बीरेंद्र कुमार झा
बिहार में कराए जा रहे जाति गणना को चुनौती देने वाली याचिका पर पटना हाईकोर्ट में मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायाधीश मधुरेस प्रसाद की खंडपीठ में अखिलेश कुमार व अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से इसे संविधान के विरुद्ध बताते हुए इस पर रोक लगाने की अपील की गई।,वहीं राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि सरकार नेक नियत से लोगों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से यह जातिगत सर्वे करा रही है। इस मामले पर बुधवार को भी हाई कोर्ट सुनवाई जारी रहेगी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव और दीनू कुमार ने बहस की, जबकि राज्य सरकार का पक्ष महाधिवक्ता पीके शाही ने रखा।
याचिकाकर्ता के तरफ से हाई कोर्ट में प्रस्तुत तर्क
1. सरकार अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर जाति गणना के तहत लोगों का डाटा इकट्ठा कर रही है। यह नागरिकों की निजता के अधिकार का उल्लंघन है। अगर राज्य सरकार को ऐसा करने का अधिकार है तो उसने इससे संबंधित कानून क्यों नहीं बनाया ?
2. राज्य सरकार द्वारा 6 जून 2022 को जातियों की गणना और आर्थिक सर्वेक्षण का लिया गया नीतिगत निर्णय, भारत के संविधान के विपरीत होने के साथ ही सेंसस एक्ट 1948 और सेंसस रूल 1990 के विपरीत है।
3. सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया कि जाति आधारित गणना के क्रियान्वयन हेतु 500 करोड़ों की आकस्मिक निधि से खर्च किया जाएगा।लेकिन इसके लिए कोई कानून और कोई रूल रेगुलेशन नहीं बनाया गया।
4. धर्म जाति और आर्थिक स्थिति समेत 17 बिंदुओं पर जानकारी जुटाई जा रही है, जो किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता और उसकी निजता के विपरीत है। किसी भी व्यक्ति की गोपनीयता को उजागर और सार्वजनिक करना गैरकानूनी है।
5.याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जाति गणना पर तुरंत रोक लगाई जाए।
सरकार के महाधिवक्ता पीके शाही का तर्क
1. संविधान के अनुच्छेद 35 के तहत राज्य सरकार का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के बारे में जानकारी प्राप्त करे,ताकि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचाया जा सके।
2. विधानसभा के दोनों सदनो में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर जातीय गणना करने का निर्णय लिया गया था कैबिनेट ने उसी के मद्देनजर जातिगत गणना कराने पर अपनी मुहर लगाई है।
3. यह राज्य सरकार का नीतिगत निर्णय है और उसके लिए बजटीय प्रावधान किया गया है।
4. जाति से कोई भी राज्य अछूता नहीं है जातियों की जानकारी के लिए पहले भी मुंगेरीलाल कमीशन का गठन हुआ था। मौजूदा समय में जातियों की अहमियत को कोई नकार नहीं सकता है।
5. राज्य सरकार ने साफ नियत से लोगों को उनकी हिस्सेदारी के हिसाब से लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से जाति गणना का काम शुरू किया है। जाति गणना का पहला चरण समाप्त हो चुका है और दूसरे चरण का 80% काम पूरा हो चुका है। इसपर किसी ने भी अब तक अपनी कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है, इसलिए अब इस पर रोक लगाने का कोई औचित्य नहीं है।
कोर्ट ने कानून नहीं बनाने को लेकर क्या सवाल
कोर्ट ने महाधिवक्ता से जानना चाहा कि जब दोनों सदन की सहमति थी, तो फिर इसे लेकर कोई कानून क्यों नहीं बनाया? इस पर महाधिवक्ता ने कहा कि बगैर अकाउंट बनाए भी राज्य सरकार को नीतिगत निर्णय के तहत जातिगत गणना कराने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि यह एक सर्वे है और किसी को भी जाति बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा रहा है। लोग अपने स्वविवेक से इस सर्वे में भाग ले रहे हैं।