अखिलेश अखिल
दुनिया में लोकतंत्र की जननी भारत को ही कहा जाता है। भारत के लोग और खासकर नेता जब विदेश में जाते हैं और कही भाषण देते हैं तो यह जरूर कहते नजर आते है कि भारत लोकतंत्र की जननी है। बिहार के लिच्छवि गणराज्य में पहला लोकतंत्र स्थापित हुआ था। आज यह इलाका वैशाली जिला के अंतर्गत आता है। लेकिन यह सब तो ऐतिहासिक और पौराणिक बातें हैं। केवल इतिहास के पन्नो में ही यह दर्ज है।
लेकिन आजादी के दौरान जिस मीडिया और प्रेस ने अपनी भूमिका निभाई क्या आज भी वही भूमिका देश के पत्रकार निभा रहे हैं ? आजादी के बाद प्रेस के लिए कोई अलग से कानून तो नहीं बनाये गए जैसा कि विधायिका ,कार्यपालिका और न्यायपालिका के लिए बनाये गए थे। के बारे में यही कहा गया कि यह सबकी निगरानी करेगा ,सब पर नजर रखेगा। यह वाच डॉग होगा। आजादी के बाद लम्बे समय तक ऐसा चलता भी रहा। नेहरू के जमाने से लेकर इंदिरा के जमाने और फिर आज तक प्रेस ने बहुत कुछ देखा लेकिन कभी गोदी बदनाम नहीं हुआ। आपातकाल के दौरान भी प्रेस को काफी कुछ झेलना पड़ा लेकिन सरकार के खिलाफ उसकी आवाज बंद नहीं सकी। यातनाये झेलकर भी प्रेस जनता के बीच सरकार के काले सच को दिखाता रहा।
लेकिन आज क्या वही माहौल है। जिन पत्रकारों पर आज गोदी मीडिया के ठप्पे लग रहे हैं यह सब पूरी पत्रकारिता बिरादरी के लिए बदनामी से कम नहीं। आखिर क्या वजह है कि यही पत्रकार जब कांग्रेस की सरकार के कारनामो को लिखने, दिखाने में जब पीछे नहीं थे तो आज गोदी क्यों कहला रहे हैं ? क्यां इन पत्रकारों को यह नहीं मालूम कि सवाल सत्ता सरकार से किये जाते है न की विपक्ष से। यह तो पत्रकारिता की पहली कसौटी है। कसौटी यह भी है कि पत्रकार जनता के साथ रहे और जनता के मुद्दों को ही सामने रखे। क्या पत्रकारों को यह पता नहीं है कि वे भले ही कई तरह की समस्या से घिरे रहते हो लेकिन जनता की समस्या उनके लिए बड़ी रही है। खुद भूखे रहकर भी दूसरे के भूख की लड़ाई वे लड़ते रहे हैं। और यह सब इसलिए किया जाता है कि हमारा लोकतंत्र जीवित रहे। हमारा संविधान अमर रहे।
पत्रकारों को यह भी पता होता है कि सत्ता में रहने वाली पार्टी कभी नहीं चाहती है कि उसकी छवि ख़राब हो। कोई भी मंत्री नहीं चाहता है कि उसकी लूट की कहानी जाए। कोई भी प्रधानमंत्री नहीं चाहेगा कि देश के भीतर और बहार बोले गए उनके शब्दों पर कोई टिका टिप्पणी हो। सत्ता पक्ष यही चाहता है कि प्रेस उसका गुणगान करे और पत्रकार उसके कहे मुताबिक ही चले। राजनीति तो चरित्रहीन होती ही है। उसका कोई चरित्र ही नहीं होता। वह तो लोकतंत्र को धोखा देती है ऐसे में वह समाज को कब और कैसे धोखा देती है यह पत्रकारों को भली भांति पता है। इसलिए अभी जो भी पत्रकार गोदी पत्रकार कहा रहे हैं उनके और सरकार के बीच कोई न कोई सरोकार जरूर है। यह सरोकार भले मीडिया मालिकों स्तर पर ही क्यों न हो ? लेकिन जो हो रहा है वह देश की पत्रकारिता के लिए किसी सदमा से कम नहीं।
पत्रकारों का बहिष्कार भला किसे अच्छा लग सकता है ? लेकिन बहस .कांग्रेस और बीजेपी आमने सामने है। बीजेपी गोदी पत्रकारों की आवाज उठा रही है। नाडा जी कुछ ज्यादा ही शोर मचा रहे हैं। अब कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शुक्रवार को मीडिया पर हमलों के पहले के उदाहरणों के साथ भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को चुनौती दी है ।सीएम सिद्दारमैया ने सोशल मीडिया पर कहा, जेपी नड्डा जी, हम आपको मीडिया पर वास्तविक हमले का डेटा देंगे। आप शायद यह भूल गए होंगे, लेकिन इंडिया को यह अभी भी याद है।
सच्चाई बताने के लिए गिरफ्तार किए गए पत्रकारों में सिद्दीक कप्पन, मोहम्मद जुबैर, अजीत ओझा, जसपाल सिंह, सजाद गुल, किशोरचंद्र वांगखेन और प्रशांत कनौजिया शामिल हैं।सीएम सिद्दारमैया ने आगे कहा कि सच बोलने के कारण जिन पत्रकारों की हत्या की गई उनमें राकेश सिंह, शुभम मणि त्रिपाठी, जी. मोसेस, पराग भुइयां और गौरी लंकेश शामिल हैं।
सीएम सिद्दारमैया ने प्रेस फ्रीडम इंडेक्स और भारत की गिरती रैंक का जिक्र किया। साल 2015 : 136वां स्थान, 2019 : 140वां स्थान, 2022 : 150वां स्थान और 2023 : 161वां स्थान है। उन्होंने चुनौती दी कि बीजेपी का इस बारे में क्या कहना है?