अखिलेश अखिल
जातीय जनगणना का मामला अब बीजेपी के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। चुनाव से पहले बिहार की नीतीश सरकार ने ऐसा बम फोड़ दिया है जिसकी धमक देश के चारो तरफ सुनाई पड़ रही है। अब बीजेपी के लिए यह बड़ा सिरदर्द हो गया है। अगर वह इसका समर्थन करती है तो उसका हिंदुत्व कार्ड प्रभावित हो सकता है और बीजेपी कभी भी अपने हिंदुत्व कार्ड को अभी छोड़ना नहीं चाहती। उसे आज भी लग रहा है कि इस चुनाव तक इस कार्ड का उपयोग किया जा सकता है। बीजेपी को लग रहा है कि जैसे अयोध्या के राम मंदिर का उद्घाटन किया जायेगा खेल बदल जाएगा। जाति का यह खेल धर्म के सामने दुबक जायेगा। बीजेपी जानती है कि यह देश धार्मिक है और धर्म के सामने वह कुछ भी करने को तैयार भी हो जाता है। फिर भगवान राम और उनके मंदिर की तैयारी एक बार फिर से भारत को जागृत कर सकता है।
लेकिन बीजेपी की सामने दूसरा संकट यह है कि अगर वह जातिगत जनगणना का समर्थन नहीं करती है तो उसे पिछड़ा और दलित विरोधी भी कहा जा सकता है। विपक्षी पार्टियां इसी अजेंडे के तहत उसे चुनावी मैदान में गहरे सकती है और फिर इसका कोई जवाब बीजेपी के पास नहीं होगा। तीसरी बात यह भी है कि जब बिहार में जातीय जनगणना की मांग हो रही थी और बिहार विधान सभा से इसे पार्ट किया जा रहा था तब बीजेपी ने भी इसका समर्थन किया था और यहाँ तक कि इस मुद्दे पर सभी दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात भी। बात और है कि तब बीजेपी और जदयू साथ ही थे। प्रधानमंत्री मोदी जातीय जनगणना कराने से तब इंकार कर दिया था।
लेकिन अब जब बिहार सरकार ने इसे करा लिया है और उसके आंकड़े भी जारी कर दिए तब बिहार में बीजेपी भी कह रही है कि उसने भी इसका समर्थन किया था। लेकिन जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार है वहां जातीय जनगणना बीजेपी नहीं करा रही है। बीजेपी का यह खेल अब लोग समझ गए हैं और इन्ही सवालों के सहारे बीजेपी कुछ ज्यादा ही घिरती जा रही है। सच तो यही है कि जातीय जनगणना का मुद्दा भाजपा के लिए ऐसा निवाला बन गया है जो न तो उसे पार्टी उगल पा रही है न निगल पा रही है।
लेकिन बीजेपी की सबसे बड़ी परेशानी अब एनडीए के भीतर के दलों को संभालना मुश्किल होगा। यूपी की कई पार्टियां जो एनडीए में शामिल है अब जातीय जनगणना की मांग पर उतर गई है। यूपी में विपक्षी दल सपा तो पहले से ही इस जातीय गणना की मांग करती रही है लेकिन अब सुभासपा और अपना दल ने भी जातीय जनगणना की मांग करके सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी है।
बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं है, जब विपक्ष केंद्र सरकार से जातीय जनगणना की मांग कर रही है। इससे पहले यूपी में सपा और बसपा, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में कांग्रेस, दिल्ली में आप और बंगाल में टीएमसी ने जातिगत जनगणना की मांग की। 2021 में बिहार के सभी दलों के प्रतिनिधि प्रधानमंत्री से अपनी मांग को लेकर मिले भी थे।लेकिन उस वक्त सरकार ने उनकी मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
वहीं, बिहार में अब जातीय जनगणना की रिपोर्ट सामने आने के बाद भाजपा की सहयोगी पार्टियां, अपना दल (एस) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेताओं ने जातीय जनगणना की मांग उठाई है ,एनडीए के इन नेताओं ने कहा है कि समाज में किसी कितनी आबादी है यह तो पता चलनी ही चाहिए ताकि पता चल सके कि किस जाती को क्या लाभ मिल रहे हैं। याद रहे यही बात नीतीश कुमार कहते रहे हैं और अब राहुल गाँधी भी कह रहे हैं। अगर लोकसभा चुनाव से पहले यूपी एनडीए के भीतर भी जोड़ पकड़ती बीजेपी की मुश्किलें और भी बढ़ सकती है। उधर कांग्रेस ने तो ऐलान कर दिया है कि उसकी सरकार लौटने के बाद वह जातीय जनगणना कराएगी।
जातीय जनगणना बना बीजेपी के लिए सिरदर्द , अब एनडीए में शामिल दलों ने की जातिगत गणना की मांग !
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