नई दिल्ली (ऋचा): मैं आपकी बेटी, जी हां मैं ही हूं वो जिसे आपकी राजधानी में सरेराह हैवानियत का शिकार बनाया गया …कार के पहियों में तड़पती रही मेरी जिंदगी और कार दौड़ाते रहे पांच रईसजादे ….पहले उन दरिंदों ने मेरी स्कूटी में टक्कर मारी और फिर कई किलोमीटर तक वो मुझे घसीटते रहे जब तक कि मैं मांस के लोथड़े में तब्दील नहीं हो गई।
जाहिर है आपको यहां मेरे साथ हुई ऐसी और दरिंदगियां याद आई होंगी। हां मैं ही तो हूं निर्भया…. मैं ही तो हूं श्रद्धा और मैं ही हूं आपकी वो बेटी जो कभी एसिड अटैक का शिकार बनती है, कभी जला दी जाती तो कभी मनचलों का सामना करती है। आज पूछने आई हूं आपसे एक सवाल आखिर कब तय होगी मेरी सुरक्षा… आखिर कौन करेगा मेरी सुरक्षा और आखिर किससे चाहिए मुझे सुरक्षा।
आंकड़े कहते हैं कि दिल्ली में पिछले छह महीने में आपकी 1100 बेटियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए हैं। पिछले साल के आंकड़ों की तुलना में दिल्ली में आपकी बेटियों के खिलाफ अपराध के मामलों में इजाफा देखने को मिल रहा है। पुलिस द्वारा जारी आकड़ों के मुताबिक इस साल 15 जुलाई 2022 तक आपकी 1100 बेटियों के साथ कथित रूप से दुष्कर्म के मामले सामने आए हैं। 2021 में, 15 जुलाई तक 1033 बेटियों के खिलाफ दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न अपराध के मामले दर्ज किए गए थे। इस साल के आंकड़ों की 2021 से तुलना करें तो इसमें 6.48 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
हर बार मेरे साथ दरिंदगी घटती है आप अंदर से हिल जाते हैं, आपको गुस्सा आता है लेकिन ये गुस्सा मेरी सुरक्षा को पुख्ता क्यों नहीं करता। दस साल हो गए आपकी बेटी निर्भया के साथ घटी उस खौफनाक घटना को लेकिन मेरी सुरक्षा है कहां?
निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े कानून बनाने के दावे किए गए। साल 2013 में केंद्र सरकार ने अलग से निर्भया फंड बनाया, जिसका मकसद राज्यों को महिला सुरक्षा पुख्ता करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना था।इस फंड का उपयोग राज्य सरकारें व पुलिस द्वारा महिलाओं की सुरक्षा के लिए व्यापक कदम उठाने के लिए किया जाना था। लेकिन क्या हुआ। महाराष्ट्र की ही बात करें तो जून 2022 में मुंबई पुलिस ने निर्भया फंड के तहत 30 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए …और आरोप है कि इस पैसे से वहां वीवीआईपी सुरक्षा के लिए वाहन खरीदें गए। मैं पूछती हूं कि ये मेरी सुरक्षा में इस्तेमाल किया जाने वाला पैसा आखिर किसकी सुरक्षा पर खर्च हो रहा है।
सरकार सुनिए… पुलिस सुनिए.. न्यायपालिका सुनिए.. मेल पब्लिक सुनिए… आपकी बेटी को देश की राजधानी में घर से बाहर निकलने में डर लगता है। आप फिर मुझे उस चारदीवारी में समेटने जा रहें हैं। जबकि मैं एक ऐसा सुरक्षित समाज चाहती हूं जहां मेरे सपनों को पर मिलें और मैं ऊंची उड़ान भरुं। लेकिन इसके उलट चीजें बद से बद्तर होती जा रही हैं और मेरी सुरक्षा एक दूर का सपना बनकर रह गई है। क्या आपको नहीं लगता मेरी सुरक्षा की प्रतिबद्धता आपकी प्राथमिकता में होना चाहिए। आप मुझे बेटी कहते हैं तो मेरे प्रति जिम्मेदार आपको बनना होगा अन्यथा आप इसी तरह आए दिन मुझे खोते रहेंगे और अगर बचा नही सकते तो बेटी बचाओ के नारे लगाकर कोरे सपने दिखाने का नाटक बंद करिए।