौजूदा भारतीय लोकतंत्र की सही तस्वीर तो यही है जो ऊपर कही जा रही है। इस पर आप इतराइए या फिर रुदाली कीजिए लेकिन सच यही है कि आज जब देश आजादी का अमृतकाल मना रहा है तो लोकतंत्र के चार प्रमुख स्तम्भों समेत तमाम तरह की संविधानिक और सरकारी संस्थाओं के लचर होने की गाथा भी गाई जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा हो कहाँ रहा है? केवल हम इस बात को लेकर खुश हैं कि आजादी के 75 साल हो गए और इन सालों मे भारत दुनिया के सामने एक मजबूत राष्ट्र के रूप में खड़ा है। लेकिन यह कोई नहीं कहता कि इन 75 सालों में ही भारत का  लोकतंत्र हांफने लगा है ,उसके मूल्य धूमिल हुए हैं। संस्थाओं की गरिमा तार -तार हुई है ,हमने अपना चरित्र खो दिया है और एक ऐसी लम्पट संस्कृति का वरण कर लिया है जिसमे  नैतिकता है और न ही भविष्य।

लोकतंत्र के इन 75 सालों में आदमी आदमी का दुश्मन बन गया है। राजनीतिक दल बटमार पार्टी के रूप में दौड़ती नजर आती है। जाति और धर्म के नाम पर पार्टियों की गोलबंदी है और एक जाति और धर्म के लोग दूसरी जाति और धर्म पर हमलावर है। सम्पूर्ण विकास की गाथा भले ही आज भी देश के कोने -कोने में नहीं पहुँच पायी हो। देश के वंचित और आदिवासी समाज को भले ही विकास की योजनाओं का लाभ नहीं मिलता हो, भले ही देश के कई इलाके नक्सलवाद, चरमपंथ और आतंकवाद से ग्रसित हों लेकिन सरकारी दावे बहुत कुछ  कहते नजर आते हैं। इसक एक सच ये भी है कि इसी देश में नेताओं, मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की भूमिका इतनी कमजोर, दागदार और लचर हो गई है कि जनता उनपर यकीन नहीं करती। इसे आप मौजूदा लोकतंत्र का गुण कहिये या फिर उसके ढहते होने का प्रमाण मानिए।

और इसी दौर का सबसे बड़ा सच ये है कि भले ही देश के कई इलाके आज भी पानी की कमी, अशिक्षा, बीमारी, लूट खसोट और भूख से परेशान हो लेकिन वहाँ लोकतंत्र पहुँच गया है। पार्टियों के झंडे -बैनर सुदूर इलाके में भी आप को दिख जाएंगे और तरह -तरह के नेताओं की तस्वीर झोपड़पट्टियों की टाट पर लटकते मिल जायेंगे। 75 सालो की आजादी के बाद लोकतंत्र शहरी परकोटे को पार करते हुए गांव तक जरूर पहुंचा है लेकिन वही गांव आज भी न्याय पाने को लालायित है। कहने के लिए लोकतंत्र में जनता को तमाम अधिकार तो दिए गए हैं लेकिन क्या वाकई ऐसा हुआ है? क्या मौजूदा प्रधान मंत्री इसकी दस्तक दे पाएंगे?

अगर ऐसा होता और संविधान की प्रस्तावना को ही हमारे सरकार के लोग मानते तो देश के भीतर नफरत और घृणा की कहानी सामने नहीं आती। आज नफरत के माहौल पर लोकतंत्र रुदाली ही तो कर रहा है।

पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन ने कहा था कि ”सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक न्याय हमारे करोडो देशवासियों के लिए आज भी एक अधूरा सपना है। हमारे देश में सर्वाधिक तकनिकी कार्मिक हैं तो निरक्षरों की संख्या भी सबसे अधिक है। हमारे यहां विशाल मध्यम वर्ग हैं लेकिन गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों और कुपोषित बच्चों की संख्या भी सर्वाधिक है। जहां बड़े -बड़े कारखाने हैं वही दरिद्रता और गंदगी भी है इस दुर्दशा को लेकर लोगों में रोष उग्र हिंसक हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। द्रौपदी के समय से ही हमारे महिलाओं को बदले की भावना से सार्वजानिक चीर -हरण और अपमान का शिकार बनाया।

ग्रामीण क्षेत्रों में दलित महिलाओं के लिए अब भी यह आम बात है ,परन्तु हैरानी की बात तो यह कि हम अब भी चुप हैं। समाज के कमजोर वर्गों से हमें ऊबना नहीं चाहिए अन्यथा जैसा आंबेडकर ने कहा था कि हमारे लोकतंत्र की ईमारत गोबर पर बने महल जैसी हो जाएगी।”   जारी —-

Latest articles

Weather Update Today 18 April 2024: कहीं लू, कहीं ओले-बारिश… इन राज्यों में बदलेगा मौसम, IMD ने जारी किया अलर्ट

Weather Update: उत्तर पश्चिम भारत का मौसम एक बार फिर से करवट बदलने जा...

IPL 2024 GT vs DC: गुजरात की शर्मनाक हार, दिल्ली ने 8.5 ओवरों में लक्ष्य को किया हासिल

न्यूज डेस्क आईपीएल 2024 के 32वें मुकाबले में दिल्ली कैपिटल्स ने गुजरात टाइटंस के खिलाफ...

बिहार में भी थम गया लोकसभा के पहले चरण के चुनाव प्रचार का शोर

न्यूज़ डेस्क  बिहार में पहले चरण के लिए चार संसदीय क्षेत्रों गया (सु), औरंगाबाद, नवादा...

More like this

Weather Update Today 18 April 2024: कहीं लू, कहीं ओले-बारिश… इन राज्यों में बदलेगा मौसम, IMD ने जारी किया अलर्ट

Weather Update: उत्तर पश्चिम भारत का मौसम एक बार फिर से करवट बदलने जा...

IPL 2024 GT vs DC: गुजरात की शर्मनाक हार, दिल्ली ने 8.5 ओवरों में लक्ष्य को किया हासिल

न्यूज डेस्क आईपीएल 2024 के 32वें मुकाबले में दिल्ली कैपिटल्स ने गुजरात टाइटंस के खिलाफ...