अखिलेश अखिल
पीएम मोदी के इकबाल और बीजेपी की मजबूती के सामने विपक्ष ठहर सकता है ? यह बड़ा सवाल है। विपक्ष के अधिकतर नेता चाहते हैं कि अगले चुनाव में बीजेपी को कमजोर किया जाए ,मोदी को सत्ता से हटाया जाए। लेकिन यह सब क्या इतना आसान है ? केवल बयान देने भर से राजनीति नहीं चलती और न ही उसके कोई अंजाम निकलते हैं। देश के भीतर विपक्ष तो है लेकिन किसी का किसी से न मजबूत सम्बन्ध है और न ही सरोकार। फिर जातीय राजनीति इतनी हावी है कि कोई भी दल एक दूसरे को देखना नहीं चाहता। सब को डर है कि कही हमारा वोट किसी और के पास न चला जाए।
देश के भीतर जितनी क्षेत्रीय पार्टियां काम करती दिख रही है ,अधिकतर यह तो कांग्रेस से निकली हैं या फिर कांग्रेस के वोट बैंक को हड़प कर खडी हुई है। इन तमाम क्षेत्रीय दलों की स्थापना 80 के दशक के बाद ही हुई है। कुछेक पार्टियां ही ऐसी है जिसकी स्थापना पहले हुई थी। बीजेपी भी कोई पुरानी पार्टी नहीं है। लेकिन पार्टियों के इतिहास को देखें तो यही पता चलता है कि सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को कमजोर करने में इन नयी पार्टियों की भूमिका सबसे ज्यादा रही है। मामला उत्तर भारत का हो या फिर दक्षिण भारत का या फिर पूर्वोत्तर का ही क्यों न हो सबने कांग्रेस के साथ पहले जिया और फिर बाद में उसकी जड़ में नमक डालने का काम किया। आज कांग्रेस की हालत बद से बदतर है।
अब फिर सामने चुनाव है और विपक्षी एकता की कहानी सामने आ रही है। लेकिन एकता कोई करने को तैयार नहीं। कोई भी क्षेत्रीय पार्टी नहीं चाह रही है कि उसके इलाके में किसी दूसरे दल का दखल हो। हर पार्टी यही चाह लिए हुए है कि अपने राज्य में वह आगे रहे,किसी दूसरे की इंट्री नहीं हो। भले ही वह हारे या जीते। देश के भीतर अब ऐसे कई राज्य हो गए हैं जहां कांग्रेस की जमीन ख़त्म हो गई है। बिहार में तो अभी भी कांग्रेस का थोड़ा अस्तित्व बचा हुआ है लेकिन यूपी ,ओडिशा ,बंगाल ,आंध्रा ,तेलंगाना और पूर्वोत्तर के राज्यों में कांग्रेस कही खड़ी नहीं है। यह बात और है कि कांग्रेस की पहचान आज भी देश भर में है। उनके लोग भी हैं लेकिन वोट नहीं। कांग्रेस की यही दुर्गति है।
अब दस राज्यों में चुनाव है और अगले साल लोकसभा चुनाव। विपक्षी एकता की बात कांग्रेस भी कर रही है लेकिन फार्मूला क्या हो इस पर चुप्पी है। केसीआर भी एकता की राग अलाप रहे हैं लेकिन वे कांग्रेस के खिलाफ एकता चाहते हैं। ममता भी एकता चाहती है लेकिन किस तरह की एकता बने इस पर मौन है। नीतीश कुमार और शिवसेना ,शरद पवार भी एकता चाहते हैं लेकिन कोई साफ़ विजन नहीं। फिर एकता कैसे होगी। बीजेपी से मुकाबला कैसे होगा ?
बीजेपी जानती है कि अब इस देश में एकता की बात बेमानी है। वह संभव ही नहीं। बीजेपी को इसका लाभ मिलता रहेगा। बीजेपी यह भी जानती है कि आज भले ही एनडीए ख़त्म सी हो गई है लेकिन यूपीए जिन्दा है। आज भी यूपीए के साथ कई दल हैं लेकिन उसमे जान नहीं। बीजेपी यह भी जानती है कि जो जान रखने वाले दल है उन्हें कभी भी झुकाया जा सकता है। अपने साथ लाया जा सकता है ,ख़रीदा जा सकता। यही सोच कर बीजेपी आगे बढ़ रही है।
तो साफ़ है कि विपक्षी एकता के बीच ही संघर्ष है। सबको पीएम बनना है लेकिन बिना सीट लाये ही। सबकी नजर देवगैड़ा ,गुजराल वाली राजनीति पर है। सब चाहते हैं कि वे किंग मेकर बने। ऐसी हालत खड़ी हो कि उसके बिना काम ही नहीं चले और फिर उसके सपने पुरे हो जाए।
इधर टीएमसी नेता तृणमूल कांग्रेस के नेता और राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने अगले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी पार्टियों की एकता का एक मॉडल पेश किया है। उन्होंने अंग्रेजी के एक अखबार में लेख लिख कर बताया है कि एक चेहरा घोषित करने की बजाय विपक्ष को अलग अलग राज्य में अलग अलग चेहरों के साथ चुनाव लड़ना चाहिए। वे चाहते हैं कि महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे, तमिलनाडु में एमके स्टालिन जैसे चेहरे भाजपा का मुकाबला करें। उन्होंने अपनी नेता ममता बनर्जी का नाम नहीं लिया। डेरेक ओ ब्रायन के हिसाब से कांग्रेस को राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक आदि राज्यों पर फोकस करना चाहिए, जिन राज्यों में उसका सीधा मुकाबला भाजपा के साथ है।
वे कहना यही चाह रहे हैं कि कांग्रेस अपना नेता अखिल भारतीय स्तर पर पेश करने से बचे। कुल मिलाकर विपक्षी एकता का उनका सुझाया मॉडल कारगर दिख रहा है। उन्होंने बिहार के जदयू नेताओं की ओर से किए गए दावे को एक तरह से दोहराते हुए कहा कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार और पश्चिम बंगाल के दम पर ही अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा का बहुमत कम किया जा सकता है। इन राज्यों में इतनी सीटें भाजपा हार सकती है कि वह ढाई सौ या उससे भी नीचे आ जाए। भाजपा को इससे नीचे लाना तभी संभव हो पाएगा, जब कांग्रेस अपने असर वाले राज्यों में सफल हो।
तो क्या कांग्रेस इस बात पर अमल करेगी ? क्या कांग्रेस अपने प्रभाव वाले राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करेगी ? यही सवाल तो उन क्षेत्रीय दलों के साथ भी है। कोई भी पार्टी किसी भी प्रदेश में सभी सीटें कैसे जीत सकती है ? हालांकि बीजेपी ने यह कर दिखाय है। बीजेपी अब ऐसा नहीं कर पायेगी .उसे भी अब डर सताने लगा है। उसका प्रचारतंत्र चाहे जो भी खेल करे बीजेपी की आतंरिक राजनीति कई राज्यों में कमजोर हुई है लेकिन इसका लाभ कांग्रेस या कोई और दल उठा सकेंगे ,कहना मुश्किल है। नयी पार्टियां भी वहाँ पहुँचती है और खेल कर जाती है। जैसे आप जैसी पार्टी।
ऐसे में विपक्ष क्या कुछ करता है उसे देखना होगा। कांग्रेस को भी जिद छोड़कर और सबको साथ लेकर आगे बढ़ने की जरूरत है। संभव है कि बिना चेहरे पर विपक्ष चुनाव लड़े तो बेहतर होगा और चुनाव के बाद जो हालत होंगे उसके मुताबिक निर्णय लिया जा सकता है।