बीरेंद्र कुमार झा
कांग्रेस ने महाराष्ट्र में महा विकास आघाडी सरकार गिरने और सामने आए राजनीतिक संकट से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बीजेपी के लिए कानूनी राजनीतिक और नैतिक तमाशा करार देते हुए गुरुवार को कहा कि अब राज्य विधानसभा को एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने की मांग करने वाले आवेदन पर फैसला करना चाहिए। पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने यह भी दावा किया कि अगर महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर फैसला करते हैं, तो शिंदे गुट के विधायकों अयोग्य ठहराना होगा। इसलिए ऐसा लगता है कि उनकी ओर से निर्णय में विलंब होगा। उनका कहना था कि अगर इसमें ज्यादा विलंब हुआ इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। अभिषेक मनु सिंघवी मामले में बतौर वकील उद्धव ठाकरे गुट की तरफ से पैरवी कर रहे थे।
शिंदे गुट का व्हिप गैर कानूनी
मीडिया से बातचीत करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि महाराष्ट्र के निर्णय के बाद अब कुछ नहीं बचा है। निर्णय में कहा गया है कि व्हिप राजनीतिक दल का होता है, विधायक दल का नहीं।शिंदे गुट के व्हिप को गैरकानूनी माना गया है।विधानसभा अध्यक्ष ने शिंदे गुट को वैध माना वह भी गैरकानूनी है और राज्यपाल ने विधानसभा में बहुमत परीक्षण के बारे में जो निर्णय लिया, वह पूरी तरह से गैरकानूनी है। उन्होंने सवाल किया कि क्या यह बीजेपी के लिए कानूनी,राजनीतिक और नैतिक तमाचा नहीं है?
विधायकों को अयोग्य ठहराने पर जल्द लिया जाएगा फैसला
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में बरकरार नहीं किया।इस बात का महत्व बहुत कम हो जाता है। मूल बात यह है कि विधानसभा अध्यक्ष से कहा गया वह विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग वाले आवेदन पर जल्द फैसला करें। उन्होंने दावा किया कि अगर विधानसभा अध्यक्ष कानून और संविधान का रास्ता अपनाते हैं ,तो उन्हें विधायकों को अयोग्य ठहराना पड़ेगा,क्योंकि जिस व्हिप के आधार पर शिंदे गुट को मान्यता देने का फैसला किया गया था वह गैरकानूनी है।
शक्ति परीक्षण से पहले ही ठाकरे ने दिया था इस्तीफा
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बीजेपी के कुछ पदाधिकारियों और उनकी सरकारों का जो चाल चरित्र और चेहरा रहा है, उसे देखकर लगता है कि इस निर्णय में विलंब होगा।अगर निर्णय होता है तो इसमें सिर्फ विधायकों को अयोग्य ठहराया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि पिछले साल 30 जून को महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बुलाना सही नहीं था। हालांकि अदालत ने पूर्व की स्थिति बहल करने से इनकार करते हुए कहा कि उद्धव ठाकरे ने शक्ति परीक्षण से पहले ही इस्तीफा दे दिया था।